लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकता के चक्कर में कहीं CM नीतीश के हाथ से निकल तो नहीं रहा बिहार
ऐसे समय में जब बिहार में कानून-व्यवस्था की हालत खराब है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लगातार दखल की मांग हो रही है, खुद नीतीश कुमार आगामी 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता को बढ़ावा देने में काफी व्यस्त नजर आ रहे हैं. अब उनकी प्राथमिकता बदल चुकी है. महागठबंधन और विपक्षी दलों की तरफ से एक दूसरे पर जंगल राज और जनता राज बताकर हमले किए जा रहे हैं. राज्य की राजधानी पटना में सरेआम सरकारी अधिकारियों को बालू और शराब माफिया निशाना बना रहे हैं. इन सबके बीच नीतीश कुमार के सुशासन वाले दावे पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
सबसे ताजा घटना पटना जिले के बिहटा पुलिस थाने की है, जहां पर मुसेपुर गांव में आबकारी विभाग के छापा मारने वाली टीम पर शराब माफिया समर्थक लोगों ने धावा बोल दिया. दो संदिग्ध शराब बेचने वालों की गिरफ्तारी के बाद टीम वापस जा रही थी. लेकिन भीड़ ने उन दोनों गिरफ्तार किए गए लोगों को टीम से छुड़ा लिया.
भीड़ के इस हमले में दो सब-इंस्पेक्टर, दो होम गार्ड्स और एक सरकारी ड्राइवर समेत करीब आधा दर्जन सरकारी कर्मचारी घायल हो गए. इसके बाद इन सभी को बिहटा के ईएसआईसी हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया. छापेमारी टीम की दो गाड़ियों में भीड़ ने लूटपाट की. इसके बाद स्थानीय पुलिस ने इस केस में संलिप्तता के आरोप में करीब आधे दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया.
बेकाबू बालू माफिया
कुछ इसी तरह का मामला करीब हफ्ते भर पहले का है, जब बिहार पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले गांव परेव में स्थानीय बालू माफिया ने एक अन्य जिला प्रशासन टीम पर हमला किया. इस घटना में जिला खनन अधिकारी कथित तौर पर घायल हुए थे जबकि दो अन्य महिला खनन इंस्पेक्टर को चोट आयी थी.
बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री नीरज कुमार बबलू ने राज्य सरकार पर एक के बाद एक कई हमले किए. उन्होंने कहा महागठबंधन सरकार के हाथ से राज्य बेकाबू हो चुका है और बिहार को एक बार फिर 1990 के आतंक राज में धकेल दिया गया है. नीरज बबलू ने आगे कहा कि राज्य में आज कोई भी सुरक्षित नहीं रह गया है, यहां तक कि सरकारी अधिकारियों को डर सता रहा है.
विपक्ष हुआ हमलावर
नीरज बबलू के आरोपों को राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्त मृत्युंजय तिवारी ने बेबुनियाद करार दिया और कहा कि जांच की जा रही है और जिन लोगों ने भी सरकारी अधिकारियों पर हमला किया है, उसे किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा.
इधर, बीजेपी के खिलाफ लामबंदी में विपक्षी दलों को एकजुट करने में जुटे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोलकाता और लखनऊ का दौरा कर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की.
शासन पर इकबाल और हनक हुआ ढीला
बिहार की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले पत्रकार अरुण पांडेय की मानें तो नीतीश कुमार की राजनीति ही लालू यादव के खिलाफ थी. क्राइम उस वक्त भी हो रहा था, जब नीतीश और बीजेपी साथ में थे. लेकिन आज जिस तरह की छवि बन गई वो नीतीश के खिलाफ गई है. कोई घटना हो रही है तो उसकी राजद के समय गुंडाराज से तुलना की जा रही है. इतना ही नहीं, दुर्दांत अपराधी रहे आनंद मोहन को जेल से छोड़ा है. इससे कहीं न कही बिहार सरकार की छवि धूमिल हुई है.
आनंद मोहन डीएम की हत्या का दोषी हैं. लेकिन चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार ने जेल नियम में परिवर्तन किया. ऐसे में आज जिस तरह की छवि बनी हो उनकी सुशासन वाली छवि जरूर खराब हो रही है. इससे पहले नीतीश कुमार, लालू यादव के खिलाफ राजनीति कर रहे थे. शासन-प्रशासन पर जो हनक था वो ढीला हुआ है.
अरुण पांडेय आगे बताते हैं कि शासन प्रशासन की हनक कहीं ढीली पड़ती हुई दिख रही है. राजनीतिक रूप से नीतीश कुमार कमजोर हो गए हैं. जिस शख्स ने 15 साल शासन किया, उनकी पार्टी आज विधानसभा में तीसरी पार्टी हो गई है. ऐसे में नीतीश की मौजूदा राजनीति ने उनकी छवि को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है.
वे आगे बताते हैं कि जिस तरह से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया तो वहां शासन का इकबाल भी दिख रहा है और पुलिस की हनक भी दिख रही है. लेकिन नीतीश कुमार जब से राजद के साथ आए हैं, उसके बाद कहीं न कहीं इसमें कमी दिख रही है. जब तक बीजेपी के साथ थे, क्राइम उस वक्त भी हो रहे थे, लेकिन परसेप्शन ये नहीं था, जैसा आज बन गया है. आज कोई भी घटना हो रही है तो ये सरकार बदनाम हो रही है. किसी भी माफिया के यहां पर छापेमारी की जाती है तो उनके साथ मारपीट की जा रही है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]