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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

कोरोना वायरस के डर और कोहराम के बीच चीन के सामने भारत को मौके तलाशने के अवसर

Coronavirus: कोरोना वायरस से अब तक 2800 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 80,000 से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हैं.

पिछले एक हफ्ते से पूरी दुनिया के बाजारों में अनहोनी हो रही है. चीन कोरोना वायरस के भीषण चपेट में है. अमेरिका में भी कोरोना वायरस के कुछ मामले पाए गए हैं. अपना देश फिलहाल इस वायरस से बचा हुआ है लेकिन यहां का फाइनेंशियल मार्केट ऐसा लगता है किसी फ्लू की गिरफ्त में है. कुछ बड़े उदाहरण पर गौर कीजिए-

1. दुनिया के सबसे बड़े शेयर बाजार वॉल स्ट्रीट का एक हफ्ते में 12 परसेंट गिर जाना उसी अनहोनी की तरफ इशारा कर रहा है.

2. कुछ ही हफ्ते में आइकॉनिक कंपनी एप्पल का शेयर 20 परसेंट डाउन हो गया है.

3. सेंसेक्स और निफ्टी एक ही हफ्ते में 7 परसेंट लुढ़क गया. इस गिरावट की वजह से निवेशकों के शेयर के वैल्यू में एक हफ्ते में ही 11 लाख करोड़ रुपए की कमी आ गई है.

4. चीन के मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर का ताजा डेटा बता रहा है कि इसमें ऐसी गिरावट हुई है जितनी आजतक कभी नहीं देखी गई.

5. पूरी दुनिया के शेयर बाजार में गिरावट की वजह से निवेशकों को अबतक करीब 6 ट्रिलियन डॉलर की चपत लग चुकी है.

इन अनहोनियों की बड़ी वजह है कोरोना वायरस जो अब सिर्फ चीन की समस्या नहीं रह गई है. दुनिया के 55 देश में इसके मामले पाए गए हैं. इसकी वजह से मौत का आंकड़ा 2800 पार कर गया है और 80,000 से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हैं. ईरान और दक्षिण कोरिया में संकट गहराता जा रहा है.

कोरोना वायरस के डर और कोहराम के बीच चीन के सामने भारत को मौके तलाशने के अवसर

सस्ता क्रूड कई समस्याएं कर सकता है दूर इस मायूसी के माहौल में भी कुछ ऐसा हो रहा है जिससे हमें फायदा हो सकता है, बशर्ते की हम इसके लिए पूरी तैयारी करें. भारी गिरावट से कच्चा तेल भी अछूता नहीं रहा है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत अब 50 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई है और ये हमारे लिए ये बड़ी अच्छी खबर है. इसकी वजह से हमारा व्यापार घाटा कम हो सकता है और पेट्रोल-डीजल की कीमत गिरती है, कंज्यूमर सेंटिमेंट को बूस्ट करने के लिए ऐसा होना भी चाहिए, तो इससे महंगाई को रोकने में भी मदद मिलेगी.

दूसरा फायदा लॉन्ग टर्म वाला है जिसकी हमें तैयारी करनी होगी. चीन हमारा दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. चीन के साथ हमारे देश का व्यापार घाटा काफी ज्यादा है. करीब 80 अरब डॉलर के ट्रेड में हमारा व्यापार घाटा करीब 40 अरब डॉलर का है. चीन में तबाही की वजह से अगर हम इस व्यापार घाटे को कंट्रोल कर लेते हैं तो ये बड़ी उपलब्धि होगी.

इससे भी बड़ी बात ये है कि चीन में संकट के बाद पूरी दुनिया को लगने लगा है कि उसका मैन्यूफेक्चरिंग बेस ज्यादा फैला हुआ हो, एक ही सोर्स पर निर्भर ना रहे. चीन फिलहाल पूरी दुनिया का मैन्यूफेक्चरिंग हब बना हुआ है.

मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर को बल मिल सकता है अगर दुनिया की बड़ी कंपनियां चीन के बाहर उत्पादन केंद्र बनाना शुरू करती है तो इसका हमें फायदा मिल सकता है. ध्यान रहे कि हमारे देश की कई फैक्ट्रियां फिलहाल, एसेम्बलिंग से ज्यादा का काम नहीं करती हैं. कई जगह तो चीन से माल मंगाकर यहां एसेंम्बल भर ही होता है. इसकी वजह से चीन पर हमारी निर्भरता लगातार बढ़ी है. दो बड़े सेक्टर्स- फार्मा और ऑटो- के तो जरूरी मेटेरियल चीन से ही इंपोर्ट होते हैं. अगर ये सारे सामान अपने ही देश में बनने लगे तो? इससे निवेश को बड़ा बूस्ट मिलेगा और नई नौकरियों की बाढ़ आएगी.

लेकिन क्या इसके लिए हम तैयार हैं? हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर- सॉफ्ट और हार्ड- की बड़ी कमी है. चाहे वो ट्रांसपोर्ट हो या कांट्रेक्ट मनवाने का मैकेनिज्म- हमारी क्षमता इन सारे मामलों में उतनी नहीं बढ़ी है जितनी बढ़नी चाहिए थी. कई इलाकों में कानून व्यवस्था लचर है तो कुछ इलाके ऐसे हैं जहां से एक्सपोर्ट करना काफी महंगा पड़ता है.

मजदूर कानून पुराने हैं और सामाजिक माहौल ऐसा रहा है कि एक-दूसरे पर भरोसा करना कई बार मुश्किल हो जाता है. ये सारी अव्यवस्थाएं ऐसी हैं जिसकी वजह से हमारे देश में उतना निवेश नहीं हो रहा है जितनी इसकी क्षमता है.

इन सबको ठीक किया जा सकता है? बिल्कुल संभव है, अगर हमारी प्राथमिकताएं सही हों. हमारी रोजमर्रा की भाषा में अगर विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर, निवेश, मैन्यूफेक्चरिंग. एक्सपोर्ट जैसे शब्द शामिल हो जाएं तो सरकारों को इन क्षेत्रों में काम करना ही होगा.

फिलहाल हमारा सारा फोकस इस बात पर रहता है कि हमारे पास जो है उसको कैसे बांटा जाए. किस समुदाय और किस जाति को कितना हिस्सा मिले. अगर हमारा फोकस इस बात पर हो कि हमारे पास जो है उसको तेजी से बढ़ाई जाए ताकि बांटने में कोई झंझट ही ना हो तो काफी दिक्कतें अपने आप खत्म की जा सकती हैं.

नए मौके दस्तक दे रहे हैं. इसका फायदा उठाने के लिए हमें माइंडसेट में बदलाव के लिए तैयार होना होगा. देशहित में ये जरूरी है. ऐसा होता है तो किसी भी वायरस के कोहराम को हम अपने आसपास भी भटकने नहीं देंगे.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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