अपने देश में खतरनाक कोरोना वायरस के कुछ मामले सामने आए हैं. शुक्र है कि यहां इस वायरस के मामले तब पाए गए हैं जब गर्मी का मौसम शुरू होने वाला है और तापमान तेजी से बढ़ने लगा है. बढ़ते तापमान के साथ सूर्य देवता वायरस को भष्म कर ही देंगे. इसलिए कई देशों में तबाही लाने वाला ये वायरस अपने देश में ज्यादा नुकसान नहीं कर पाएगा.
लेकिन वायरस ने फिर से हमें याद दिलाया है कि सीमाओं पर लाख पहरे बैठा दें, दुनिया का हर कोना एक दूसरे से जुड़ता ही जा रहा है. और छींक किसी कोने में आए, जुकाम दूसरे इलाकों में भी होगी. यही तो ग्लोबल विलेज का आइडिया भी है कि हम एक दूसरे पर निर्भर हैं, एक दूसरे से जुड़े हैं और आपसी निर्भरता को चाह कर भी खत्म नहीं कर सकते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो चीन के एक प्रांत में फैली बीमारी पूरी दुनिया में तबाही कैसे मचाती. कुछ देशों में तो तबाही भी भयंकर ही है.
इटली में सरकारी अस्पतालों में बेड की किल्लत
अब इटली को ही ले लीजिए जहां कम से कम 10 शहरों में सबकुछ ठप्प हो गया है. वहां 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 2000 से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हैं. वहां वायरस का प्रकोप इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि सरकारी अस्पतालों में जगह नहीं मिल पा रहे हैं. प्राइवेट हॉस्पिटल में कोरोना वायरस के मरीज के लिए स्पेशल वॉर्ड बनाए जा रहे हैं. हालात इतने बुरे हैं कि मिलान शहर के मेयर ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता की अपील की है. इसी डेडली वायरस ने इटली के फुटबॉल लीग के मैचों का शेड्यूल गड़बड़ कर दिया है.
कमोबेश यही हाल दक्षिण कोरिया और ईरान में भी है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर से सोमवार को जारी आंकड़े में बताया गया है कि वायरस से इंफेक्शन के नए मामले जितने चीन में हो रहे हैं उससे 9 गुना ज्यादा दुनिया के दूसरे इलाकों में सामने आ रहे हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर से ये भी चेतावनी आई कि इस वायरस को जल्द नहीं रोका गया तो ये भयावह रूप ले सकता है जिसका परिणाम काफी बुरा होगा. जो बात पहले अमेरिका के बारे में कही जाती थी कि अमेरिकी बाजार में छींक आई तो पूरी दुनिया के बाजार में जुकाम होना तय है, वो अब चीन में पाए गए इस वायरस पर भी लागू होता है.
ईरान और दक्षिण कोरिया तो चीन के पास वाले देश हैं लेकिन इटली, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अफ्रीका के देशों और अमेरिका में ये वायरस कैसे पहुंचा. और यहीं बात आती है एक दूसरे पर निर्भरता की यानी ग्लोबल विलेज की.
चीन में होता है पूरी दुनिया का एक तिहाई मैन्यूफेक्चरिंग
पूरी दुनिया का करीब 28 परसेंट मैन्यूफेक्चरिंग चीन में ही होता है. अमेरिका में करीब 15 परसेंट और दक्षिण कोरिया में करीब 3 परसेंट. सिर्फ इन तीन देशों को मिला देंगे तो दुनिया में हर दो में से एक सामान इन्हीं तीन देशों में बनता है.
जहां आपके जरूरी सामान बनते हैं वहां से तो संपर्क रहेगा ही. यही वजह है कि लाख कोशिश के बावजूद चीन जाने वाले और वहां से आने वालों को रोका नहीं जा सकता है. यही हाल टेक्नोलॉजी और सर्विसेज का भी है. नई टेक्नोलॉजी ईजाद कहीं भी हो, फायदा पूरी दुनिया को होता है. और पूरी दुनिया को यही बात समझनी होगी.
राष्ट्रीय सीमा का हम सब महत्व जानते हैं. इससे सुरक्षा की गारंटी मिलती है, तरक्की के कई मौके मिलते हैं, अपनी जमीन से जुड़े होने का ऐहसास होता है, सीमा के अंदर लोकतांत्रिक व्यवस्था हो तो किसको सत्तासीन करना है और किसे बाहर करना है इस बड़े फैसले में हिस्सेदारी मिलती है. और सबसे बड़ी बात, अंदर से एक ऐसी फीलिंग आती है कि इस सीमा के अंदर रहने वाले सारे लोग हमारे अपने हैं और हम उनके.
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे देशों से नफरत करने लगें. अपनी राष्ट्रीयता दूसरे देश की तुलना में पारिभाषित करने पर ऐसा ही होने का खतरा रहता है. गाहे बगाहे कुछ ऐसे काम हो जाते हैं या कुछ बातें ऐसी निकल जाती हैं जिससे दूसरे देश वाले अपमानित महसूस करें और ये ग्लोबल विलेज के आइडिया को चोट पहुंचाता है.
कोरोनावायरस की त्रासदी ही सही, लेकिन इसने फिर से हमें बता दिया है कि पूरी दुनिया इंटर कनेक्टेड है. इसलिए इस त्रासदी से निपटने का जिम्मा भी किसी एक देश का नहीं है. मंगलवार को ही जी-7 देशों के वित्तमंत्री और वहां के सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स ने एक वक्तव्य जारी कर ये कहा है कि वो साथ मिलकर ऐसे फैसले करेंगे जिससे इस वायरस से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम किया जा सके हैं.
हैं ना ये इंटरकनेक्टेड दुनिया का नमूना? और दुनिया इतनी इंटरकनेक्टेड है कि शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले आजकल सिर्फ वॉल स्ट्रीट के संकेत का इंतजार करते हैं. डाओ जोन्स गिरा तो मायूसी, तेजी आई तो खुशी.