देश में लोकसभा चुनाव और गरमी, दोनों ही अपने उरोज पर हैं. दो चरणों का मतदान हो चुका है और अब तीसरे चरण के मतदान में महज कुछ ही दिन बाकी है. हम सबको पता है कि चुनाव में जनता अपने मत का इस्तेमाल कर अपने प्रतिनिधि को चुनती है, पर इस बार के लोकसभा चुनाव में कुछ हटकर हुआ, पहले सूरत में कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों ने अपना नामांकन वापस ले लिया, जिसके बाद बीजेपी के प्रत्याशी की निर्विरोध जीत हुई. दूसरा झटका कांग्रेस को लगा जब इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. इससे पहले जिस तरह कांग्रेस और अन्य पार्टियों से नेता लगातार भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उन सभी को लेकर यह सवाल उठने लगा कि क्या राजनीति में अब सूरत-इंदौर वाला तरीका भी शामिल हो गया है? 


कांग्रेस का सूरत-इंदौर सिंड्रोम


कांग्रेस ने दावा किया कि कुछ लंबित मामलों के कारण अक्षय क्रांति पर दबाव डाला गया था और इस वजह से उन्होंने भाजपा का दामन थामा. पार्टी ने साथ ही इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है, पर कांग्रेस से कहां गलती हुई इस पर बात नहीं हो रही है. ऐसे में लगता है कि बीजेपी का रथ कहीं बिहार न आ जाये, बिहार में ऐसी परिस्थितयां बन भी रहीं हैं. आखिर इसकी कोई गारंटी भी नहीं है कि प्रत्याशी कब अपना खेमा बदल ले. खासकर ऐसे उमीदवार जिनका अतीत अदला-बदली वाला या किसी और पार्टी से जुड़ा हुआ हो.  बिहार में कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से 8 सीटों पर उम्मीदवारों को घोषित कर दिया गया है.


वहीं एक सीट पटना साहिब की बची है, जहां पर चर्चा है कि यहां से लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार अपने बेटे अंशुल अविजीत को सीट दिलाना चाहतीं हैं. अंशुल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, पर आज-तक वह कांग्रेस का पक्ष लेकर मीडिया से रूबरू नहीं हुए. पहले ये भी खबर उठी कि अंशुल को बीजेपी के तरफ से सीट मिल सकती है जिसके बाद अंशुल ने इस खबर का खंडन कर  दिया, लेकिन उनकी मां ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. ऐसे में सवाल उठता है के आप ऐसे व्यक्ति पर भरोसा कर सकते हैं जो मीडिया पैनेलिस्ट रहते हुए आपकी पार्टी का पक्ष मीडिया के सामने ना रखता हो? इसकी क्या गारंटी है कि वो अपना नांमकन वापस नहीं लेंगे या किसी दूसरी पार्टी में शामिल नहीं होंगे? 



एक नहीं कई उम्मीदवारों पर संशय


दूसरा उदहारण, मुजफ्फरपुर से है. यहां से विधायक वीरेंदर चौधरी को वहां का कद्दावर नेता माना जाता है. वह कई सालों से कांग्रेस में हैं, पर आखिर में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बीजेपी से दो बार सांसद रह चुके अजय निषाद को बना दियाय कांग्रेस ने रातों रात उनको सदयस्ता दिलाई और उमीदवार बना दिया. ऐसे में क्या गारन्टी है कि अजय निषाद अंतिम समय में अपना पाला न बदलें, हालांकि पिछले चुनावों में वीरेंदर चौधरी ने अजय निषाद को कड़ी टक्कर दी थी. ऐसे ही महाराजगंज से कांग्रेस के उम्मीदवार और अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र आकाश सिंह का नाम है, जो पहले राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़े थे. आकाश सिंह की क्या गारंटी है कि वो कांग्रेस के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएंगे या जरूरत होने पर पाला नहीं बदल लेंगे?


कांग्रेस ने सासाराम लोकसभा क्षेत्र से मनोज कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है. 8 अप्रैल को मनोज कुमार पर पोक्सो के तहत मुकदमा दर्ज़ होता है और 20 अप्रैल को कांग्रेस सासाराम से उन्हें बतौर प्रत्याशी खड़ा करती है, ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों मनोज कुमार पर चल रहे केस पर पार्टी ने ध्यान नहीं दिया था? उत्तर भारत में बिहार ही ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस बीजेपी को टक्कर दे, इसके आसार हैं. सीट आवंटन में गलती के कारण बिहार की चार-पांच सीट इस बार कांग्रेस की फंस गयी हैं, उम्मीदवार देने में पार्टी कहीं न कहीं गलती का शिकार हुईं हैं.


कांग्रेस, उसके प्रत्याशी, आलाकमान


बिहार के मामले में कांग्रेस सीरियस थी, चाहें पप्पू यादव की पार्टी के विलय की बात हो या फिर राजद के साथ उसी की शर्तों पर समझौता करने की, कांग्रेस ने बिहार में खुद को वापस लाने के लिए शुरुआत तो सधी हुई की. हालांकि, फिर राहुल गांधी ने पप्पू यादव के खिलाफ ही जाकर भाषण दे दिया. दूसरी तरफ, राजद के प्रवक्ता और तमिलनाडु के डीजीपी रहे करुणा सागर को कांग्रेस पार्टी में शामिल किया गया. अब राजद के साथ आपका गठबंधन भी है और आप राजद से ही दल-बदल भी खेल रहे हैं. इंदौर-सूरत की घटना के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस चुनाव को लेकर गंभीर है?


राहुल गांधी द्वारा की गयी भारत जोड़ो यात्रा, फिर भारत न्याय यात्रा को देख एक बार को लगता है कि कांग्रेस गंभीर है. पर फिर यह सवाल उठता है कि क्या पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने टिकट आवंटन से पहले प्रत्याशियों की प्रोफाइलिंग नहीं की थी? अभी तो फिलहाल कांग्रेस के लिए अच्छी खबर ये है कि पार्टी ने बिहार के लिए कमेटी बनायी है और एक समीक्षक को बिहार भेजा है, जिससे प्रत्याशियों पर नज़र रखी जा सके. इस पूरे चुनाव में हालांकि, कांग्रेस को इसका डर तो लगा ही रहेगा कि इंदौर-सूरत का दृश्य फिर न दोहरा जाये.


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