चीन: दुआ कीजिये कि ये तानाशाह दुनिया को बर्बादी के रास्ते पर न ले जाये!
पड़ोसी मुल्क चीन से हमारे रिश्ते खटास भरे चल रहे हैं लेकिन अब वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हाथ में लगातार तीसरी बार सत्ता की कमान आ गई है.पूरी दुनिया ये मान रही है कि अब चीन पहले से भी ज्यादा निरंकुश हो जायेगा लेकिन भारत के लिये उसकी तानाशाही न सिर्फ चिंता बढ़ाने वाली है, बल्कि कुछ हद तक खतरनाक भी है.
ये वही जिनपिंग हैं, जिन्हें हमारे पीएम नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद की साबरमती नदी के किनारे झूले झुलाते हुए दोस्ती की पींगें बढ़ाई थीं लेकिन उनकी नीयत तो तब भी कुछ और ही थी और अब तो भारत के ख़िलाफ़ और भी ज्यादा जहर उनके दिलों-दिमाग में छा गया है. यही वजह है कि विदेशी कूटनीति के विश्लेषक ये मानते हैं कि जिनपिंग की ये तीसरी ताजपोशी जितनी अमेरिका के लिये खतरनाक है, उससे भी ज्यादा भारत को इसका असर सबसे पहले झेलना पड़ सकता है. हालांकि ये भी सच है कि माओत्से तुंग के बाद शी जिनपिंग चीन के ऐसे ताकतवर नेता बन गए हैं,जो अपने देश में विरोध में उठने वाली हर आवाज़ को दबाने के साथ ही दुनिया के लिए ऐसी मिसाइल बन चुके हैं, जिसे थामना बेहद मुश्किल है.
भारत-चीन की कूटनीति पर निगाह रखने वाले विश्लेषक मानते हैं कि जिनपिंग अब पहले से कई गुना ज्यादा ताकतवर हो गए हैं और वे LAC पर गलवान जैसी और घटना दोहराने से पीछे नहीं हटने वाले हैं. दूसरी,परेशान करने वाली बात ये भी है कि चीन से भारी भरकम कर्ज़ लेने के बाद पाकिस्त भी उसी चीन की गोद में बैठा हुआ है.चीन उसका आका है,जिसके हुक्म को ठुकराना, उसके बस की बात नहीं है. इसलिये जानकर ये आशंका जता रहे हैं कि आने वाले दिनों में कश्मीर घाटी में आतंकी वारदातों में अचानक से इज़ाफ़ा होने लगे,तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.गौर करने वाली बात ये भी है कि अगले कुछ महीने में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव होने हैं और लोकतंत्र की इस फ़िज़ा को खराब करने के लिए पाकिस्तान हर मुमकिन कोशिश करेगा, जिसके लिए चीन उसे पर्दे के पीछे से हर तरह की मदद देने से नहीं कतरायेगा.
दरअसल,दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बैठे कई ऐसे विशेषज्ञ हैं,जो पिछले कई दशकों से चीन की राजनीति और वहां की जनता के मिज़ाज को बेहद गहराई से समझने की कोशिश में लगे हैं. ऐसे ही कोलंबिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एक प्रोफ़ेसर हैं-एंड्रूयू नेथन.वह कहते हैं कि शी जिनपिंग का मानना है, ''उनकी विचारधारा सही है और सबको इसे स्वीकार करना चाहिए. अगर अतीत में देखें,तो जब भी माओत्से तुंग ने कोई भी नीति तय की,तो हर किसी ने उसका पालन किया. यही शी जिनपिंग के बारे में भी सच है."
अब हम इसका दूसरा अर्थ ये भी निकाल सकते हैं कि माओ से लेकर जिनपिंग के आने तक चीन में बहुत बदलाव आया है,इसलिये जरुरी नहीं कि पांच दशक पहले वाली नीति को ही दोहराया जाये. लेकिन इतिहास बताता है कि एक तानाशाह की सोच पर चलने वाला नया शासक भी उसकी नीतियों को न सिर्फ दोहराता है,बल्कि उसे अपने देश की जनता को मानने पर भी मजबूर कर देता है.वही हाल आज चीन का भी है.
लेकिन दुनिया के कूटनीतिक-जगत में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल में आखिर क्या होगा? और,इससे डर क्यों पैदा हो रहा है? वैसे तो कोई भी देश अपनी रणनीति या हथियारों की ताकत का ढिंढोरा नहीं पिटता.लेकिन चीन ऐसा वाहिद मुल्क है,जो दुनिया से बहुत सारी बातें छुपाकर अपने मंसूबों को अंजाम देने में बेहद खामोशी से मशगूल रहता है.
हालांकि चीन की राजनीति से वाकिफ़ कुछ जानकारों का अनुमान है कि शी जिनपिंग अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान चीन की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के बढ़ाने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण को और ज्यादा मजबूत करेंगे.वह दुनिया के सामने बेहद मुखर और आक्रामक कूटनीति पेश करते हुए अपनी सेना को अव्वल दर्जे की लड़ाकू फौज बनाने पर भी जोर देंगे.आशंका ये भी है कि अमेरिका के तमाम विरोध और चेतावनी के बावजूद वे ताइवान पर कब्ज़ा करने से पीछे नहीं हटेंगे और उनका ये कदम दुनिया के लिए एक नया संकट पैदा कर देगा.
एक सच ये भी है कि शी जिनपिंग के आक्रामक रुख़ को देखते हुए ही पिछले एक दशक में समूचे एशिया में हथियारों का जखीरा इकठ्ठा करने की होड़ मची हुई है.जिनपिंग ने इस एक दशक के शासन के दौरान चीन को दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना बनाने के साथ ही अपनी थल सेना को नया और आधुनिक रूप दिया है. चीन ने अपने किसी भी दुश्मन को परेशान करने के लिए परमाणु और बैलिस्टिक शस्त्रागार में भी बड़ा इजाफा किया है.यही कारण है कि चीन के पड़ोसी देश भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान और वियतनाम अब अपनी सैन्य शक्ति को चीन के बराबर लाने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं.इसीलिये सामरिक जानकार कहते हैं कि जिनपिंग के अगले पांच साल के कार्यकाल में इंडो-पैसिफिक में हथियारों की दौड़ और भी ज्यादा तेज हो जायेगी.
अगर हम तानाशाहों का इतिहास खंगालेंगे, तो पता लग जायेगा कि सिर्फ एक तानाशाह की सनक ने दुनिया को कितना बर्बाद किया है. इसीलिये चीन समेत दुनिया को जिनपिंग की तीसरी ताजपोशी तो मंजूर है लेकिन वो किसी तानाशाह को झेलना नहीं चाहती-सिर्फ इसलिये कि वो मानवता का नामो-निशान ही मिटाकर रख दे.