कांग्रेस वाकई बदल रही है या फिर पीएम नरेंद्र मोदी के पिछले साढ़े आठ साल में दिए भाषणों ने उसे अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है? हिमाचल प्रदेश इसका ताजा व सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां कांग्रेस ने परिवारवाद की राजनीति को तिलांजलि देते हुए एक नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाकर ये साबित किया है कि वह भी बदलती हुई राजनीति को ही अब अपना रामबाण मान रही है.


दरअसल, हिमाचल प्रदेश पहाड़ी राज्य होने के साथ ही देवियों की भूमि भी है जहां वीरभद्र सिंह जैसे शाही परिवार से आने वाले नेता ने न सिर्फ कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत किया बल्कि हर पांच साल के बाद पार्टी को सत्ता में लाने का सपना भी सच कर दिखाया. दुनिया से उनके विदा हो जाने के बाद कांग्रेस ने उनकी पत्नी और मंडी की सांसद प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया दिया. जाहिर है कि उनकी अगुवाई में ही कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और जीता भी. लिहाज़ा, उन्होंने सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी भी ठोक दी. उनके समर्थित विधायकों ने शिमला में जमकर हंगामा भी मचाया लेकिन वो सब इसलिये बेकार साबित हो गया कि कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब से सबक लेते हुए पहली बार इतना कठोर फैसला लेते हुए उन्हें ये संदेश दे दिया कि अगर अपना सियासी वजूद बचाना हैं तो उन्हें सुखविंदर सिंह सुक्खू का ही साथ देना होगा जिन्हें राज्य का नया सीएम बनाने पर पार्टी अपनी मुहर लगा चुकी है.


बता दें कि हिमाचल के नए सीएम बनने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू वीरभद्र सिंह के धुर विरोधी रहे हैं लेकिन उन्होंने लगातार चौथी बार विधायक बनकर आलाकामान को ये जता दिया कि वे प्रदेश में कांग्रेस के इकलौते सिरमौर हैं. इसलिये कि पार्टी के 40 चुने गए विधायकों में से कुछेक को छोड़ एकतरफा समर्थन हासिल था. लेकिन इसे कांग्रेस का दबाव माना जाए या प्रतिभा सिंह की मजबूरी लेकिन पार्टी ने सत्ता-संतुलन का फार्मूला निकालकर फिलहाल तो उन्हें मना ही लिया है. वीरभद्र सिंह के खासमखास रहे मुकेश अग्निहोत्री को उप मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लेकर कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह के गुट को शांत करने की जिस रणनीति को अंजाम दिया है फिलहाल तो वो कामयाब होती दिख रही है. लेकिन कांग्रेस को हमेशा ये याद रखना होगा कि वो इस पहाड़ी राज्य के ऐसे बॉर्डर पर खड़ी हुई है जहां सारा दारोमदार महज़ 5 विधायकों पर टिका हुआ है. 


इसलिये कांग्रेस की नई बनने वाली सरकार पर बाहर से नहीं बल्कि भीतर से ही ये तलवार लटकी रहेगी कि हर विधायक को खुश कैसे रखा जाये. इसलिये कि पांच विधायकों की नाराजगी ही उसे सत्ता से बेदखल करने में ज्यादा देर नहीं लगाएगी और बीजेपी हमेशा इसी ताक में रहेगी कि खोई हुई सत्ता उसकी झोली में वापस कैसे आये.


वैसे तो कांग्रेस ने सुक्खू को सीएम बनाने का फैसला लेकर इस आरोप को गलत साबित करने की ही कोशिश की है कि वह परिवारवाद को बढ़ावा देती है लेकिन जानकर मानते हैं कि हिमाचल में किया गया ये प्रयोग जोखिम भरा भी है क्योंकि पांच साल तक पूरे 40 विधायकों को संभाल पाना, ढेर सारे मेंढकों को टोकरी से बाहर न आने देने की चुनौती से कम नहीं है.


हालांकि हिमाचल की राजनीति के जानकार कहते हैं कि सुक्खू जमीन से जुड़े हुए और बेहद सुलझे हुए नेता हैं और इसी वजह से वे लगातार चौथी बार विधायक निर्वाचित हुए हैं. लेकिन सीएम बनने के बाद उनके लिए प्रतिभा सिंह के खेमे वाले विधायकों को खुश करते हुए उन्हें अपने साथ जोड़े रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा. वैसे विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद सुक्खू ने गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी का बखान करने में जरा भी कंजूसी नहीं बरती. उन्होंने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘मैंने 17 साल की उम्र से राजनीतिक जीवन शुरू किया. सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और खरगे का आभारी हूं. एक आम परिवार से ऊपर उठकर यहां तक पहुंचा हूं. राजीव गांधी जी ने मुझे एनएसयूआई का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था सोनिया गांधी ने युवा कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया. फिर राहुल गांधी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया था.’’


गौरतलब है कि एनएसयूआई से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले सुक्खू संगठन में कई जिम्मेदारियों को निभाते हुए 2013 में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और 2019 तक इस पद पर रहे. उन्होंने पहली बार 2003 में हमीरपुर जिले की नादौन विधानसभा सीट से चुनाव जीता और फिर 2007 में भी यहां से निर्वाचित हुए. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव जीतकर उन्होंने सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी मजबूत कर ली.


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