शी जिनपिंग आख़िर क्यों कर रहे हैं चीनी जनता को लड़ाई के लिए तैयार?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी विदेश नीति में बड़ा बदलाव करते हुए 24 अक्षरों का एक नारा दिया है, जिसे आने वाले बड़े बदलाव का कारगर मंत्र माना जा रहा है. वैसे तो ये नारा चीन की स्थापना के वक़्त कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता देंग शियाओपिंग Deng Xiaoping ने ही दिया था, लेकिन जिनपिंग ने उसी रणनीति का समर्थन करते हुए इसे नये रुप व नये अंदाज़ में पेश किया है.इस नारे का सबसे अहम शब्द है कि 'लड़ने की हिम्मत करो.' इसीलिये विशेषज्ञों का आकलन है कि मौजूदा माहौल में इसके जरिये उन्होंने अपने लोगों को अमेरिका के ख़िलाफ खुद को तैयार रखने का संदेश दिया है.
जिनपिंग के इस नारे की सिर्फ चीन में ही नहीं बल्कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में भी चर्चा हो रही है और विशेषज्ञों का मानना है कि वे पश्चिमी देशों से संभावित युध्द के मद्देनजर चीनी जनता को मानसिक रुप से तैयार कर रहे हैं.वैसे तो साल 1949 में देंग के दिये नारे पर ही अमल करते हुए चीन ने अपना कायाकल्प किया है लेकिन उसमें अब शी जिनपिंग के इस बदलाव को महत्वपूर्ण होने के साथ ही उनकी कूटनीति का नया मार्गदर्शक सिद्धान्त माना जा रहा है.ये नारा ज्यादा स्वीकारात्मक है, जो बताता है कि भू-राजनैतिक पटल पर चीन खुद को एक बड़ी ताकत साबित करने की तैयारी कर रहा है.
तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बने और अब ताउम्र इसी पद पर बने रहने वाले जिनपिंग ने पिछले हफ्ते 24 अक्षरों वाले इस नारे को जिस बदलाव के साथ दोहराया है, उसके हर शब्द को ताकतवर व मारक माना जाता है, जो लोगों में राष्ट्रभक्ति की नई ऊर्जा पैदा करता है. चीन की कूटनीति के जानकार बताते हैं कि चीन जब भी किसी अंतराष्ट्रीय संकट या दबाव से घिरा है,तो उसने इसी नारे का सहारा लेकर पाया पाया है.इसीलिए कहते हैं कि दुनिया के मंच पर चीन को आगे बढ़ाने में इस नारे का अपना एतिहासिक महत्व रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि जिनपिंग को ये नारा दोहराने की जरुरत आखिर अभी ही क्यों पड़ी? कूटनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक चीन जानता है कि रुस-यूक्रेन युद्ध में वह रुस के साथ खड़ा है, लिहाज़ा अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश उसके खिलाफ लामबंद हैं.उधर, ताइवान को हड़पने की उसकी कोशिश पर भी अमेरिका ने पूरी ताकत के साथ 'स्पीड ब्रेकर' लगा रखा है.
चीन का पुराना इतिहास रहा है कि किसी भी लड़ाई से पहले उसने अपनी सेनाओं के साथ ही आम जनता को भी मानसिक रुप से राष्ट्रीयता के प्रति बेहद मजबूत बनाया है.दो दिन पहले 13 मार्च को जिनपिंग ने अमेरिका के ख़िलाफ़ जितना जहर उगला है,उससे संकेत मिलता है कि उनके क्या इरादे हैं,जिसे अंजाम देने से पहले वे अपने लोगों को मनोवैज्ञानिक तरीके से किसी संभावित लड़ाई के लिए तैयार कर रहे हैं. ये नारा चीन से शत्रुता रखने वालों के खिलाफ खड़े होने की ताकत देता है और पश्चिमी देशों की चुनौतियों से लड़ने के नये संकल्प पर भी जोर देता है. देंग का वह फॉर्मूला 1980 के दशक में भी आया था जब चीन को विस्तारवाद की जरूरत थी. कहते हैं उसी वक्त चीन एक नई आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरा.
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी भाषा के जानकार और जेएनयू में प्रोफेसर हेमंत अदलखा ने शी जिनपिंग के नारे का अंग्रेजी में अनुवाद किया है.उनके मुताबिक ये नये युग में चीन की नई विदेश नीति का मंत्र है.इसे समाजवाद के नए युग में जिनपिंग स्टाइल वाली कूटनीति कहना ज्यादा बेहतर होगा.हालांकि शी जिनपिंग ने पुराने नारे को जो नया रंग दिया है, उसका हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह से है – शांत रहो, दृढ़ रहो, प्रगति और स्थिरता की तलाश करो, सक्रिय रहो, उपलब्धियों के लिए आगे बढ़ो, कम्युनिस्ट पार्टी के तहत एकजुट हों और लड़ने की हिम्मत करो. जबकि साल 1949 में तैयार किये गए इस नारे का मूल स्वरूप देंग ने कुछ ऐसे दोहराया था – शांत रहें, चीन की स्थिति सुरक्षित करे, अमेरिका को शांति से संभालें और खुद को लो प्रोफाइल बनाए रखें. जबकि शी जिनपिंग ने अब इसमें जोड़ दिया है- ‘सक्रिय रहें’ और ‘लड़ने की हिम्मत करें.'
बता दें कि बीती 13 मार्च को शी जिनपिंग ने अमेरिका के खिलाफ काफी जहर उगलते हुए कहा है कि चीन की सेना एक फौलादी दीवार की तरह है,जिसे अमेरिका या कोई और गिराने का भ्रम न पाले. रॉयटर्स के मुताबिक चीन ने अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रयासों को बढ़ाने के लिए कहा है.जिनपिंग ने ये भी कहा कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश चीन को दबाने के लिए चौतरफा रणनीति बना रहे हैं, जिससे निपटने की जरूरत है. ऐसे में शी जिनपिंग ने देंग के मंत्र से एक कदम आगे बढ़ते हुए खुद को लो प्रोफ़ाइल रखने के बदले लोगों को आक्रामक होने का संदेश देकर एक तरह से रण का बिगुल बजा दिया है.
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