Christmas and New Year Celebration: अगर आप क्रिसमस और नए साल का जश्न मनाने के लिए किसी बड़ी पार्टी में जाने की तैयारी कर चुके हैं, तो उसे किसी और के लिए नहीं बल्कि अपनी जिंदगी की खातिर कैंसिल करने में ही आपकी भलाई है. इसलिए नहीं कि आपके राज्य के सरकार के आदेश के बाद ही उसे माना जाए, बल्कि इसलिए कि जिस अज्ञात दुश्मन को हमने कुछ हल्के में लेना शुरू कर दिया है, वो फिर अपना रंग-रूप बदलकर हमला कर रहा है और विशेषज्ञों की मानें, तो आने वाले दिनों में इसका असर और ज्यादा होने वाला है.
जाहिर है कि हर किसी के दिमाग में यही सवाल उठेगा कि कोरोना का ये नया रूप ओमिक्रोन हमारा क्या बिगाड़ लेगा क्योंकि फिलहाल तो उसका कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है, लेकिन हमारे देश में इस महामारी की पहली और दूसरी लहर देखने के बाद दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक अभी ये बताने की हैसियत में नहीं है कि हमारे यहां ये किस तेजी से और किस हद तक फैलने वाला है. हालांकि आबादी के लिहाज से हमारे देश में ओमिक्रोन की गिरफ्त में आने वालों की संख्या बेहद मामूली है लेकिन अब तक वो 11 राज्यों में पैर पसार चुका है, जो अपना खौफनाक रूप दिखाने की तरफ आगे बढ़ रहा है. अगर WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी पर गौर करें और उसका अपने हिसाब से ही मतलब निकालें, तो ये नया वायरस उतना खतरनाक नहीं है, जो लोगों को मौत की नींद सुला दे लेकिन ये संक्रमित इंसान को कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर मजबूर अवश्य ही कर देगा. ब्रिटेन इसका सबसे ताजा उदाहरण है, जहां हर रोज 79 हजार से भी ज्यादा मरीज आ रहे हैं. लिहाजा, दुनिया के तकरीबन 77 से ज्यादा देशों को लिए WHO ये चेतावनी जारी कर चुका है कि कोरोना के इस नए स्वरुप को हल्के में इसलिए भी मत लीजिए क्योंकि ये डेल्टा से ज्यादा तेजी से फैलने वाला है. लेकिन सच तो ये है कि हम चाहे जितनी तरक्की कर लें लेकिन आज भी भारत की गिनती उन देशों में होती है, जहां लोग सबसे ज्यादा बेपरवाह हैं और जो स्वास्थ्य को लेकर अभी भी उतने जागरुक नहीं बन पाए हैं.
दरअसल, भारत में हम लोग कोरोना के जिस नए वेरिएंट यानी ओमिक्रोन को बेहद हल्के में ले रहे हैं, वह न तो इतना हल्का है और न ही वो अभी तक वैज्ञानिकों की पकड़ में आ पाया है कि इसे काबू में करने के लिए आखिर क्या वैक्सीन तैयार की जाए.
पिछले महीने के मध्य में दक्षिणी अफ्रीका के बोत्सवाना में वैज्ञानिक एक नए तरीके के कोविड वायरस के सैंपल देख रहे थे. उन्हें वायरस की स्पाइक प्रोटीन में कई ऐसे म्यूटेशंस दिखे जो पहले नहीं देखे गए थे. वैज्ञानिक अभी अपनी रिसर्च ही कर रहे थे कि महज तीन हफ्तों के भीतर ही वायरस का ये नया वेरिएंट 70 से अधिक मुल्कों और अमेरिका के करीब 15 राज्यों में फैल चुका था. उसके संक्रमण का सिलसिला कितने और देशों को अपनी चपेट में लेने वाला है, ये दुनिया का कोई वैज्ञानिक दावे के साथ नहीं बता सकता. यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वेरिएंट B.1.1.529 का नाम दिया ओमिक्रोन और इसे "चिंता का विषय" बताया. हालांकि WHO ने इसे डेल्टा से अधिक संक्रामक तो बताया है, पर साथ ही ये भी कहा है कि उसके मुकाबले ये अधिक घातक है या नहीं, ये पता लगाने में अभी वक्त लगेगा.
मेडिकल साइंस की भाषा में कहते हैं कि ये वायरस बेहद तेजी से म्यूटेशन कर रहा है लेकिन वो म्यूटेट क्यों करता है? तो वैज्ञानिक इसका जवाब देते हैं कि "किसी भी इंसान को संक्रमित करने के बाद ये वायरस और फैलने के लिए अपनी नकल बनाता है, ये उसके लिए कभी न रुकने वाली प्रक्रिया का ही हिस्सा है. इस दौरान वो कभी-कभी गड़बड़ी कर देता है जिसे हम म्यूटेशन कहते हैं. जब वायरस में इतने म्यूटेशन हो जाते हैं कि वो पहले से अलग दिखने लगे तो उसे नया वेरिएंट कहा जाता है."
गौरतलब है कि कोरोना वायरस सबसे पहले चीन के वुहान में मिला था. कुछ वक्त बाद इसका एक वेरिएंट सामने आया जिसे अल्फा नाम दिया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूनानी अक्षरों की तर्ज पर वेरिएंट्स के नाम दिए और हाल के डेल्टा (B.1.617.2) के बाद अब वायरस का नया ओमिक्रोन वेरिएंट ( B.1.1.529) सामने आया है.
दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ क्वाज़ुलू-नटाल में संक्रामक रोग के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर रिचर्ड लेज़ल्स के मुताबिक, "शुरुआत में माना जा रहा था कि इस संक्रमण से लोग मामूली बीमार पड़ रहे हैं. लेकिन इनमें से अधिकतर 10 से 30 साल की उम्र तक के किशोर व युवा थे और उनमें भी अधिकांश छात्र थे जिनका लोगों से मिलना-जुलना अधिक था. हमें समझना होगा कि पूरी तरह वैक्सीनेटेड न होने पर भी वो गंभीर रूप से बीमार नहीं होंगे लेकिन वे इस संक्रमण को फैलाने का बड़ा जरिया तो बनेंगे."
दुनिया के विभिन्न देशों के विशेषज्ञ मानते हैं कि जब डेल्टा की लहर आई थी, तब दोबारा संक्रमण की दर में कुछ खास बढ़त नहीं देखी गई. लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है और ओमिक्रोन वायरस की लहर शुरू होते ही अधिकतर संक्रामक विशेषज्ञ ये मान रहे हैं कि दोबारा संक्रमण फैलने में तीन गुना तक की बढ़ोतरी हो सकती है. वैज्ञानिकों को भाषा में कहें, तो इसका मतलब ये है कि ये वेरिएंट लोगों की उस इम्यूनिटी पर भी हमला कर रहा है जो लोगों को पहले हुए संक्रमण से मिली थी. यानी अगर कोई व्यक्ति कोरोना वैक्सीन की दो डोज ले भी चुका है, तब भी उसे इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि ओमिक्रोन उसके आसपास फटकेगा भी नहीं.
दरअसल, हमारी मानसिकता ही कुछ ऐसी बन चुकी है कि कोरोना महामारी का असर कम होते ही हमने उससे बचने की सारी एहतियात को भुला दिया है. लोग आपस में कुछ ऐसे घुल-मिल रहे हैं, मानो इस नए वायरस का हमसे कुछ लेना-देना ही नहीं है. देखा जाए तो सार्वजनिक तौर पर अधिक लोगों के एक जगह इकट्ठा होने पर अब कोई पाबंदी नहीं रह गई है और यूपी समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनावों की रैलियों में जुटने वाली हजारों लोगों को भीड़ इसकी जीती जागती मिसाल हैं.
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए भारत में ज्यादा कुछ नहीं किया जा रहा है. अगर सरकार इतनी ही फिक्रमंद होती, तो वह अब तक इन चुनावी-रैलियों में हिस्सा लेने वाले लोगों की संख्या पर पाबंदी लगा देती लेकिन लगता है कि वो भी इस नए वायरस से होने वाली तबाही का ही इंतज़ार कर रही है. पर सच तो ये है कि जो मुल्क अभी भी डेल्टा वायरस का कहर झेल रहे हैं वहां सख्त पाबंदियां लागू हैं. लेकिन हमारे लिए बड़ा डर ये है कि जब तक ओमिक्रोन को फैलने से रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे, तब तक हालात कहीं काबू से बाहर न हो जाएं.
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