हाल ही में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सैन्य बलों को हरेक हालत के लिए तैयार रहने और दुनिया की बदलती भू-राजनैतिक परिस्थितियों के अध्ययन एवं उसके अनुरूप तैयारी के लिए कहा है. उनके इस बयान के बाद से ही कई तरह के मायने निकाले जाने लगे हैं. कुछ हलकों में इसे आत्मविश्वास से भरे भारत के तौर पर पेश किया जा रहा है, तो कहीं इसे भविष्य की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है.
रक्षामंत्री ने कह दी मन की बात
आजकल आर्मी कमांडर्स की कांफ्रेंस चल रही है. वह मूलतः सेक्योरिटी पर समीक्षा बैठक होती है, यानी सूरत-ए-हाल का जायजा लेना. हमारी कैसी तैयारी है, क्या खतरे हैं और बाकी बातों पर आर्मी सीधा न बोलकर रक्षामंत्री ही सीधा मीडिया से बात करते हैं. बात तो रक्षामंत्री ने सच ही बोली है. चीन जो है, वह अपनी तैयारियों में लगा है और हम भी पूरी तरह मुस्तैद हैं. हमारी तैयारियों में अंतर ये आया है कि कांग्रेस के समय हमारे इलाके में पुल, सड़कें आदि बहुत खराब थे. दुश्मन के सीधा घुस आने में मुश्किल थी. अब हमारी पॉलिसी बदली है. हमने कहा है कि अब उनके घर में जाकर चुनौती देंगे. हम बॉर्डर रोड ऑर्गैनाइजेशन वगैरह के जरिए अब सहूलतें बढ़ा रहे हैं. जो रास्ते हैं, वे बर्फ के समय में भी लगभग चौथाई रास्ता खुला रहता है. हमने दो-दो टनल उस इलाके में बना लिए हैं, तो पहले जो नेफा था, अब अरुणाचल जो है, उधर आना-जाना आसान हुआ है. डिब्रूगढ़ से भी रास्ता खुला है और तवांग से भी. सिक्किम के सामने से भी रास्ते लगातार खुले हैं.
विकास के बदले विस्तार चीन का हुनर
चीन की पुरानी आदत है, नाम बदलने की. उसकी विस्तारवादी नीति का यह एक टूल है. उन्होंने पहले भी पैकेज डील ऑफर किया हुआ है. वह अक्साई चिन अपने पास रखना चाहते थे और बदले में अरुणाचल पर से दावा छोड़ सकते थे. यह तो पुरानी बात है. विकास के जरिए विस्तार तो चीन का हुनर है. अब तो खैर यह ध्यान बंटाने वाली बात है. जिस मुल्क के पास स्ट्रेटेजिक डेटरेंस हो, वह किसी दूसरे देश की टेरोटेरियल इंटीग्रिटी को बहुत दिनों तक चुनौती नहीं दे सकता. चीन तो खुद फंसा हुआ है. साउथ चाइना सी में. अमेरिका से भी उसकी कुश्ती जारी है. उसका मुख्य मकसद तो दक्षिणी चीन महासागर में प्रभुत्व पाना है. यूक्रेन युद्ध में भी ऐसी स्थिति बनी हुई है.. कि वो हमारी सीमाओं को चुनौती नहीं दे सकता. वो नाम बदलना केवल हवा में जोर आजमाना है.
अब जैसे हम कहें कि तिब्बत हमारा है. तो, इतिहास तो यही बताता है. मानसरोवर तो हमारा है ही. ये सब तो इतिहास में दर्ज है. यह मेरे ख्याल से यथास्थिति बनी रहेगी. पेट्रोलिंग चलती रहेगी. वो तो जो इलाके हैं, वहां बस गश्त चलती रहेगी. पेट्रोलिंग भी बिना हथियारों के ही होती है.
सतत युद्ध की स्थिति बनी रहेगी
अगर पूरी तरह शांति कायम हो जाए तो फिर पाकिस्तान तिलमिला जाता है. भारत तो उसका एक बड़ा राइवल है. मानव संपदा में भी, बाकी मामलों में भी. नेहरूजी ने तिब्बत भी उनको सौंप दिया, कश्मीर का भी नासूर छोड़ गए और देश का विभाजन भी अंग्रेजों से मिलकर करवा गए, तो भारत दुश्मनों से घिरा हुआ है. यह तो कंटीन्यूड स्टेट ऑफ वॉरफेयर यानी सतत युद्ध की स्थिति में रहेगा ही. जिस तरह इजरायल है, उसी तरह भारत भी है. आजकल सारा हिसाब-किताब दुनिया भर की जियो-पॉलिटकल परिवर्तनों पर ही चलता है. रक्षामंत्री जी ने इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सेनाओं को हमेशा सतर्क और मुस्तैद रहने की बात कही है, जो स्वागत योग्य है. सबसे पहली बात ये है कि हम सामरिक और आर्थिक तौर पर मजबूत हों, स्थायी हों. आज की तारीख में हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत है, स्थायी है और सबसे तेजी से बढ़ रही है. भारत अब हथियारों का एक्सपोर्ट भी कर रहा है.
समझ लीजिए कि साथ में व्यापार भी चलेगा और साथ में तैयारियां भी चलती रहेंगी. हमारे मित्र देशों की तरह ही हमें सेल्फ-सफिशिएंट होना पड़ेगा. आज के जो हालात हैं, वे भारत के पक्ष में हैं. हमें इस बात का फायदा उठाना चाहिए कि हम रूस की मजबूरी हैं. वह कभी नहीं चाहेगा कि भारत और चीन लड़ें. वह अफोर्ड नहीं कर सकता है. उसी तरह हम हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढा़एं और मजबूत बनें बस इतनी सी बात है.