बरसों पहले मशहूर गायक पंकज उधास ने एक गजल गाई थी- 'चिठ्ठी आई है, चिट्ठी आई है, वतन से चिठ्ठी आई है.' वह गजल उनके लिए थी जो अपनी किसी भी मजबूरी के चलते विदेशों में बसे हुए हैं. और, ये उस जमाने में गाई गई थी जब हमारे देश में न मोबाइल फोन थे और न ही आप वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये अपने लोगों से जुड़ने की कल्पना भी कर सकते थे. लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि डिजिटल मीडिया के इस दौर में अगर आपको प्रधानमंत्री या किसी केंद्रीय मंत्री की लिखी चिट्ठी को डाकिया आपके घर पहुंचा दे तो आप खुद को जमीन से दो ऊपर गज़ का इंसान मानते हुए उसे अपने पड़ोसियों को भी उस चिट्ठी को दिखाते हुए अपनी कॉलोनी या महुल्ले का सबसे प्रतिष्ठित शख्स समझने लगते हैं.
अब देश की राजनीति में भी कांग्रेस ने इसी चिट्ठी के महत्व को समझा है और इसके जरिये मतदाताओं से जुड़ने का प्लान बनाया है और इसे नाम दिया गया है- "हाथ से हाथ जोड़ो अभियान." इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता कि सत्ता में बैठने की आदी ही चुकी कांग्रेस को साल 2014 में उससे बाहर होने का जो करंट लगा है उसका झटका अभी तक खत्म नहीं हुआ है. हम नहीं जानते कि अपनी भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल गांधी हाशिये में जा चुकी कांग्रेस को फोरफ्रंट पर लाने में कितना कामयाब हुए हैं. और, गांधी परिवार के साथ ही ये तो कांग्रेस का कोई बड़ा नेता भी नहीं जानता कि वे अपने इस यात्रा में जुटे लोगों के हुजूम को वोटों में तब्दील करने में कितना कामयाब होंगे. लेकिन इस यात्रा पर शुरू से निगाह रखने वाले सियासी विश्लेषक मानते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के कार्यकताओं को ऑक्सिजन तो मिली ही है लेकिन सवाल ये है कि लोकसभा चुनाव होने तक क्या वे इसे जिंदा रख पाएंगे?
इसीलिये सियासी हलकों में ये माना जा रहा है कि चार हजार किलोमीटर लंबी पद यात्रा करने वाले राहुल को भी शायद ये अहसास हो गया कि उनकी इस यात्रा का 2024 के लोकसभा चुनाव आने तक असर खत्म हो जायेगा. इसलिये उन्होंने अपनी यात्रा खत्म करने से पहले ही "हाथ से हाथ जोड़ो" अभियान की शुरुआत करने का ऐलान कर दिया. हालांकि मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ राहुल गांधी के हाथ से लिखी इस चिट्ठी को हर मतदाता तक पहुंचाने और लगभग तीन महीने तक चलने वाले इस अभियान को पहले चरण में गांव और ब्लॉक स्तर पर, दूसरे चरण में जिला स्तर पर और तीसरे चरण में राज्य स्तर पर आयोजित किया जाएगा.
दरअसल, कांग्रेस का लक्ष्य है कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले तक देश के 10 लाख चुनावी मतदान केंद्रों और 2.5 लाख ग्राम पंचायतों समेत 6 लाख गांवों तक अपनी आवाज़ पहुंचाई जाये. बीती 26 जनवरी को लांच किए गए इस अभियान के वक़्त कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ आठ पेजी एक चार्जशीट भी जारी की है. साथ ही राज्यों की प्रदेश कांग्रेस कमेटी भी अपनी-अपनी राज्य सरकारों के खिलाफ ऐसी ही चार्जशीट बनाने में जुटी हुई हैं. हाथ से हाथ जोड़ो अभियान के तहत कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और पदाधिकारी अपने अपने क्षेत्र के मतदाताओं के घर जाएंगे और उन्हें कांग्रेस की विचारधारा के बारे में बताएंगे. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जो संदेश दिया गया उस संदेश को घर-घर पहुंचाया जाएगा. इस दौरान राहुल गांधी का एक पत्र लोगों को सौंपा जाएगा. साथ ही केंद्र सरकार की खामियां बताने वाली एक चार्जशीट भी बांटी जाएगी.
राजनीतिक विश्लेषक पंकज शर्मा कहते हैं कि मीडिया ने तो शुरुआत में भारत जोड़ो यात्रा का भी मजाक उड़ाते हुए उसे कोई तवज्जो नहीं दी थी. लेकिन जब यात्रा में लोगों का उमड़ता हुआ सैलाब देखा तो उसे कवरेज करना उसकी मजबूरी इसलिये बन गया कि वो सरकार के तमाम दबावों के बावजूद खुद को निष्पक्ष बताना और साबित करना चाहता था. पिछले साढ़े आठ सालों में मीडिया को ये सब दिखाने-लिखने की हिम्मत इसलिये नहीं करनी पड़ी कि राहुल गांधी पदयात्रा कर रहे थे बल्कि उसने देश की नब्ज़ को समझते हुए सच को सामने लाना जरुरी समझा क्योंकि इसमें बदलाव का आगाज़ साफ दिखाई दे रहा था सिर्फ राजनीतिज्ञों को नहीं बल्कि मीडिया में निष्पक्ष राय रखने वाले बहुत बड़े तबके को भी.
जब भारत जोड़ो यात्रा इतनी सफल ही हो गई तो फिर ये हाथ से हाथ जोड़ो अभियान शुरू करने की आखिर क्या मजबूरी थी? इस सवाल के जवाब में शर्मा कहते हैं कि ये एक ऐसी मुहिम है जिसके जरिये कांग्रेस अपने उन पूर्व सांसदों, विधायकों, निगम पार्षदों ,पंचायत अध्यक्षों व सदस्यों को दोबारा उस हैसियत में ला रही है जिन्हें लगता था कि पद से हटने के बाद वे हाशिये पर आ गए हैं और पार्टी में भी अब उनकी कोई पूछ नहीं है. लिहाज़ा, राहुल और प्रियंका गांधी के हाथों लिखी चिट्ठी को उनके जरिये अपने क्षेत्र के मतदाताओं तक पहुंचाने का एक अलग भावनात्मक महत्व है. इसलिये उनके जरिये ही कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी जमीन को हासिल करने की कोशिश कर रही है.
लेकिन सच तो ये है कि कांग्रेस नेतृत्व अभी भी अपने प्रदेशों में चल रही वर्चस्व की लड़ाई को सुलझाने में नाकामयाब रही है फिर चाहे वह राजस्थान हो हरियाणा हो या मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना ही क्यों न हो. इसलिए पंकज शर्मा सरीखे राजनीतिक विश्लेषकों के तर्क अपनी जगह सही होने के बावजूद सवाल ये उठता है कि जहां सबसे बड़ी पार्टी के संगठन में ही इतनी जबरदस्त आपसी खींचतान दिख रही हो तो क्या वह इस अभियान के बूते पर 2024 में कोई करिश्मा कर पायेगी?
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