"काल नहीं है डर तेरा, कर्म है अमर तेरा,
रण ही सफर तेरा, रथ ही है घर तेरा,
तेरी चोट तेरी शान है, तू योद्धा महान है."
किसी अनाम लेखक ने ये पंक्तियां देश के एक योद्धा के लिए ही लिखी थीं लेकिन ये हमसे असमय बिछड़ गए जनरल बिपिन रावत की सैन्य जिंदगी की हक़ीक़त को बयान करने वाली सबसे अनमोल मिसाल कही जा सकती हैं. वैसे तो उनकी जाबांजी के अनेकों किस्से हैं,जो वक़्त के साथ सामने आते जाएंगे लेकिन बड़ा सच ये है कि उन्होंने देश की थल सेना में दूसरे नंबर की कमान संभालते ही आतंकवाद को पैदा करने और उसे पालने-पोसने वाले पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को ये अहसास करा दिया था कि भारत शांति, सदभाव और नम्रता में यकीन रखता है लेकिन अगर वो इसे हमारी कायरता समझता है,तो फिर हमें ऐसा जवाब देना भी आता है, जिसे वह कभी भुला नहीं पायेगा.इसे संयोग ही कहेंगे कि पाकिस्तान ने उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया और जब नौबत ये आ ही गई थी,तो अपनी रगों में बह रहे पहाड़ी खून ने उसका मुंहतोड़ जवाब देने में न तो कोई देर की और न ही किसी तरह की कंजूसी बरती.
जनरल रावत ने अगस्त 2016 में सेना के नंबर दो यानी उप प्रमुख का ओहदा संभाला ही था कि आतंकियों ने पहले उरी में सेना के कैम्प पर हमला किया और फिर पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर विस्फोटक हमला किया, जिसमें कई जवान शहीद हुए थे.इसे रावत की सूझबूझ के साथ ही अपने सीनियर को कनविंस करने की उनकी काबिलियत ही समझा जाएगा कि उन्होंने महज़ एक महीने के भीतर ही इसका करारा जवाब देने की हरी झंडी हासिल कर ली.
जिसका अंदेशा न आतंकियों ने और न ही पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं ने लगाया होगा,उस ऑपरेशन को उन्होंने बेहद सीक्रेट तरीके से अंजाम दे दिया. भारतीय सेना ने 29 सितंबर 2016 को पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक करके कई आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया था. बड़ी बात ये है भारतीय सेना के संभावित हमलों की तैयारी की सूचना पाने का जुगाड़ करने वाली पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को जनरल रावत ने इसकी भनक तक नहीं लगने दी और उनके नेतृत्व में ही हमारी सेना ने देश की सीमा के पार जाकर आतंकी शिविरों को ध्वस्त कर कई आतंकियों को ढेर कर दिया था. युद्ध-कौशल और दुश्मन को जवाबी कार्रवाई देने में पिछले 38 बरस में उन्होंने जो महारत हासिल की थी,ये उसका ही नतीजा था. क्योंकि तब सरकार में बैठे हुक्मरानों को भी ये भरोसा नहीं था कि बगैर किसी नुकसान के हमारी सेना इतने मुश्किल मिशन को पूरा करके अपनी सरजमीं पर लौट आयेगी. लेकिन जनरल रावत ने इसे बखूबी अंजाम देकर इसे पूरा कर दिखाया.शायद यही वजह रही कि उनकी इस नेतृत्व-क्षमता से सरकार इतनी प्रभावित हुई कि उनसे दो वरिष्ठ अफसरों को दरकिनार करते हुए उन्हें सेन प्रमुख बनाया गया.
रावत के नेतृत्व में हुई उस सर्जीकल स्ट्राइक के बाद पाक सेना को सिकंदर महान की कही वो बातें जरुर याद आई होंगी,जो उसने बरसों पहले कही थीं.
सिकंदर को “अलेक्जेंडर द ग्रेट” भी कहते हैं. वह मेसेडोनिया (ग्रीक) का राजा था,जो सभी तरह की युद्ध कलाओं में माहिर था और उसने विश्व के बड़े-बड़े राजाओं को युद्ध में परास्त किया था. सिकंदर पर मशहूर कहावत है कि “जो जीता ,वही सिकंदर." इसीलिये उसे आज भी इतिहास का महानतम राजा माना जाता है.उसी सिकंदर ने मिस्र, ईरान सीरिया, गाजा, फिनिशिया समेत अविभाजित भारत के पंजाब पर भी विजय प्राप्त की थी. उसने फारसी साम्राज्य का विस्तार 40 गुना कर दिया था जिसके कारण ही उसे दुनिया का “विश्व विजेता” भी कहा जाता है.तब उसने कहा था कि "मैं शेरों की उस सेना से नहीं डरता जिसका लीडर एक भेड़िया है, बल्कि मैं भेड़ियों की उस सेना से डरता हूं जिसका लीडर एक शेर है."हालांकि पीओके में हमला करते वक्त जनरल रावत ने दुश्मन को ये अहसास बेहतरी से करा दिया था कि वे खुद भी एक शेर हैं और उनकी सेना का हर सैनिक किसी शेर से कमतर नहीं है.
कल हादसे में हुई जनरल रावत की मौत के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए देश-विदेश की हस्तियों का सिलसिला जारी है.लेकिन एक सीनियर अफसर ने न्यूज़ चैनल पर आकर अपने एक जूनियर अफसर की असमय विदाई को जिस मार्मिक सच्चाई के साथ श्रद्धांजलि दी है, उसे देश के सैन्य इतिहास में अनूठी मिसाल ही समझा जाएगा.जनरल जे.जे.सिंह जनवरी 2005 से सितंबर 2007 तक आर्मी चीफ थे और उस दौरान जनरल रावत उनके जूनियर हुआ करते थे,शायद तब वे मेजर जनरल की रैंक पर होंगे.जनरल सिंह ने कहा कि "मेरी सैन्य जिंदगी में शायद वह पहला और इकलौता ऐसा मौका होगा, जब बिपिन रावत ने जूनियर होने के बावजूद अपनी काबिलियत के आधार पर मुझे अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया था.और,बहुत सोचने के बाद जब उनके दिए सुझाव के मुताबिक मैंने निर्णय लिया,तो वह हमारी सेना के लिए हर पहलू से कामयाबी भरा साबित हुआ.आज सचमुच मैंने अपना जूनियर अफसर नहीं बल्कि हमारी सेना ने दूरदृष्टि रखने वाला एक बेहतरीन योद्धा खो दिया.उन्हें नमन करने के लिए सिवा सेल्यूट करने के मेरे पास और कोई शब्द ही नहीं हैं."
स्वामी विवेकानंद ने कभी कहा था- "दुनिया में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते हैं क्योंकि विपरीत परिस्थितियां आने पर उनका साहस टूट जाता है और वह भयभीत हो जाते हैं." लेकिन जनरल रावत को आने वाली पीढ़ियां इसलिये याद रखेंगी कि मुश्किल घड़ी में भी न उनकी हिम्मत टूटी और न ही वे अपने दुश्मन मुल्क से कभी डरे.
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