राहुल गांधी अब तक 2800 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय कर चुके हैं. यात्रा अब तक देश के 7 राज्यों से होकर गुजर चुकी है. इनमें तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश शामिल हैं और फिलहाल 8वें राज्य राजस्थान में हैं. इन राज्यों में यात्रा के प्रति जिस तरह का उत्साह देखने को मिला है, उस आधार पर कह सकते हैं कि कांग्रेस अपना एजेंडा सेट करती हुई दिख रही है. अब तक होता ये आया है कि सिर्फ चुनावों के समय पर ही विचारधारा की बात होती है और अक्सर बीजेपी के ही रखे गए वैचारिक मुद्दे (लव जिहाद और गोहत्या) पर कांग्रेस को प्रतिक्रिया देनी पड़ती है और बीजेपी उसमें बाजी मार लेती है. हालांकि इस बार राहुल गांधी के जरिए कांग्रेस ने समाज में फैलती नफरत के साथ ही महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को जनता के बीच जाकर जिस बेबाकी से उठाया है, उसका असर होता भी दिख रहा है.


देश की मुख्य विपक्षी पार्टी को ऐसे माहौल इन जो भूमिका निभानी चाहिए, उसकी तारीफ अब विश्लेषक भी निष्पक्षता से कर रहे हैं. जानी मानी राजनीति विज्ञान की प्रोफ़ेसर ज़ोया हसन ने ट्रिब्यून अख़बार में एक लेख लिखा है, जिसमें वो कहती हैं कि भारत जोड़ो यात्रा राजनीति में बहुसंख्यकवाद का मुकाबला करने, सामाजिक बंटवारे और असहिष्णुता के ख़िलाफ़ स्वस्थ संवाद कायम करने का पहला गंभीर प्रयास है. हालांकि ये प्रयास कितना सफल हो पाता है, इसका फैसला तो जनतंत्र में आखिरकार जनता को ही करना होता है.


विश्लेषकों के मुताबिक राहुल गांधी जनता के बीच जाकर यह संदेश देना चाह रहे हैं कि मीडिया और दूसरे संस्थानों की विश्वसनीयता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है और इसीलिए वो जनता से सीधे संवाद करने के लिए ख़ुद उनके पास चलकर आए हैं. लोगों के जेहन में भी ये बात बैठ रही है कि यात्रा का मकसद भले ही सियासी हो, लेकिन कोशिश तो ईमानदार है. जाहिर है कि राहुल गांधी अगले साल होने वाले 13 राज्यों के चुनाव के लिए उतने चिंतित नहीं हैं और उनका सारा ध्यान 2024 के लोकसभा चुनाव पर केंद्रित है.


कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश कहते हैं कि 'भारत जोड़ो यात्रा' 'चुनाव जीतो' या 'चुनाव जिताओ यात्रा' नहीं है. यात्रा का एक उद्देश्य यह जरूर था कि कांग्रेस संगठन को मजबूत किया जाए, उसे संजीवनी दी जाए. जयराम रमेश के मुताबिक मोदी सरकार की नीयत और नीतियों के कारण आर्थिक विषमता बढ़ रही है, सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है और राजनीतिक तानाशाही एक हकीकत हो गई है. उनके अनुसार, ''राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असल मक़सद इन तीन मुद्दों पर भारत की जनता से संवाद करना है और इसके ख़िलाफ़ एक नैरेटिव तैयार करना है.''


कांग्रेस बेशक ये कह रही है कि इस यात्रा का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है. आम आदमी पार्टी का इंडिया अगेंस्ट करप्शन (2011-12) या आंध्र प्रदेश में वाईएसआर की यात्रा के बारे में भी यही कहा जाता था कि यह चुनावी यात्रा नहीं है, लेकिन यह सबको पता है कि यह पूरी तरह राजनीतिक यात्रा होती है. निष्पक्ष आकलन किया जाए तो इस यात्रा की जो तस्वीरें निकल कर आ रही हैं वो बहुत हद तक एक संदेश दे रही हैं. राहुल गांधी का संदेश बिल्कुल साफ है कि वो बेरोजगारों, नौजवानों, दलितों, आदिवासियों, ग़रीबों, किसानों और मुसलमानों के साथ खड़े दिख रहे हैं और वो 2024 चुनाव में एक सीधी वैचारिक रेखा खींचना चाह रहे हैं. वे लोगों को विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार के दौरान भारत के कुछ गिने चुने बिज़नेस घरानों को सारा लाभ हो रहा है और समाज का बाक़ी हिस्सा वंचित रह रहा है. लिहाजा राहुल गांधी की इस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस 2024 का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ेगी.


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