दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में शुमार अकेला भारत ही है,जहां सौ करोड़ लोगों को कोरोना वायरस से जंग लड़ने का एक टीका लग चुका है औऱ गुरुवार को सरकार ने इस अवसर को एक उत्सव के रुप मनाया है. लेकिन जश्न की ये खुमारी कहीं हमारे लिए दोबारा किसी खतरे का अंदेशा तो नहीं दे रही है? ये सवाल इसलिये कि कोरोना महामारी का जन्मदाता चीन है, जहां से कोविड-19 वायरस की शुरुआत दिसम्बर 2019 में हुई थी. उसी चीन में अब इस वायरस के एक नए रुप का पता लगने के बाद वहां के कई प्रांतों में लॉकडाउन लगा दिया गया है. चीन ने अपने यहां से उड़ान भरने वाली सैंकड़ों फ्लाइट कैंसल कर दी है और बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं. 


जाहिर है कि ये जानकर भारत समेत दुनिया के किसी भी देश का कोई नागरिक खुश नहीं बल्कि चिंतित व भयभीत ही होगा. हम लोगों के लिए तो इसकी और भी बड़ी वजह ये है कि वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद अगले कितने वक़्त तक इस वायरस से बचा जा सकता है, इसका खुलासा देश की वैक्सीन निर्माता दोनों कंपनियों ने अभी तक नहीं किया है. जो दावे किए भी गए हैं,तो उस पर न तो WHO ने और न ही दुनिया के काबिल वैज्ञानिकों की टीम ने पुख्ता तौर पर अभी तक अपनी कोई मुहर लगाई है.


हालांकि, चीन ने फ़िलहाल इसे कोविड की तीसरी लहर नहीं माना है लेकिन वो ऐहतियात बरतने में दुनिया के तमाम मुल्कों से बहुत आगे है क्योंकि इस वायरस के खतरों का रहस्य उससे ज्यादा कोई और समझ ही नहीं पाया है. इस वैश्विक महामारी को कथित रुप से फैलाने और उसका तोड़ निकालने में भी चीन ही अकेला ऐसा मुल्क रहा है,जिसने अपने वुहान प्रांत से इसे बाहर नहीं निकलने दिया और महज़ चंद दिनों में ही वहां भी इस पर पूरी तरह से काबू पा लिया.            


लेकिन अब चीन थोड़ा डर गया है, इसलिये कि लगातार पांच दिनों से वहां कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं,जो उसके उत्तरी व उत्तर पश्चमी प्रांतों में ही बढ़ रहे हैं.चीन की हेल्थ अथॉरिटी को लगता है कि कोरोना के जो नए मामले सामने आ रहे हैं, उसके लिए एक ऐसा बुजुर्ग जोड़ा जिम्‍मेदार है जो कई पर्यटकों के ग्रुप में शामिल था. दरअसल, वे दंपति शंघाई में थे और वहां  से गांसू प्रांत के सियान और इन मंगोलिया में दाखिल हुए थे. उनके इस सफर के दौरान वायरस की चपेट में आये कई नये लोगों के मामले सामने आने के बाद चीनी सरकार की नींद उड़ चुकी है.


बताया गया है कि वे पांच प्रांतों में बहुत लोगों से मिले  थे और उनमें से कई इस वायरस की चपेट में आये हूं जिसमें राजधानी बीजिंग भी शामिल है.लिहाज़ा,चीन के लिए ये सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात है क्योंकि जब पूरी दुनिया इस महामारी से जूझ रही थी, तब भी बीजिंग में कोविड का एक भी केस सामने नहीं आया था. अब बात करते हैं,उस खतरे की जो कोरोना की तमाम वैक्सीन से जुड़ा हुआ है और जिसके बारे में WHO भी अभी तक ये दावा करने में नाकाम रहा है कि आखिर किस वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद भी किसी इंसान को दोबारा उसकी जरुरत नहीं पड़ेगी.इस सवाल का माकूल जवाब अभी तक किसी को नहीं मिल पाया है कि वैक्सीन से बनी इम्युनिटी आखिर कब तक हमारे शरीर में रहती है?


विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की डॉक्टर कैथरीन ओब्रायन के मुताबिक अभी तक यह बात स्पष्ट नहीं है कि वैक्सीन के दोनों डोज़ लेने के बाद बनी इम्युनिटी कब तक रहती है.उनके अनुसार हमें अभी तक नहीं पता है कि वैक्सीन से बनी इम्युनिटी कब तक रहती है क्योंकि इसके बारे में पूरी जानकारी जुटाने में थोड़ा समय लगेगा.वे कहती हैं, ''हम टीकाकरण करवा चुके लोगों पर नजर रख रहे हैं. हम ये भी देख रहे हैं कि इन लोगों में समय के साथ इम्युनिटी रहती है और इससे वे बाकी बीमारी से बचे रहते हैं.लेकिन सच ये है कि हमें वाकई कुछ समय तक इंतजार करना होगा, जिससे  पता चल सकेगा कि कोविड वायरस के खिलाफ ये वैक्सीन कब तक प्रभावी रहती है."


लेकिन अब तक आईं प्रमुख वैक्सीन पर रिसर्च करने के बाद दुनिया के अधिकांश वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि फाइजर वैक्सीन की दो डोज़ लेने के बाद उसका प्रभाव छह महीने या इससे ज्यादा दिनों तक रहता है. इसी तरह मॉडर्ना वैक्सीन की भी दूसरी डोज़ के बाद एंटी बॉडी छह महीने तक ही शरीर में रहती हैं. भारत में जो कोविशील्ड वैक्सीन लग रही है,उसके बारे में दावा किया गया है कि इससे इम्यून सिस्टम एक साल या इससे ज्यादा दिनों तक रह सकता है. ऐसा दावा करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक ''हम कह सकते हैं कि ऑक्सफोर्ड की ChAdOx1 तकनीक जिस भी वैक्सीन में इस्तेमाल की जा रही है, उससे बनी एंटी बॉडी एक साल या इससे ऊपर तक रह सकती है.'' गौरतलब है कि कोविशिल्ड की भारतीय निर्माता कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट ने इसे ऑक्सफ़ोर्ड के सहयोग से ही बनाया है.


हालांकि पिछले कुछ महीनों में भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना के नए वैरिएंट सामने आये हैं.मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट्स के मुताबिक वैक्सीन B.1.617.1 और B.1.617.2 दोनों ही वैरिएंट के खिलाफ कारगर हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो वैक्सीन की दो डोज़ के बाद एक बूस्टर डोज़ की भी जरूरत पड़ेगी. कोवैक्सीन बनाने वाली भारत बायोटेक ने बूस्टर डोज़ के ट्रायल शुरू भी कर दिए हैं. बूस्टर डोज़ का ट्रायल उन लोगों पर किया गया है,जिन्हें दूसरी डोज़ लिए छह महीने बीत चुके थे.बूस्टर डोज का मतलब ये है कि उसके बाद इस तरह का टीका लगवाने की जरुरत कभी नहीं रहेगी.


लेकिन मेडिकल साइंस की दुनिया में हो रही बहस पर यकीन करें,तो कोविड एक ऐसा वायरस है जिसकी वैक्सीन हर साल-छह महीने में लगवाये बगैर कोई इंसान पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रह पायेगा.बहरहाल, कोई भी नहीं चाहेगा कि चीन के ये नये मामले भारत के लिए अनजाने खतरे का कोई पैगाम लेकर आएं,इसलिये समझदारी और भलाई इसी में है कि हम लोग इस वायरस को अपना दुश्मन मानते हुए जरा भी लापरवाही बरतने से खुद को संभालें.



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