मध्य प्रदेश विधानसभा में बजट सत्र के दौरान सदन की कार्यवाही से मुझे निलंबित करना लोकतंत्र की हत्या करने जैसा कदम है. जो विधानसभा के अध्यक्ष होते हैं वो इस बात की शपथ लेते हैं कि सत्ता और विपक्ष दोनों के साथ एक जैसा सलूक करेंगे और जब नंबर आएगा पहला तो वो विपक्ष का अधिकार होगा. बीजेपी के हमारे राज्य में पार्टी अध्यक्ष हैं, उन्होंने कार्यकर्ता के तौर पर अपने कृत्य कर रहे थे. पत्रकार और विधायक गण विधानसभा में मौजूद थे और दर्शक दीर्घा में जो लोग मौजूद थे वे साफतौर पर देख रहे थे कि किस तरह से सत्ता पक्ष के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की तरफ से उन्हें डिक्टेट किया जा रहा था.
ऐसी कोई घटना जिसमें निलंबन करनी पड़े, उसके लिए कुछ नियम है. सवाल उठता है कि आखिर निलंबन की नौबत क्यों आई? उसके कुछ नॉर्म्स होते हैं, कुछ परिस्थिति होती है.
जहां माइक होती है, वहां से मैंने अपनी बातें कही. कोई अपशब्द नहीं कहे. जो बातें बोली वो विधानसभा के प्रश्नों के उत्तर का आधार बनाकर बोली. उसको सरकार ने उत्तर दिया. उन्हीं की बातें मैंने सामने रखी और अध्यक्ष सुनने के तैयार नहीं थे. सच्चाई का सामना नहीं कर पा रहे थे.
भारतीय जनता पार्टी एक तरह से तड़प रही थी, इस बात को लेकर कि हमारी चोरी ये बता क्यों रहा है. मैं मानता हूं कि मेरे निलंबन का सार ये है कि मध्य प्रदेश के लोकतंत्र में भारतीय जनता पार्टी ने विधायक खरीदकर जो कलंकित किया था, अब लोकतंत्र को तार-तार कर रहा है.
मैं मानता हूं कि ये प्रदेश के लिए चिंतनीय विषय है. गंभीर मामला है और जनता इस पर चिंतन करे. भारतीय जनता पार्टी की निर्लज्जता सिर चढ़कर बोलने लगी है. जिस तरह से देश में होता है, ठीक वैसा ही यहां पर होने लगा है. इसको यही समझता हूं कि लोकतंत्र संकट में है. इसी प्रकार, अध्यक्ष इस तरह की भावना लगता है की रीढ़ की हड्डी नहीं है, तो क्या कहें, ये चिंता है.
मैं कुछ भी ऐसा नहीं बोला, जिससे मेरे खिलाफ किसी तरह का एक्शन लिया जाए. मैंने ये कहा कि ये सरकार ऐसी सरकार है, जो चीते लाती है विदेशों से. अरबों रुपये खर्च करती है, इवेंट बनाती है और देश विदेश का मीडिया बुलाती है. और हमारे यहां के बाघ, घड़िया और शेर के बदले ये छिपकली, तोते और चिड़िया लाती है. इस तरह की भावना अपने आप में ये बताती है कि सरकार सच का सामना नहीं कर पा रही है.
हम विपक्ष में हैं और जो हमारा अधिकार है उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. जब विधानसभा अध्यक्ष इस लायक ही नहीं बचे कि पद की गरिमा बना सके, तो ये नेचुरल है कि जो हमारे अधिकार हैं, उसका उपयोग कर रहे हैं.
राज्य सरकार करप्शन कर रही है. आप देखो जिस दिन बजट आया, उसी दिन हमने 3 हजार करोड़ का कर्ज लिया. 4 लाख करोड़ के हम कर्ज में हैं. 25 हजार करोड़ हम हर साल ब्याज देते हैं. और उसी दिन जिस दिन बजट आया, आरबीआई ने 10 हजार करोड़ की हमारी संपत्ति 3 हजार करोड़ में नीलाम कर दी.
ऐसे में मैं समझता हूं कि प्रदेश ये जानना चाहता है और हमारा ये दायित्व है ये सब बताने का. हमारे खिलाफ बिना नियम कानून के विधानसभा अध्यक्ष के एक्शन लेते हुए कार्रवाई से निलंबन किया है. इसके खिलाफ हम जमीन पर आंदोलन करेंगे. पार्टी इसके लिए कार्यक्रम बना रही है, जिसमें जिलावार पूरी घटना को ले जाया जाएगा.
चुनाव आयोग के लिए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा. ये अपना आप में ये बताता है कि सरकार सही तरीके से काम नहीं कर पा रही है. हर तरफ लूट और टेरर चल रहा है. मैं समझता हूं कि इसके लिए हम सबको जागना पड़ेगा. विधानसभा अध्यक्ष का ये एक्शन लोकतंत्र की हत्या, आवाज दबाने की कोशिश और दबाव की राजनीति है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी से बातचीत पर आधारित है.)