कांग्रेस वर्किंग कमेटी बैठक: राहुल के फैसले और प्रियंका के एक्शन का कांग्रेस अध्यक्ष वाला कनेक्शन
कांग्रेस पार्टी एक बार फिर गांधी परिवार के शरण में है. या फिर यूँ कहिए परिवार ही कांग्रेस है. पार्टी की वर्किंग कमेटी की बैठक से बस एक ही बात निकली ‘ राहुल गांधी ही हमारे संकटमोचक हैं’. शायद कांग्रेस की यही नीति और नियति हो. मीटिंग में मौजूद नेताओं ने एक साथ और एक साँस में यही कहा राहुल जी आप अध्यक्ष बन जाइये. बहन प्रियंका ने भी यही अपील की. राहुल ने भी कहा कि मैं विचार करूंगा. कुछ उत्साही नेता तो उन्हें तब तक के लिए कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की ज़िद करने लगे. पंजाब वाले नए नवेले सीएम चरणजीत चन्नी ने तो कह दिया कि राहुल जी आप कांग्रेस की संपत्ति हैं
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में जो हुआ उसकी स्क्रिप्ट तो पहले से तैयार थी. पंजाब से लेकर यूपी तक राहुल और प्रियंका गांधी के एक्टिव होने के पीछे यही रणनीति थी. इसका चुनाव से कोई ख़ास लेना देना नहीं था. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अनदेखी कर नवजोत सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना, फिर कैप्टन की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाना और उसके बाद सिद्धू बनाम चन्नी का झगड़ा .. ये सब मिशन कांग्रेस अध्यक्ष की कड़ियाँ हैं .. जिसे आप जोड़ कर देखेंगे तो पूरा मामला समझ में आ जायेगा. प्रियंका गांधी की पसंद सिद्धू है और चन्नी तो टीम राहुल के मेंबर है. इस तरह का बँटवारा भी उसी रणनीति का हिस्सा है. कैप्टन के रहते सिद्धू को अध्यक्ष बना कर ये मैसेज दिया गया कि पार्टी हाईकमान कठोर फ़ैसले ले सकता है. कांग्रेस नेतृत्व के आगे किसी की मनमानी अब नहीं चलेगी. पावर को लेकर चन्नी और सिद्धू की तनातनी फिर उसके बाद कांग्रेस आलाकमान की पंचायती. सिद्धू को ताकतवर बना कर भी पूरा पावर न देना.
यूपी में कांग्रेस की क्या हालत है, ये किसी से छिपी नहीं है. हर दांव आज़मा लिया लेकिन पार्टी की क़िस्मत नहीं बदली. प्रियंका गांधी ने इस बार यूपी चुनाव के लिए पूरी ताक़त झोंक दी है. लखीमपुर कांड को लेकर तो राहुल गांधी समेत पूरी पार्टी उनके पीछे खड़ी रही. सब जानते हैं प्रियंका लाख जतन कर लें यूपी में कुछ होने वाला नहीं है. पार्टी का अपना कोई सामाजिक आधार नहीं है. ऐसे में वोट मिले तो कैसे ? यूपी में प्रियंका के सुपर एक्टिव होने के पीछे कांग्रेस का संगठन चुनाव है. यूपी से ही AICC के सबसे अधिक मेंबर आते हैं. यहॉं से 174 नेताओं को वोट देने का अधिकार है. पार्टी के नियमों के मुताबिक़ AICC मेंबर ही अध्यक्ष चुनते है. इन मेंबरों पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए ही प्रियंका इन दिनों यूपी में पूरे फार्म में नज़र आ रही हैं.
सारा खेल राहुल गांधी को निर्विवाद रूप से कांग्रेस की अध्यक्ष चुनने की है. बहन प्रियंका इस काम के लिए गोटियॉं सेट कर रही है. पंजाब में कठोर फ़ैसले लेने वाला पार्टी हाईकमान राजस्थान में स्टेट्स को बनाए रखने के पक्ष में है. सचिन पायलट को राहुल और प्रियंका दोनों का करीबी माना जाता है. लेकिन उन्हें और उनके समर्थकों को जगह देने के लिए अशोक गहलोत पर अब तक कोई दवाब नहीं बनाया गया है. दिल्ली किसी भी सूरत में गहलोत को नाराज़ नहीं करना चाहता है. यही हाल छत्तीसगढ़ का भी है. ढाई ढाई साल का सीएम का फ़ार्मूला देने के बाद भी पार्टी आलाकमान टी एस सिंहदेव के बदले भूपेश बघेल के साथ खड़ी है. मामला उस घर परिवार की तरह है कि आप लोग लड़ते भिड़ते रहें हम हैं न सुलह सफ़ाई करवाने के लिए ..
साल भर बाद बाद कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा. राहुल गांधी ही अध्यक्ष थे और फिर हो जायेंगें .. जिन लोगों ने उनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए, उनमें से कुछ पार्टी की मुख्य धारा में आ गए हैं और जो कमजोर साबित हुए उन्हें किनारे लगाने की तैयारी है. कपिल सिब्बल के घर पर तो यूथ कांग्रेस के लोगों ने पत्थर तक बरसा दिए. G 23 के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेन्द्र हुड्डा राज्य सभा सांसद बन गए, यूपी में उम्मीदवार ढूँढने की ज़िम्मेदारी दे दी गई और आज कल वे प्रियंका गांधी के साथ नज़र आते हैं ..प्रियंका ने राहुल गांधी के लिए ऐसी फ़ील्डिंग सजाई कि पार्टी के अंदर वाले विरोधी चारों खाने चित हो गए .. ये तो कांग्रेस के अंदर पिछले कुछ महीनों से एक्शन और फ़ैसले वाली खिचड़ी पक रही थी, उसका अंतिम लक्ष्य अर्जुन की तरह पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी है. रणनीति बस यही है कि पहले पार्टी पर कंट्रोल कर लें फिर बीजेपी से निपटेंग.
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