चीन ने धरती के अंदर 10 किलोमीटर गहरा छेद का काम शुरू कर दिया है. ये ड्रिलिंग का काम शिनजियांग प्रांत में किया जा रहा है. इस तरह की ड्रिलिंग तो काफी समय से चल रही है. लगभग 60 के दशक अलग-अलग देश इस तरह के ड्रिलिंग कर रहे हैं. अमेरिका ने किया है, अभी हाल में जापान ने किया है. रूस में भी हुआ है.
साइंटिफिक फील्ड से जुड़ा काम
इसका मुख्य उद्देश्य ये रहता है कि जमीन के नीचे क्रस्ट (crust) में क्या-क्या चीजें हैं, उनके बारे में अध्ययन करना चाहते हैं. ये एक साइंटिफिक फील्ड का काम है. इसके लिए पहले भी काफी प्रयास हुए हैं. 10 से 12 किलोमीटर तक कोशिश पहले भी हो चुकी है. अभी हाल में ये जापान कर रहा है. जापान में क्रस्ट की मोटाई थोड़ी कम है. इसलिए उनको ये थोड़ा आसान पड़ रहा है. जिन देशों ने भी अभी तक ये काम किया, उनका मुख्य उद्देश्य यही है कि आकाश में तो हमने बहुत कुछ खोज कर ली है, अब जमीन के भीतर भी खोज करें.
क्रस्ट के बारे में जानकारी हासिल करना मकसद
क्रस्ट में पहले तो सेडिमेंट्री रॉक्स (अवसादी चट्टानें) हैं, उसके बाद ग्रेनाइट है, बेसाल्ट है और मैंटल पार्ट है. ये चाह रहे हैं कि वे मैंटल पार्ट तक पहुंच जाएं, ताकि ये जान सकें कि मैंटल में है क्या. जो अभी तक हमारे पास जानकारी है, वो सिस्मिक वेव से है. सिस्मोलॉजी स्टडी चल रही है, जो एक तरह से इनडायरेक्ट है. ये ड्रिलिंग के जरिए सीधे जानना चाह रहे हैं कि कोर में क्या है. हो सकता है कि उनको कोई ऐसी चीजें मिले, कोई बहुमूल्य पदार्थ मिल जाएं. ये एक डिस्कवरी का काम हो रहा है.
ये पूरी तरह से एक साइंटिफिक मामला है, मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई पॉलिटिकल मामला है. वैसे भी साउथ चाइना में मिनरल्स का काफी एक्सप्लोरेशन चल रहा है. हो सकता है चीन उस नजरिए से भी ये ड्रिलिंग कर रहा हो. वैसे ये बात सही कि चीन क्या करता है, उसे समझना बहुत मुश्किल है.
इससे पहले ऐसा सोवियत संघ ने किया था और अभी हाल में जापान कर रहा है. जापान को सफलता मिलने की संभावना काफी अच्छा है क्योंकि वहां क्रस्ट की मोटाई कम है. इससे पहले जब सोवियत संघ ने ऐसा किया था, लेकिन जब सोवियत संघ बंट गया तो इसे फंड की कमी की वजह से रोक दिया गया.
इस ड्रिलिंग से चीन कुछ निकालना नहीं चाह रहा है, बल्कि जानकारी हासिल करना चाह रहा है कि मैंटल में क्या है. जैसे अंतरिक्ष में खोज होता है, वैसे ही ये जमीन के नीचे हो रहा है.
ड्रिलिंग का पर्यावरण पर कोई ख़ास असर नहीं
ऐसे ड्रिलिंग का पर्यावरण पर कोई ख़ास असर नहीं होता है क्योंकि वो अंदर ही अंदर सब हो रहा है. पर्यावरण पर तब असर होता है जब सरफेस पर कुछ हो. जैसे हम पेड़ काटते हैं, उसका पर्यावरण पर असर होता है. ये जमीन के नीचे हो रहा है और ये बंद है तो इससे पर्यावरण पर कोई असर नहीं होना चाहिए.
वैज्ञानिक के तौर पर तो मैं ये समझता हूं कि ये एक साइंटिफिक स्टडी है और उससे भारत को तो कोई खतरा नहीं है. ये बात है कि इस सब दक्षिणी चीन में ही हो रहा है. ये पूरी दुनिया जानती है कि चीन का इरादा समझना बहुत मुश्किल होता है. कोरोना को लेकर उसके रवैये को देख चुके हैं. इस वजह से चीन पर शक तो हमेशा बना रहता है. लेकिन इस ड्रिलिंग को लेकर निश्चित तौर से कुछ नहीं कहा जा सकता है. दूसरे देशों ने इस तरह का कोई ड्रिलिंग का काम किया था, तो उनका इरादा तो खोज करना ही था.
भूकंप के बारे में मिल सकती है जानकारी
ड्रिलिंग से भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट के बारे में भी जानकारी मिल सकती है. भूकंप तब आता है, नीचे के लेयर में हलचल होती है. उसके रिएक्शन से भूकंप आते हैं. अगर हम ड्रिलिंग कर रहे हैं और उसमें पता लग रहा है कि रॉक का नेचर कैसा है तो उससे थोड़ा सा आइडिया हो जाता है कि भूकंप जोन कहां होंगे. ख़ासकर जापान में जो हो रहा है, उससे उन्हें काफी जानकारी मिलेगी.
इस ड्रिलिंग का, इस पहल का आगे चलकर क्या फायदे या नुकसान होंगे, ये तो समय ही बता पाएगा. ये एक स्टडी है और ऐसे स्टडी से फायदे भी होते हैं और नुकसान भी होते हैं. अगर चीन इस तरह का कोई एक्सपेरिमेंट कर रहा है तो उससे हमें भी कुछ न कुछ जानकारी तो मिलेगी ही, जो शायद मानव जाति के लिए महत्वपूर्ण भी हो.
भारत की स्थिति थोड़ी-सी अलग है. हमे पहले अपनी अर्थव्यवस्था का विकास करना है. जैसे ड्रिलिंग करना है, तो हम ये ऑयल के लिए करेंगे. खनिज के लिए करेंगे. फिलहाल हम इस तरह की गतिविधि नहीं करेंगे कि धरती के अंदर 10 किलोमीटर तक ड्रिलिंग सिर्फ़ खोज के नजरिए से करें. इसमें खर्च बहुत है. ये हमारी अर्थव्यवस्था को सूट नहीं करेगा. इसलिए फिलहाल हम इस तरह का कोई एक्सपेरिमेंट नहीं करना चाहेंगे. अंतरिक्ष में करेंगे क्योंकि उससे जरूर हमें कुछ फायदे मिल रहे हैं. धरती के अंदर ऐसा करना मेरे हिसाब से अभी जरूरी भी नहीं है.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)