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Opinion : अखिलेश-ममता का रामलला प्राण प्रतिष्ठा का न्यौता ठुकराना स्वभाविक, लेकिन कांग्रेस का रुख आश्चर्यजनक

अयोद्धया में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. इसी दिन रामलला की मूर्ति को विराजमान किया जाएगा. इस ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई लोग मौजूद रहेंगे. राम मंदिर के उद्घाटन के लिए बड़े-बड़े नेताओं समेत क्रिकेटर्स, बॉलीवुड, साधु-संत आदि लोगों को न्योता भेजा जा रहा है. इसी बीच देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी कांग्रेस ने बीते बुधवार को राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने का न्यौता ठुकरा दिया है. कांग्रेस के साथ-साथ कई अन्य पार्टियों ने भी राम मंदिर का न्यौता ठुकरा दिया है. इसके बाद फिर से सियासत गरमा गई है.

कांग्रेस के नेताओं ने किया था खूब हंगामा

दरअसल, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ने राम मंदिर उद्घाटन के आमंत्रण को ठुकरा दिया है. जिस तरह की इनकी राजनीति है, ममता बनर्जी अपने अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के लिए जानी जाती है. अखिलेश यादव की भी पूरी राजनीति वैसी ही है. कांग्रेस की बात करें तो सोनिया गांधी, अधीर रंजन चौधरी, मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो इनकार किया है, ये एक अपेक्षित लाइन नहीं है. जब तक रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र की ओर से बुलावा नहीं आया था, कांग्रेस के नेताओं ने खूब हंगामा किया गया था कि मल्लिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में होना चाहिए, सोनिया गांधी को भी बुलावा मिलना चाहिए. एक विधायक ने ये भी कह दिया था कि सिद्दारमैया अपने गांव में राम मंदिर की पूजा करेंगे, वो राम के बहुत बड़े भक्त है. ये एक चौकाने वाली बात है. 

कांग्रेस धारा के विरूद्ध तैरने की कोशिश करती हुई दिखना चाहती है

उत्तर प्रदेश कांग्रेस की ओर से बयान आया था कि उनके विधायक रामलला के दर्शन करेंगे. ऐसे में कांग्रेस का ये निर्णय कि राम मंदिर के उद्घाटन में नहीं जाना है, ये चौंका देने वाला है. इससे लगता है कि कांग्रेस धारा के विरूद्ध तैरने की कोशिश करती हुई दिखना चाहती है. जहां-जहां रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए निमंत्रण जा रहा है और अगर अगल-बगल किसी व्यक्ति को निमंत्रण नहीं मिल रहा है तो चावल-अक्षत ले करके राम भगवान की फोटो लेकर जगह-जगह संघ परिवार के कार्यकर्ता, हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता या सामान्य लोग जो जा रहे है, उनको बुलावा मिल रहा है तो दुखी, निराश मन से दिख रहे है और वो जाकर जबरदस्ती आमंत्रण ले रहे है. 

सांस्कृति को बना दिया गया है उल्लास का प्रतीक

एक तरह से ये संस्कृति को उल्लास का प्रतीक बना दिया गया है और ऐसे माहौल में अगर कांग्रेस जैसी पार्टी जिसके एक बड़े नेता जिनका नाम रोज जपती है, जो राम मंदिर की कल्पना करते है, राम मंदिर का नाम लेते है, वैसी पार्टी अगर इनकार करती है तो हैरानी होती है. अखिलेश यादव, ममता बनर्जी नहीं आते है तो दांव पर बहुत कुछ नहीं है, सिवाय यूपी-बंगाल के. वो ये जानते है और अखिलेश यादव को भी पता है कि वो तमिलनाडु में बहुत बड़ा कारामात नहीं करने वाले है.

साथ ही ममता बनर्जी भी जानती है कि वो ओडिशा में कोई बड़ा कारामात नहीं करने वाली है. उनको अपना वोट बैंक पता है, इसलिए वो अपना वोट साध रहे है. लेकिन कांग्रेस अखिल भारतीय पार्टी है, मधु लिमये जो पूरी जिन्दगी कांग्रेस की राजनीति करते रहे, उन्होंने 1995 में अपने आखिरी लेख में लिखा था जो हिन्दी और अंग्रेजी के अखबारों में छपा भी था. उन्होंने कांग्रेस को देश की एकता के लिए जरूरी बताया था, इसलिए कांग्रेस अखिल भारतीय पार्टी है और यही पार्टी इस तरह से सोचेगी तो वो सिर्फ 10-12 प्रतिशत, 14 प्रतिशत जो भी अल्पसंख्यक है उनके हिसाब से सोचेगी तो आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए बहुत ही चिन्तनीय बात होने वाली है. 

कांग्रेस को हो रही है तकलीफ

तुलसी के राम अपने है, कबीर के राम अपने है, लेकिन इसके बाहर भी तो कोई चीज होती है. तुलसी के राम की बात करते हुए पूरा गांव, पूरा समाज कहता है कि अपने गांव में मंदिर का निर्माण करें और उसमें कोई व्यक्ति अगर यह बोले कि आपने हाईजैक कर लिया है तो ये लगता है कि यह लोग भावना के अनूरूप नहीं है. कांग्रेस ने आखिर उस समय क्यों नहीं सोचा कि कण-कण में राम है और हर जगह राम है जब 1989 को शिलान्यास कराने के लिए ताला खुलवाती है. और रातों रात सीधे संघीय व्यवस्था की बड़ी बात होती है लेकिन उत्तर प्रदेश के सरकार से एकाद व्यक्तियों को छोड़ दिया जाए तो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय निर्देशित कर रहा है फैजाबाद के डिएम को.

कांग्रेस ने उस समय नहीं सोचा, उस समय भी तो राजनीत ही किया जा रहा था, वो हाईजैक करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन वो हाईजैक नहीं कर पाई. वहीं भाजपा ने हाईजैक कर लिया है तो उसे तकलीफ हो रही है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस के जो रणनीतिकार है और इन लोगों ने मिलकर जो माहौल बनाया है और वो जिस तरह से कांग्रेस की जो राजनीति है, जो सोच है, जिस तरह से हाईजैक कर रहे है , उसको अपने कब्जे में कर रहे है. ऐसा लग रहा है कि ये कांग्रेस के लिए आत्म घाती साबित होने वाला है. 

राम मेरे कण कण में है

भारतीय जनता पार्टी कहां कहती है कि राम मेरे कण कण में है, राम सबके राम है. यदि भाजपा ने हाईजैक कर लिया है तो हाईजैक करने में समझदारी तभी मानी जाएगी जब उस हाईजैक को आप तोड़ दो. हाईजैक तोड़ने की कोशिश भी नजर नहीं आ रही है. कांग्रेस भागते हुए दिख रही है. नाकराना या भागना एक जैसा ही होता है. दिल्ली मे देखा गया कि एक कॉलोनी में राम मंदिर निमंत्रण लेकर अक्षत, फूल लेकर लोग गए, कॉलोनी में क्रिश्चन लोग भी थे. और क्रिश्चन लोगों ने पहले अक्षत लेने से खूद ही अपने आप को अलग रखा की हम तो क्रिश्चन है, फिर अक्षत देने वाले लोगों ने कहा कि राम तो सबके है, अक्षत लेने से आपको मना नहीं कर रहे है कि आप मत लिजिए.  

सीपीएम कांग्रेस के साथ और कांग्रेस सीपीएम के

लोकतंत्र में उत्साह का बहुत महत्व होता है. कांग्रेस तो सबसे पुरानी पार्टी है. उसके लोग यदि इस तरह से बात करेंगे तो ऐसा लगता है कि वो अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे है. 1996 की परिस्थितियों के हिसाब से सीपीएम के नेता ज्योति बसु को प्रधानमंत्री पद का ऑफर दिया था पूरे गैर कांग्रेसी विपक्ष और गैर भाजपयी विपक्ष ने. तब सीपीएम पोलित ब्यूरो ने उसे नाकार दिया. दो-तीन साल के बाद ही उसे ऐतिहासिक करार दिया गया. आज सीपीएम कांग्रेस के साथ है और कांग्रेस के सीपीएम के. सीपीएम का ही हस्र कांग्रेस का भी होता हुआ नजर आ रहा है. देखना यह है कि कुछ महीने बाद इस नाकार का उसे फायदा होता है या नुकसान. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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