धर्म को अफ़ीम मानने वाले कम्युनिस्ट देश चीन ने अब व्यक्ति-पूजा को अपनाने का फैसला लेते हुए छोटे बच्चों को मानसिक रुप से अंधभक्त बनाने की शुरुआत कर दी है. दुनिया के नक्शे पर इकलौती महाशक्ति बनने का ख्वाब देखने वाले चीन ने तय किया है कि अब राष्ट्रपति शी जिनपिंग के राजनीतिक विचारों को स्कूल व कॉलेजों की पुस्तकों में पढ़ाया जायेगा. इसे 'शी थॉट' का नाम दिया गया है और इसके जरिये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ये चाहती है कि बच्चों का कोमल मस्तिष्क ही अगर पार्टी की विचारधारा से भर दिया गया, तो वे बड़े होकर सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ भी किसी तरह का विद्रोह करने की ताकत नहीं जुटा पाएंगे. मकसद ये है कि बचपन से ही हर नागरिक को कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति इतना वफादार बना दिया जाये कि वो बग़ावत के बारे में सोच भी न सके.
हालांकि चीनी इतिहास में अब शी जिनपिंग, माओत्से तुंग के कद के बराबर पहुंच गए हैं क्योंकि जिनपिंग से पहले सिर्फ दो नेताओं के विचारों को ही संविधान में शामिल किया गया है. पहले माओत्से और दूसरे देंग जियाओपिंग हैं. लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि माओत्से और जिनपिंग के विचारों को उनके जीते जी इसमें शामिल किया गया. जबकि देंग जियाओपिंग के विचारों को उनके निधन के बाद शामिल किया गया था. शी जिनपिंग ने इतिहास में अपना नाम तो दर्ज करा लिया लेकिन लगता है कि सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिए उनका इराद माओत्से से भी आगे जाने का है.
सरकार संचालित अखबार चाइना डेली के अनुसार देश की राष्ट्रीय पाठ्यपुस्तक समिति द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि पाठ्यपुस्तकों में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) और राष्ट्र की इच्छाशक्ति दिखेगी. राष्ट्रीय पाठ्यपुस्तक समिति के सदस्य हान झेन ने कहा कि राष्ट्रपति की राजनीतिक विचारधारा (China Curriculum Reform) को विभिन्न विषयों में शामिल किया जाएगा.
दरअसल, 'शी थॉट' में 14 सिद्धांत है जिसमें सबसे प्रमुख है कि देश की सेना पर पार्टी का ही पूर्ण अधिकार रहेगा. इन विचारों को तीन साल पहले ही मंजूरी दे दी गई थी. तब सीपीसी के सभी 2287 सदस्यों ने संविधान में 'शी थॉट' को शामिल करने के पक्ष में वोटिंग की थी जबकि विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा था. इसमें चीनी सेना पर पार्टी के पूर्ण नियंत्रण की वकालत की गई है. इसके अलावा चीन के आधुनिक इतिहास में बदलाव लाना और एक देश, दो सिस्टम की महत्ता पर जोर देना शामिल है. इसके जरिए वो ये भी चाहता है कि ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग के लोगों को चीन के प्रति प्रेरित किया जाए.
चीन के शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक ‘नए युग के लिए चीनी विशिष्टताओं के साथ समाजवाद पर शी जिनपिंग के विचार’ को सभी स्तरों पर छात्रों के लिए पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया जाएगा. ऐसा करने से युवाओं में मार्क्सवादी विधारधारा को स्थापित करने में मदद मिलेगी. नई गाइडलाइन के अनुसार प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय तक जिनपिंग के विचारों को पढ़ाया जाएगा.
हालांकि चीन का दावा है कि इससे युवाओं में देशभक्ति की भावना बढ़ेगी लेकिन छुपा हुआ मकसद तो उन्हें मानसिक रुप से गुलाम बनाना ही है. लेकिन शी थॉट को प्रचारित करने का दायरा व्यापक है क्योंकि सरकारी कर्मचारियों और सीपीसी के करीब नौ करोड़ कार्यकर्ताओं को भी इसके बारे में बताया जाएगा.
गौरतलब है कि सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने पिछले महीने ही अपनी स्थापना के सौ साल पूरे किये हैं. जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी की तबाही से निकले आंसू पोंछ रही थी, तब चीन शताब्दी पूरी होने का सार्वजनिक जश्न मनाकर हम सबको चिड़ा रहा था. यही है उस ड्रैगन का असली चेहरा जिस पर यकीन करने वाले हर मुल्क को बाद में, पछताना ही पड़ा है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)