सतपाल मलिक पर छापा उनकी आवाज को दबाने की कवायद, किसान आंदोलन के बरक्स सरकारी फैसला
सतपाल मलिक के ऊपर हाल ही में सीबीआई ने रेड डाली. दिल्ली में उनका निवास और पुश्तैनी हवेली है. उसके बारे में बताया गया था कि जर्जर हालत में है. जम्मू-कश्मीर समेत 30 जगहों पर छापे पड़े हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि आम तौर पर यह होता है कि जो इल्जाम लगाते हैं, जिन पर लगाया जाता है, उनसे पूछताछ की जाती है. हाइड्रो पावर को लेकर अनिल अंबानी की कंपनी ने खुलासा किया था कि 300 करोड़ की रिश्वत ऑफर की गयी थी. एक इंटरव्यू में सतपाल मलिक ने कहा भी था कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद जिक्र किया कि वह इस फाइल पर साइन नहीं कर सकते, उनको 300 करोड़ रुपया ऑफर किया जा रहा है, जिसपर नरेंद्र मोदी ने सतपाल मलिक से कहा कि भ्रष्टाचार से समझौता नहीं करना है.
सतपाल मलिक को खामोश करने की मंशा
मामला यहां उठता है कि जो इल्जाम लगाते हैं, जिन्होंने आरोप लागया है, उससे पूछताछ होनी चाहिए. सतपाल मलिक से पहले भी आज से तीन चार महीने पहले भी सीबीआई पूछताछ कर चुकी थी और अब फिर रेड पड़ रहे हैं. ये सीधे तौर पर एक राजनीतिक दुर्भावना से भरा कदम है क्योंकि ऐसे समय छापे पड़े हैं जब किसान दिल्ली, हरियाणा, पंजाब बॉर्डर पर किसान जमे हुए हैं और उनके पक्ष में, उनके सपोर्ट में सतपाल मलिक का लगातार कई चैनल पर इंटरव्यू सामने आया है. छापा पड़ने के पीछे का कारण यह भी हो सकता है कि वो किसान आंदोलन के लिए कुछ न बोलें क्योंकि आज की तारीख में कोई भी जाट किसान नेता, इनके कद का नहीं है, आज के समय में जाट राजनेता में सबसे बड़ा नाम सतपाल मलिक का है. इनको खामोश करने की एक मंशा हो सकती है. विपक्ष के लोग या इंडिपेंडेंट मीडिया के पत्रकार जो सरकारी मशीनरी के दबाव में नहीं दिखते, उनका भी यहीं कहना है.
सरकार पर लगातार हमलावर
उनका मानना है कि यह छापा इसलिए है कि सतपाल मलिक किसानों के पक्ष में ना बोले. किसान छह महीने का राशन ले कर आए हैं और इसके पहले जब सरकार ने किसान बिल वापस लिया था तो भी सतपाल मलिक ने किसानों के पक्ष में बोला था. किसानों से जाकर मिले थे. यह बात भी सरकार को नागवार लगी थी. एक और बात भी है देश में चुनाव नजदीक है. देश संसदीय चुनाव में लगभग दाखिल हो चुका है. प्रधानमंत्री का भाषण हो रहा है, वो अयोध्या से अबूधाबी तक के मंदिर का उद्घाटन कर रहे हैं. वह भी कहीं ना कहीं एक चुनावी संदेश है, अपने वोटरों को अपनी ओर कैच करने की कवायद है. इसी वजह से अयोध्या मंदिर का कार्य पूरा भी नहीं हुआ और रामलला की मूर्ति की स्थापना भव्य तरीके से की गई. सतपाल मलिक किसान आंदोलन को लेकर लगातार बयान दे रहे हैं. सैनिकों के ऊपर जम्मू कश्मीर में जो हमला हुआ था, सतपाल मलिक उस बात को भी उठाते हैं. उनकी यह भी शिकायत है कि विपक्ष भी इस मामले को नहीं उठा रहा और यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है. हालांकि उनका यह भी मानना है कि यह हमला पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन ने किया था. सतपाल मलिक हाइड्रोपावर में जो 300 करोड़ का रिश्वत का मामला है उसपर भी लगातार बात कर रहे है. वह तीन बड़े मुद्दे उठाकर सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं.
विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा
पिछले साल जब किसानों ने आंदोलन किया तो अंत में प्रधानमंत्री को उनकी बात माननी पड़ी थी. उन्होंने किसान बिल वापस लिया और एमएसपी के मुद्दे पर कहा था कि सीधे कानून लाएंगे, लेकिन दो वर्ष बीत गए और उसपर किसी प्रकार का कोई काम नहीं हुआ. आज की तारीख में सतपाल मलिक विपक्ष की राजनीति का एक हिस्सा बने हुए हैं तो वह सरकार के सामने इन मुद्दों को उठाएंगे और सरकार के खिलाफ बात करेंगे. अब आज रेड पड़ रहे है, छापे पड़ रहे हैं, फाइलें तलाश की जा रही हैं, यह फाइल फिलहाल जो राज्यपाल हैं, उनकी कस्टडी में होगा. उनके ऑफिस में फाइल हो सकती है, वह फाइल सीबीआई देख सकती है. लेकिन फाइल सतपाल मलिक के यहां क्या करने आएगी? जो गोपनीय सरकारी फाइलें होती हैं, चाहे वह मंत्री हो, चाहे गवर्नर हो या चाहे वह कैबिनेट मिनिस्टर हो, वह जब वहां से हटता है तो फाइल लेकर नहीं जाता. वह कानून का उल्लंघन है, क्रिमिनल ऑफेंस हो जाता है, गोपनीयता का उल्लंघन का मामला बनता है.
अब देखना यह होगा कि जब छापा खत्म होता है तो सीबीआई के हाथ क्या लगता है. अगर विपक्ष इस मुद्दे को उठाता है तो विपक्ष के पास काफी बड़े ठोस मुद्दे हैं जो इस चुनाव में सरकार को घेर कर परेशानी खड़ी कर सकती है. हिमंता बिस्वा, जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगते थे, वो बीजेपी में आ गए. आज वो ना सिर्फ असम के मुख्यमंत्री हैं बल्कि पूरे नॉर्थ बीजेपी के इंचार्ज भी हैं. देखा जाए तो जितने भी लीडर हैं, जिनके ऊपर भ्रष्टाचार के चार्जेज लगते हैं और जब वो बीजेपी में आ जाते हैं या उसके सहयोगी दल में शामिल हो जाते हैं, तो वो मुद्दे दफन हो जाते हैं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]