22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर निर्मित मंदिर में पूरे हर्षोल्लास के साथ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई. चारों तरफ श्री राम के भक्तों के जय जयकार के बीच इस मुद्दे पर राजनीति भी हुई. प्राण-प्रतिष्ठा के मुहूर्त से लेकर मंदिर के अधूरा रहने तक पर बात हुई, मुद्दा बना. विपक्ष ने यह आरोप भी लगाया कि भाजपा ने पूरे मसले का राजनीतिकरण कर दिया है और वह कुछ ही महीनों में होनेवाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए आनन-फानन में में यह कार्यक्रम कर रही है. भाजपा ने बचाव में यही कहा कि फैसला कोर्ट का और आयोजन तीर्थस्थल क्षेत्र ट्रस्ट का है, जो कि कोर्ट के आदेश से ही बनाया गया है. कांग्रेस सहित कई दलों के नेता आमंत्रण मिलने के बाद भी आयोजन में शामिल नहीं हुए.


500 वर्षों के संघर्ष का सुफल  


यह अवसर 500 वर्षों के बाद आया है, जब राम लला को टाट से हटाकर ठाठ से उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई. एक तरफ विपक्षी पार्टियों ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया, तो वहीं इसे बीजेपी का कार्यक्रम भी बताया. बीजेपी ने पालमपुर रेवुलेशन में राम मंदिर के लिए विश्व हिन्दू परिषद के जरिए जो प्रस्ताव आया था, उसका समर्थन किया था और वह दशकों पुरानी बात है. ये एक बहुत ही सोची समझी साजिश थी कि राम को हम भगवान मानते है. लेकिन जो भी भारतवर्ष में रहते हैं वो राम से अलग हैं, उनको अलग कर दिया जाए. श्रीराम एक सांस्कृतिक पुरुष हैं. विपक्षी पार्टियों की बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है. जब उन्हें कार्यक्रम में आने के लिए आमंत्रण दिया गया तब उन्होंने अस्वीकार कर दिया. भगवान न तो बीजेपी के है न ही विपक्षी पार्टियों के है, भगवान श्रीराम सबके हैं. जहां तक विपक्षी पार्टियों द्वारा यह कहा गया है कि सब जल्दी-जल्दी चुनाव को देखते हुए किया गया है तो ये तो शुरू से ही तय था कि ऐसा ही होना है. एक कमेटी का निर्माण किया गया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भूमि पूजन किया गया. लोग भी यह बात अच्छे से जानते हैं कि कौन भारत की संस्कृति के लिए काम कर रहा है, कौन भारत के उत्थान के लिए कार्य कर रहा है, और कौन राजनीति कर रहा है? जब भी राम मंदिर का इतिहास लिखा जायेगा, इसमें बीजेपी का क्या इतिहास रहा है, इस देश की संस्कृति को आगे बढ़ाने में बीजेपी का क्या योगदान रहा है, इसे कोई नकार नहीं सकता है. मंदिर बनाने का फैसला कोर्ट का था, न कि बीजेपी का. 



कांग्रेस को नहीं देश की सांस्कृतिक समझ


कांग्रेस को अपने देश की संस्कृति की समझ नहीं है और शायद से उसे समझ तभी आयेगी जब इस वो इस देश की धरती से जुड़ेगी. हमारे देश की डेमोक्रेसी की खूबसूरती यहीं है कि सभी लोग जानते है कि कौन क्या कर रहा है? दंगों के ऊपर बात की जाए तो इतिहास के पन्नों को पलटकर जरूर देखना चाहिए. इससे यह पता चलेगा कि कांग्रेस की सरकार में ज्यादा दंगे हुए है या बीजेपी की सरकार में. आरएसएस, बीजेपी का भय दिखाकर मुसलमानों को बहुत प्रताड़ित किया गया है. आज के समय बीजेपी ने एक भी फैसला मुसलमानों के खिलाफ नहीं लिया है. इसके विपरीत मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिया है, तीन तलाक से छुटकारा दिलाया है और मुस्लिम युवाओं को स्कॉलरशिप दिया है. नरेंद्र मोदी की सरकार से मुसलमानों को बहुत लाभ हो रहा है, क्योंकि नरेंद्र मोदी ये सब गरीबों के लिए कर रहे हैं और गरीब लोगों में मुस्लिम लोग भी आते है. जब हम सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास की बात करते है तो हम समावेशी सरकार की बात करते है. मुसलमानों को भी यह समझने में थोड़ा समय लगेगा.  विपक्षी पार्टियों को डर है कि ये पार्टी आ जायेगी तो इसे हटाना नामुमकिन होगा, तो जाति के नाम पर हिन्दुओं को विभाजित करने का प्रयास और धर्म के नाम पर मुसलमानों को यूनाइट करने का काम किया जाता है. इस योजना के तहत ही विपक्षी पार्टियों ने काम किया है. अगर आप यह बोलते हैं कि हिन्दू विभाजित है, तो फिर मुस्लिम भी विभाजित है. डेमोक्रेसी काम करेगी तो दोनों के लिए काम करेगी.


अयोध्या का श्रेय भाजपा ने नहीं लिया 


अयोध्या में राम मंदिर बनने के फैसले से लेकर, राम मंदिर के उद्घाटन तक का श्रेय बीजेपी को दिया गया है, लेकिन बीजेपी ने अपने तरफ से से कभी नहीं कहा कि सब उन्होंने किया है. राम मंदिर इस देश का गौरव है जो हमेशा सभी के लिए प्रेरणा रहेगा. कोर्ट का फैसला इसलिए हमारे पक्ष में आया था क्योंकि हम सही थे. इस आन्दोलन में लोग मारे रए, कई लोगों ने अपनी आहुति दे दी, उसके बारे में भी सभी को सोचने की आवश्यकता है. जब भी राम मंदिर का जिक्र किया जायेगा इन सभी की भूमिका को जरूर याद किया जायेगा. 2024 के चुनाव के तारीखों का ऐलान होने वाला है, लेकिन विपक्षी पार्टियों के पास किसी प्रकार का कोई मुद्दा नहीं है जो वो चुनाव के पहले उठा सके. उनके पास सिर्फ एक ही मुद्दा है कि नरेंद्र मोदी को सत्ता से उतारो. वहीं बीजेपी का मुद्दा सिर्फ और सिर्फ विकास है. बीजेपी ने पिछले 9 सालों में काम किया है, काम का दिखावा नहीं किया है.


प्रधानमंत्री तीसरी बार भी भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनेंगे और ये सब देखेंगे. प्रधानमंत्री काम कर के लोगों के पास जा रहे है कि हमने ये काम किया है. साथ ही बता भी रहे हैं कि हम आगे यह काम करेंगे. जब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे और अमित शाह गुजरात के गृहमंत्री थे, तब उनके ऊपर ईडी, सीबीआई को उनके पीछे लगा दिया गया था, लेकिन सारी चीजें गलत थी, जो गलत करता है भय उसे होता है. ये बोलने की जरूरत नहीं है कि ये करप्ट लोग है, ये सभी जानते हैं. अभी जैसे ईडी के द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री समेत कई लोगों को समन भेजा जा चुका है, लेकिन वो ईडी के सामने नहीं जा रहे है और बार - बार किसी न किसी चीज का बहाना दे रहे है. यदि उन्होंने कुछ नहीं किया है तो ईडी के सामने जाना चाहिए. लोगों को भी तभी तो उन पर भरोसा होगा. विपक्ष को ईमानदारी से आत्मावलोकन की जरूरत है. 



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