ठीक छह महीने पहले पिछले साल की 8 दिसंबर को इस देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल विपिन रावत की एक हेलीकॉटर दुर्घटना में सपत्निक असामयिक मौत हो गई थी. तभी से रक्षा क्षेत्र का ये सबसे अहम पद खाली पड़ा हुआ है. लेकिन शुक्र है कि देश में चल रहे तमाम फसादों के बीच सरकार को याद तो आई कि इस संवेदनशील पद पर भी किसी को नियुक्त करना है. इसके लिये सरकार ने पुराने नियमों में कई क्रांतिकारी बदलाव तो किये हैं लेकिन रक्षा-जगत में एक सवाल ये भी उठ रहा है कि इसकी क्या गारंटी है कि इससे तीनों सेनाओं में से कोई एक बेहद काबिल अफसर ही उस कुर्सी तक पहुंचेगा क्योंकि अब तो नियुक्ति का पैमाना ही बदल दिया गया है.


देश के नए CDS की नियुक्ति के लिए सरकार ने मंगलवार को जारी किए गए नियमों में जो बदलाव किए हैं, वे पहली नजर में प्रभावित करने वाले हैं. लेकिन सरकार सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को बारीकी से पढ़ा-समझा जाये,तो सरकार ने बेहद महीन तरीके से इस पद की कुर्सी पर बैठने के लिए सेना के तीनों अंगों में से किसी भी एक का प्रमुख रहने वाली सीनियरटी की शर्त को खत्म कर दिया है. सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना के मुताबिक 62 साल से कम आयु का कोई भी सेवारत या सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल, एयर मार्शल और वाइस एडमिरल अब  सीडीएस के पद के लिए पात्र होंगे. संशोधित नियमों के अनुसार सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना के प्रमुखों के साथ इस शीर्ष पद के लिए अन्य अधिकारियों पर भी विचार किया जा सकता है.


देश के नए CDS की नियुक्ति से पहले आर्मी सर्विस रुल्स में बड़ा बदलाव किया गया है, जो अभूतपूर्व है. लेकिन देखना ये होगा कि ये बदलाव कितना कारगर साबित हो पाता है और इससे हमारे रक्षा बलों में seniority को लेकर उभरने वाली नाराज़गी का सामना ही कहीं न करना पड़ जाए.


दरअसल, सरकार के नए नियमों के मुताबिक अब सीडीएस के पद के लिए लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के वो अधिकारी भी चुने जा सकते हैं जिनकी उम्र 62 साल से ज्यादा नहीं है. खास बात ये है कि 62 साल से कम उम्र के रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी भी अब सीडीएस पद के हकदार हो सकेंगे. अभी तक सिर्फ  जनरल रैंक यानी फोर-स्टार रैंक के सैन्य अधिकारी ही सीडीएस पद पर पहुंचने के काबिल थे.


सरल भाषा में कहें, तो अब सरकार आर्मी के ऐसे ऑफिसर्स को CDS की पोस्ट के लिए योग्य मानेगी जो ले. जनरल या जनरल के समकक्ष पदों पर काम कर रहे हैं. या फिर ऐसे रिटायर ऑफिसर्स जो इन पदों के समकक्ष थे और जिनकी उम्र 62 साल नहीं हुई है. एयरफोर्स के लिए एयर मार्शल और एयर चीफ मार्शल इस पद के योग्य होंगे. या फिर ऐसे रिटायर ऑफिसर्स जो इन पदों से रिटायर हुए और उनकी उम्र 62 साल से कम है.नौ सेना यानी नेवी के लिए भी यही नियम लागू होगा.


इसलिये सवाल ये उठ राह है कि अगर किसी रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल या एयर मार्शल या फिर नेवी के किसी रिटायर वाईस एडमिरल को इस पद पर नियुक्त किया जाता है, तो सेवारत तीनों सेना प्रमुखों को तो ये नागवार ही लगेगा. इसलिये कि जो शख्स अपने सेवाकाल में सेना के शीर्ष पद पर पहुंचने से पहले ही रिटायर हो गया, उसी CDS को उन्हें रिपोर्ट करना पड़ेगा. इसे यों भी समझ सकते हैं कि कल तक कॉलेज में जो प्रोफेसर आपसे जूनियर था और वह रिटायर हो गया,पर आप उस कॉलेज के अभी भी प्रिंसिपल हैं. लेकिन उसी रिटायर्ड प्रोफेसर को सरकार अचानक यूनिवर्सिटी का कुलपति बना देती है और तब उसे आपसे हर तरह का जवाब तलब करने का अधिकार मिल जाता है,तो सोचिये आपके दिल पर क्या बीतेगी!बस,ऐसे ही शंका भरे सवाल हमारे सैन्य बलों को संभालने वाले आला दर्जे के कुछ अफसरों के दिमाग में भी उठ रहे हैं.


राजनीतिक लिहाज से तो सरकार के इस फैसले को जायज कह सकते हैं लेकिन इससे सैन्य बलों में आला पदों पर बैठे अफसरों में ऐसी कोई भावना नहीं आनी चाहिये, जिससे उनका मनोबल भी अपने सर्वोत्तम स्तर पर बना रहे और न ही उन्हें ये अहसास हो कि रक्षा बलों को भी अब राजनीति का औजार बनाया जा रहा है.यह इसलिये भी कि दुनिया में भारत ही इकलौता ऐसा देश है, जिसकी सेनाएं हमेशा राजनीति से अछूती रही हैं और जहां अब तक किसी भी सरकार ने किसी भी  तरह की सियासी दखलदांजी करने की हिम्मत नहीं की है.यही वजह है कि देश के 135 करोड़ लोग किसी भी सरकार, पुलिस व प्रशासन के मुकाबले हमारी सेनाओं के जांबाजों की राष्ट्रभक्ति और निष्पक्षता पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं. पिछले 75 बरसों में हमने यही सबसे बड़ी पूंजी कमाई है,जिसके दम पर हर भारतवासी दुनिया में गर्व से अपना सीना तानकर घूमता है. बस,दुआ ये कीजिये कि दुनिया के  मंच पर अपनी सबसे अलग और मानवीय पहचान स्थापित करने वाली हमारी सेनाओं को राजनीति की बुरी नजर न लगने पाये!   



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