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विवादित बयान देने का ये सिलसिला आख़िर कब और कहाँ जाकर रुकेगा?

पैगम्बर मोहम्मद (Prophet Muhammad) पर विवादित बयान (Controversial Statement) देने वाली नेता नुपूर शर्मा (Nupur Sharma) को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद बीजेपी (BJP) ने अब अपनी हरियाणा इकाई के आईटी सेल के इंचार्ज (IT cell In-charge) अरुण यादव (Arun Yadav) को भी अपने पद से हटा दिया है. बताया गया है कि यादव ने मुस्लिमों और इस्लाम मज़हब को लेकर कुछ विवादित ट्वीट किये थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार करने की मांग ने सोशल मीडिया पर जोर पकड़ लिया था.

बीजेपी नेतृत्व ने मामले की नज़ाकत को समझते हुए गुरुवार को उन्हें अपने पद से हटा दिया. हालांकि यादव को फिलहाल पार्टी से निलंबित नहीं किया गया है. लेकिन सवाल ये उठता है कि विवादित बयान देने या ऐसे ट्वीट करने का ये सिलसिला आखिर कहां जाकर रुकेगा?

अरुण यादव के कई टवीट हुए वायरल
दरअसल, अरुण यादव की मुसीबत तब और ज्यादा बढ़ गई, जब उनके किये गए ट्वीट को विरोधियों ने सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में शेयर करते हुए ये सवाल उठाना शुरू कर दिया कि आखिर यादव को ये आज़ादी कैसे मिल गई? जो सलूक मोहम्मद जुबैर के साथ किया गया, वैसा ही अरुण यादव के साथ आखिर क्यों नहीं किया जा रहा है? फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर को 2018 में किये गए उनके एक विवादित ट्वीट को लेकर दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया है और फ़िलहाल वे न्यायिक हिरासत में हैं. जुबैर की जमानत अर्जी पर आज यानी शुक्रवार (8 जुलाई 2022) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी होनी है.

सोशल मीडिया पर उठी अरुण यादव की गिरफ्तारी की मांग
गुरुवार को ट्वीटर पर #ArrestArunYadav टॉप ट्रेंड के साथ छाया रहा और लोगों ने बीते मई महीने और 2017 में यादव द्वारा किये गए ट्वीट्स को हजारों की संख्या में शेयर किया. हालांकि अरुण यादव के विवादित ट्वीट को लेकर हरियाणा पुलिस को गुरुवार की देर रात तक कोई शिकायत नहीं मिली थी. लेकिन बीजेपी आलाकमान ने समझदारी दिखाते हुए अरुण यादव को आईटी सेल के इंचार्ज पद से हटाने में ही अपनी भलाई समझी, ताकि नुपूर शर्मा की तरह ये मामला भी कहीं तूल न पकड़ ले.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में हैदराबाद में संपन्न हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी कार्यकर्ताओं को मुस्लिमों के बीच जाने की सलाह देते हैं और नफरत का माहौल खत्म करने के लिये देश भर में "स्नेह यात्रा" निकालने का सुझाव देते हैं, तो फिर आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि पार्टी का सोशल मीडिया संभालने वाले लोग ही इतने बेलगाम होते जा रहे हैं? पार्टी के एक आम कार्यकर्ता के मुकाबले उनकी जिमेदारी तो और भी ज्यादा है कि वे किसी दूसरे समुदाय की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने वाली कोई भी पोस्ट करने से न सिर्फ स्वयं को दूर रखें, बल्कि ऐसी हरेक पोस्ट का समर्थन करने से भी बचें.

प्रधानमंत्री के इतना साफ संदेश देने के बावजूद अगर पार्टी के नेता उसका अर्थ नहीं समझ पा रहे हैं, तो आलाकमान के पास यही रास्ता बचता है कि नुपूर शर्मा का बवाल मचने के बाद जिस तरह से पार्टी प्रवक्ताओं के लिए गाइडलाइन जारी की गई थी कि उन्हें टीवी डिबेट में किन मुद्दों पर बोलने से बचना है,ठीक वही दिशा निर्देश पार्टी का सोशल मीडिया संभाल रहे लोगों पर भी लागू किये जाएं. इसलिए कि अगर सत्ताधारी पार्टी ने ही इस अनुशासन को लागू नहीं किया,तो आने वाले दिनों में ये मर्ज एक नासूर का रूप ले सकता है,जिसका समाज को न जाने कितना बड़ा नुकसान झेलना पड़े.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा जुबैर की गिरफ्तारी का मुद्दा
इस बीच मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी का मामला अंतराष्ट्रीय मंच पर भी उछल रहा है. पहले संयुक्त राष्ट्र ने इस पर अपना ऐतराज जताया था और अब जर्मनी ने भी इसे लेकर भारत के लोकतंत्र पर तंज़ किया है. बुधवार को जर्मन विदेश मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर पूछे गए सवाल के जवाब में जर्मन विदेश मंत्रालय ने कहा, ''भारत ख़ुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है. ऐसे में उससे लोकतांत्रिक मूल्यों मसलन-अभिव्यक्ति और प्रेस की आज़ादी की उम्मीद की जा सकती है. प्रेस को ज़रूरी स्पेस दिया जाना चाहिए. हम अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर प्रतिबद्ध हैं. दुनिया भर में प्रेस की आज़ादी का हम समर्थन करते हैं. यह ऐसी चीज़ है, जिसकी काफ़ी अहमियत है. और यह भारत में भी लागू होता है. स्वतंत्र रिपोर्टिंग किसी भी समाज के लिए बेहद ज़रूरी है. पत्रकारिता पर पाबंदी चिंता का विषय है. पत्रकारों को बोलने और लिखने के लिए जेल में नहीं डाला जा सकता है.''

भारत ने दिया जर्मनी को जवाब
लेकिन भारत ने जर्मन विदेश मंत्रालय (German Foreign Ministry) की टिप्पणियों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. भारत सरकार (Indian Government) ने इसे "एक आंतरिक मुद्दा" बताया है. सरकार ने कहा कि यह मामला अदालत में चल रहा है, ऐसे में इस पर कोई टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है. विदेश मंत्रालय (Foreign Ministry) के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, "यह हमारा आंतरिक मामला है. मामला अदालत में चल रहा है. हमारी कानूनी व्यवस्था स्वतंत्र है और फिलहाल इस पर कोई भी टिप्पणी अनुपयोगी होगी."

लेकिन सवाल फिर वही है कि हम अपने घर के अंदरुनी मसलों को संभालने या उन्हें सुलझाने में आखिर ऐसी क्या गलती कर रहे हैं,कि पड़ोसियों  को हमें नसीहत देने की इतनी शह मिल रही है?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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