कांग्रेस में इस समय बाकी मुद्दों के साथ साथ इस बात पर नजरें हैं कि अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा का उत्तराधिकारी कौन होगा. मोतीलाल वोरा अखिल भारतीय कांग्रेस का प्रशासनिक कामकाज देख रहे थे जबकि अहमद पटेल पार्टी के लिए कोष जुटाते थे. उन दोनों के बीच 20 सालों से सभी वित्तीय मामलों को देखे जाने का सिलसिला जारी था. पार्टी को इस समय नए नेतृत्व के नाम के अलावा इस काम के लिए भी एक दमदार नेता की जरूरत है और ये आगामी चुनावों को देखते हुए और भी जरूरी हो जाता है.


पार्टी के नेतृत्व के मुद्दे को देखा जाए तो तीन विचार हैं जो इस विशाल पुरानी पार्टी के भीतर उठ रहे हैं और हरेक के अपने अपने तर्क हैं. जो लोग राहुल गांधी को दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत करते हैं उनका कहना एकदम साफ है कि पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार ने राहुल गांधी में साल 2004 से इतना भारी समय और ऊर्जा लगाई है जबसे उन्होंने आधिकारिक रूप से कांग्रेस पार्टी जॉइन की थी. उनका कद पार्टी में लगातार बढ़ा और साल 2006 में वो पार्टी के महासचिव बन गए. साल 2013 में पार्टी के उपाध्यक्ष के तौर पर सामने आए और 87वें एआईसीसी प्रमुख के तौर पर पार्टी के सभी समूहों और इकाइयों से स्वीकृत हुए. अब अगर इसमें कुछ बदलाव किया जाता है या फिर से विचार किया जाता है तो राहुल गांधी के पास कोई रोल और पोजीशन नहीं रहेगी जो कि पहले से मौजूद राजनीतिक और श्रेणीबद्ध समीकरणों को बिगाड़ सकता है.


कांग्रेस पार्टी में भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली लॉबी है जो चाहती है कि सोनिया गांधी दिसंबर 2022 तक पार्टी के अध्यक्ष पद पर बनी रहें जब तक कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव निर्धारित है. कांग्रेस के संविधान में स्थित आर्टिकल 18 (एच) के मुताबिक एआईसीसी (1300 पुराने सदस्य) के 'नियमित अध्यक्ष' का चुनाव तभी होगा जब पार्टी का अध्यक्ष इस्तीफा दे दे वहीं सामान्य पार्टी अध्यक्ष का चुनाव प्रदेश कांग्रेस कमिटी के 15000 प्रतिनिधियों की सहमति से हो.


कांग्रेस के जो नेता सोनिया गांधी का समर्थन कर रहे हैं वो चाहते हैं कि सोनिया गांधी राज्यों का दौरा शुरू करें, हर राज्य में पार्टी के नेताओं से मिलें और क्षेत्रीय पार्टियों से मिलकर एक एंटी एनडीए और बीजेपी-नरेंद्र मोदी मंच को बनवाने के लिए प्रयास करें. अगर सोनिया गांधी इस प्रस्ताव को मान जाती हैं तो पार्टी के सीनियर नेता कमलनाथ इस काम में उनका सहयोग दे सकते हैं जो पहले अहमद पटेल किया करते थे. कमलाथ इस काम को करने के लिए बेहद उत्साहित हैं और बिना किसी पद और आधिकारिक पोस्ट के इस काम को करना चाहते हैं.


तीसरा परिप्रेक्ष्य वो है जिसमें एक गैर गांधी परिवार को कांग्रेस का मुखिया बनाने की स्थिति को देखा जाता है. इसमें मु्ख्य तौर पर जो नाम सामने आते हैं उनमें मुकुल वासनिक, अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल की चर्चा हैं. हालांकि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि राहुल गांधी का आशीर्वाद किसे मिल पाता है.


राहुल गांधी काफी समय से निष्क्रिय और चीजों को टालने वाले व्यक्तित्व के रूप में दिख रहे हैं. मई 2019, जब से उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था तब से वो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुनने के लिए कह रहे हैं और ये भी चाह रहे हैं कि उन्हें, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को इस प्रक्रिया में शामिल न किया जाए. आभासी रूप से देखा जाए तो इस पद को लेने के लिए कोई तैयार नहीं है. राहुल गांधी का ये विचार है कि उनके और उनके परिवार के हस्तक्षेप के बिना पार्टी और उसका कार्य, जवाबदेही और अन्य कार्यों पर जोर दिया जाए लेकिन इसको लगातार पार्टी के 150 सीनियर नेताओं द्वारा खारिज किया जाता रहा है. कई कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों, राज्य पार्टी इकाइयों के प्रमुख, सीएलपी नेताओं और अन्य प्रभावशाली नेताओं से जुड़े गुट खुद को राहुल-सोनिया-प्रियंका के नियुक्त किए हुए सिपाहियों के रूप में मानते हैं और ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं करते हैं जहां उनके संरक्षक उनके चारों ओर एक सुरक्षात्मक घेरा बनाए नहीं रहेंगे. ऐसा महसूस होता है कि विरोधाभास की ये स्थिति ही कांग्रेस के नए मुखिया के आसपास की अनिर्णय का मूल कारण बन रही है.


कुछ के लिए, नए AICC प्रमुख की नियुक्ति का इतना असर नहीं होता है, क्योंकि कांग्रेस का राजनीतिक नेतृत्व दृढ़ता से गांधी परिवार के हाथों में है. इस समय उनकी वरीयता ये है कि सोनिया और राहुल गांधी मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल के उत्तराधिकारी के रूप में किसे चुनते हैं. उनको ये जानना है कि क्या वो नेता नई पीढ़ी के नेताओं जैसे कनिष्क सिंह, सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा में से एक हो सकते हैं या पुराने अनुभवी नेताओं जैसे राजीव शुक्ला, कमलनाथ, अशोक गहलोत और डी शिवकुमार के पास कमान जाएगी. इससे भी ज्यादा खजाने की जिम्मेदारी इस समय किसी को देना बहुत खास है क्योंकि खासतौर पर बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुद्दुचेरी विधानसभा चुनाव आने वाले हैं.


पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल इस समय ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के कोष को मैनेज कर रहे हैं. हालांकि बंसल को पूर्णकालिक कांग्रेस का कोषाध्यक्ष के रूप में देखा नहीं जा रहा है. जैसा कि हम पहले भी जिक्र कर चुके हैं कि कांग्रेस कमिटी का कोषाध्यक्ष वो पद है जो सबसे महत्वपूर्ण है और इस पर लोगों की नजरें हैं. यह पद पहले उमा शंकर दीक्षित, अतुल्य घोष, प्रणब मुखर्जी, पी आर सेठी, सीताराम केसरी, मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल के पास रहे हैं. इनमें से अधिकांश लोग ऐसे थे जिन्होंने लगातार पार्टी हाईकमान के भरोसे का आनंद लिया, क्योंकि वे इस बात के गोपनीय विवरणों को पूरी तरह जानते थे कि पैसा कैसे आ रहा है और कहां जा रहा है. पार्टी के कोषाध्यक्ष का काम न केवल फंड जुटाना है, बल्कि पार्टी की भीड़ के भीतर से भीड़ और समर्थन तब भी होता है जब नेता (राहुल) की किस्मत विधानसभा और संसदीय चुनावों में भारी नहीं होती है.


सोनिया और राहुल दोनों मितभाषी व्यक्ति रहे हैं. कोविड- 19 प्रतिबंधों से पहले उनसे मिलना या उनसे बात करना भी आसान नहीं रहा है. वोरा और पटेल प्रभावी प्रबंधक थे, जो वास्तव में किसी से भी और सभी से मिलते थे और अपने मुद्दों को 'हाईकमान 'तक ले जाते थे. कुछ लोग चाहते हैं कि प्रियंका गांधी उस भूमिका को निभाएं, लेकिन ये भी साफ है कि वो राहुल से बात किए बिना काम नहीं करेंगी.


अगर राजीव शुक्ला को कोई भी अहम पद दिया जाता है तो ये साफ है कि प्रियंका गांधी का उनके पीछे समर्थन जरूर होगा. राजीव शुक्ला तब से प्रियंका गांधी खेमे के हैं जब उन्होंने राजनीति जॉइन भी नहीं की थी. कनिष्क सिंह की बात की जाए तो वो काफी समय से राहुल गांधी के सहयोगी रहे हैं. कनिष्क सिंह पहले न्यूयॉर्क की मर्चेंट बैंकिंग फर्म लेजार्ड फ्रेर्रस एंड कंपनी से जुड़े रहे और प्रसिद्ध राजनयिक एस के सिंह के बेटे हैं. कनिष्क सिंह को कांग्रेसी हल्कों में 'K' के नाम से जाना जाता है और उन्हें स्वर्गीय मोतीलाल वोरा द्वारा नेहरू-गांधी परिवार के ट्रस्टों, देश भर में फैली AICC संपत्तियों और द नेशनल हेराल्ड से जुड़े कानूनी मामलों को संभालने की ट्रेनिंग भी दी गई थी.


हर गुजरते दिन के साथ अहमद पटेल को कांग्रेसी और ज्यादा याद कर रहे हैं. वो कांग्रेस की राजनीतिक मुश्किलों को हल करने में जिस तरह कामयाब थे वो याद किया जा रहा है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि कुछ ऐसा ही कड़वा अनुभव सोनिया गांधी को उस समय भी हुआ था जब साल 2019 में पार्टी के एक सीनियर नेता को फंड इकट्ठा करने के लिए कहा गया था और उस समय कुछ दिक्कतें आई थीं. लिहाजा कह सकते हैं कि गांधी परिवार के लिए एक बार फिर मुश्किल समय आया है और उन्हें ऐसे किसी नेता की जरूरत है जो मोतीलाल वोरा और अहमद पटेल के खांचे में फिट बैठ सके.


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