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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Opinion: अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने की पिछले 5 साल में चौथी हरकत, इसके पीछे जानिए चीन की चाल

चीन की तरफ से पिछले महीने की 28 अगस्त को वहां के नेचुरल रिसोर्सेज मिनिस्ट्री ( प्राकृतिक संसधान मंत्रालय) की तरफ से एक स्टैंडर्ड मैप जारी किया गया. इसमें भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को उसने अपना हिस्सा बताया है. चीन के इस कदम का भारत का कड़ा विरोध किया. कुछ इसी तरह की आपत्ति मलेशिया, फिलिपिंस, ताइवान और वियतनाम की तरफ से भी की गई. इस मामले पर स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन और जेएनयू में चाइनीज स्टडी के प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली के साथ एबीपी डिजिटल टीम से राजेश कुमार ने बात की. आइये जानते हैं पूरी बातचीत-

सवाल 1- चीन के प्राकृतिक संसाधान मंत्रालय की तरफ से जो स्टैंडर्ड मैप जारी कर भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल को अपना हिस्सा बताया गया. आप क्या देख रहे हैं कि चीन बार-बार ऐसा क्यों कर रहा है?

जवाब- चीन की तरफ से चौथी बार इस तरह की हरकतें हैं. 13 अप्रैल 2017 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 17 जगहों के नाम बदले थे. इसके बाद साल 2021 के 31 दिसंबर को 15 जगहों के नाम बदले. उस वक्त ये काम मिनिस्ट्री ऑफ सिविल अफेयर्स ने किया था. इस साल अप्रैल में 11 जगहों पर अरुणाचल प्रदेश में चीन ने नाम बदले और ये काम भी मिनिस्ट्री ऑफ सिविल अफेयर्स ने किया. पिछले महीने की 28 अगस्त को चीन के मिनिस्ट्री ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज ने कुछ नाम बदला और नया मैप लेकर आए. इसमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया. 

चीन ऐसा करके भारत के खिलाफ साइकोलॉजिकल वॉर फेयर छेड़ रखा है. हम जानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश 1951 से भारत का एडमिनिस्ट्रेटिव यूनिट है. ऐसे में सवाल उठता है कि चीन अभी ऐसा क्यों कर रहा है? एक तो ये साइकोलॉजिकल वॉर फेयर है और दूसरा चीन की तरफ से ऐसे कई सारे विवादित मुद्दे उठाए जा रहे हैं ताकि सीमा विवाद पर जब भी चर्चा हो तो वो एक प्वाइंट रहेगा और वे भारत के खिलाफ दबाव डालने की कोशिश करेगा. भारत को रक्षात्मक रुख अपनाने की उसकी कोशिश रहेगी. 

तीसरी बात ये कि मिनिस्ट्री ऑफ सिविल अफेयर से मिनिस्ट्री ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज को मैप बदलाया, क्योंकि चीन चाहता है कि अरुणाचल में जो संसाधन है, वहां पर खनिज बहुत है, फिशरिज हैं, और वाटर रिसोर्सेज, इनको कब्जा करने की वो कोशिश कर रहे हैं. इनका एक मकसद ये भी है कि भारत के ऊपर संसाधन को लेकर काफी ज्यादा दबाव डालना है.

चौथा कारण ये हो सकता है कि मेगा इवेंट्स जैसे जी-20 आ रहे हैं तो ऐसे विवाद बढ़ाने से चीन को लगता है कि भारत कुछ रियायत देगा, क्योंकि मेगा इवेंट्स भी भारत के लिए बहुत जरूरी है.  ऐसे में उनकी कोशिश भारत के ऊपर दबाव डालना है.

सवाल 2- चीन ने ऐसे वक्त पर ये विवादित मैप जारी किया जब जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पीएम मोदी की मुलाकात हुई. ऐसी चर्चा थी कि शी जिनपिंग भारत आएंगे लेकिन रॉयटर्स के मुताबिक वो भारत नहीं आएंगे. उधर, राष्ट्रपति पुतिन भी नहीं आ रहे हैं. ऐस में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आप क्या कुछ देख रहे हैं?

जवाब- पिछले महीने जब जोहान्सबर्ग में सुरक्षा प्रमुखों की बैठक हुई थी, जिसमें उन्होंने शायद कहा था कि शी जिनपिंग नई दिल्ली में जी 20 सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. लेकिन, रॉयटर्स रिपोर्ट के मुताबिक, शी जिनपिंग शायद दिल्ली नहीं आएंगे और वहां से चीन के प्रधानमंत्री आएंगे. इसी तरह रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगर नहीं आ रहे हैं तो चीन का एक अलगाव हो जाएगा. क्योंकि जी 20 बाकी सम्मेलन के दौरान पिछले साल 2:18 यानी एक तरफ रूस-चीन और दूसरी तरफ उनके खिलाफ 18 देशों ने एक रिजॉल्यूशन पास किया था. ऐसे में शायद चीन को ये लग रहा होगा कि उनका अलगाव हो जाएगा और यूक्रेन संकट पर 18 देश उनकी आलोचना करेंगे. एक ये भी वजह हो सकती है, जिसके चलते राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर नहीं आ रहे हैं. ऐसे अभी कयास लगाए जा रहे हैं.

इसके अलावा, चीन को शायद ये भी लग रहा होगा कि भारत की तरफ से जो ग्लोबल साउथ का मुद्दा उठाया जा रहा है, इसमें चीन का इन्फ्लूएंश नहीं होगा, इसलिए शायद चीन ने सोच रहा होगा कि ग्लोबल साउथ देशों के इन्फ्लूएंश में भारत का पलड़ा ज्यादा भारी होगा. इसके साथ ही, भारत ये कह रहा है कि जी 20 की मीटिंग में अफ्रीकन यूनियन को मेंबर बनाएं. अफ्रीकन यूनियन में कुल 55 देश हैं और अगर अफ्रीकन यूनियन की मेंबरशिप होती है तो चीन का जो प्रभाव वहां पर है, वो शायद कम हो जाएगा. इसलिए, चीन नहीं देखना चाहता है कि भारत का ग्लोबल साउथ इन्फ्लूएंस बढ़े.

तीसरा गलवान हिंसा और इसके बाद मैप में नाम बदलने का जो विवाद हुआ, उसके बाद चीन के खिलाफ भारत की जनता के मन में आक्रोश है. ऐसे में चीन को ये लग रहा होगा कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ठीक समय नहीं है, भारत पहुंचने का. शी जिनपिंग इस साल सिर्फ दो देश गए थे, मास्को और साउथ अफ्रीका. ऐसे में शी जिनपिंग को लगेगा का काफी लोग उनका विरोध करेंगे, इसलिए ये उचित समय नहीं है.

सवाल- चीन की अर्थव्यवस्था खराब है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है. कई कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेट रही है, तो क्या चीन की इन हरकतों के पीछे उसकी बौखलाहट भी है?

जवाब: चीन के आर्थिक हालात जटिल होते जा रहे हैं. पिछले साल उनका इकॉनोमिक ग्रोथ रेट 3.3 प्रतिशत था और इस साल 5.5 फीसदी चाहते थे. लेकिन, उनका पीएमआई यानी मैन्यूफैक्चरिंग इंडैक्स इस साल गिरती जा रही है. ऐसे में आर्थिक मोर्चे पर उनका बहुत ज्यादा ग्रोथ नहीं है. दूसरी बात ये कि अमेरिकी और चीन के बीच डी कपलिंग के चलते बहुत सी यूरोपियन कंपनी दूसरे देशों में जाने का प्रयास कर रहे हैं.

वियतनाम, इंडोनेशिया और भारत में ये कंपनियां जा रही है, इसलिए उनको चलता है कि इससे चीन का इकॉनोमिक ग्रोथ रेट और गिर सकता है. इसलिए इनके खिलाफ ये भी वे सोच रहे हैं कि कैसे इस चुनौती से पार पाएं. 

जहां तक मैप में जगह के दावे की बात है तो भारत को उन सारे देशों को इकट्ठा कर चीन पर दबाव डालना चाहिए. क्योंकि, ये सारे देश मलेशिया, फिलिपिन्स, वियतनाम और जापान, कजाखिस्तान इन सबको एक साथ लाकर दबाव बनाना चाहिए. इसमें भारत को रुस की मदद भी लेनी चाहिए. यानी चीन के पड़ोसी देशों को भारत इकट्ठा करे, इससे भारत को भी फायदा होगा और चीन के पड़ोसी देशों को भी.  

सवाल- चीन अगर बार-बार इस तरह से मैप जारी कर भारत को हिस्से को अपना बता रहा है तो आखिर वे ये हरकतें करके किस तरह का ग्लोबली नौरेटिव बनाना चाहता है?

जवाब- चीन में एक हाइली नेशनलिस्ट लीडरशिप है. 2012 से जब कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी शी जनपिंग चीन के राष्ट्रपति बन गए. कोर इंटरेस्ट को उन्होंने उठाया. पहले इकॉनोमिक डेवलपमेंट के मुद्दे को उनके पूर्ववर्तियों ने उठाया. इन्होंने राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे बढ़ाया, जिससे बहुत से देशों को नुकसान पहुंचा. इस वजह से दुनिया में चीन का अलगाववाद भी बढ़ा है.

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