Coronavirus: कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते 24 मार्च की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही नेशनल लॉकडाउन की घोषणा की, चारों तरफ अफरातफरी मच गई. लोग उसी वक्त थैले लेकर राशन की दुकानों की तरफ दौड़ लिए. देखते ही देखते दवा, राशन और सब्जी की इक्का-दुक्का खुली दुकानों के सामने लाइनें लग गई.
मुझे घर में क्वारेंटाइन हुए दो दिन बीत चुके थे. ऐसे में 21 दिन के लंबे लॉकडाउन की घोषणा सुनकर मैं भी कुछ जरूरत की चीजें जुटाने के लिए घर से बाहर निकला. बैंगलोर जैसे व्यस्त शहर की प्रमुख सड़कों पर सन्नाटा पसरा था. रात के यही कोई 9 बजे होंगे, सड़क के छोर पर नजर गई तो देखा कि एक साथ तीन ट्रैक्टरों और कुछ अन्य गाड़ियों पर लोग सवार हो रहे थे. पास जाने पर पता लगा कि दूर राज्यों से बैंगलोर में दिहाड़ी मजदूरी कर गुजरबसर करने आए लोग अपना बोरिया बिस्तर समेट कर इस शहर से विदा ले रहे थे.
उन चेहरों पर मैंने बेबसी का जो भाव देखा तो दिल अंदर तक कांप गया. एक पल को दिमाग सुन्न पड़ गया. कैसे अचानक से आई एक भयावह बीमारी के आगे दुनिया लाचार हो गई थी. लोग अपने सपनों को समेटकर अपने गांव लौट रहे थे.
तैयारी से लग रहा था कि उन्हें लंबा सफर तय करना है. बच्चों और औरतों ने नए कपड़े पहने रखे थे. बच्चों के चेहरे पर इस नए सफर की खुशी और उत्सुकता थी. लेकिन उनके माता-पिता के चेहरों पर एक अजीब सा सन्नाटा और मायूसी थी. उनके चेहरे की मायूसी बता रही थी कि अब उनका इस शहर में कोई काम नहीं है, वापस कब आना होगा इसकी कोई खबर नहीं. इस शहर में उन्होंने कितनी ही आलीशान इमारतें बनाईं और दिल को राहत देने के लिए कितनी ही इमारतों में फब्वारे लगाए, लेकिन उनके खुद का सुकून छिन चुका था. ये वही लोग थे जो इस शहर को बनाने, दूर गांव से आये थे.
कोई भी देश अमीरी गरीबी से नहीं, कोई जाति विशेष से नहीं, गुण अवगुण से नहीं, बुद्धिमान और मुर्ख से नहीं, पढ़े लिखे या अनपढ़ से नहीं - देश बनता है संवेदना से, मानवता से.
इस त्रासदी ने सबके जीवन को झकझोर दिया, क्या छोटा क्या बड़ा, सबको सोचने को मजबूर कर दिया. अति विकसित देश की सरकारें और वहां का प्रशासन भी घुटनों पर है. कोरोनावायरस को खत्म करने के लिए तमाम प्रयास किये जा रहे हैं.
पूरा विश्व एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है, न जाने कितना वक़्त लगेगा इसे थमने में. जब बीते कुछ दिनों को याद करता हूं तो लगता है गलती हमारी ही थी . कोरोना कोई अचानक से नहीं आया है, उसने आने से काफी पहले ही दस्तक दे दी थी. हर किसी ने उसे नजरअंदाज किया. जब वो हमारी दहलीज पर आकर बैठा, तब भी किसी ने ये नहीं सोचा था कि ये वायरस इतना भयावह होगा.
जैसे - जैसे कोरोना अपना दायरा बढ़ाता जा रहा है, वो और भी अपना रूप विकराल करता जा रहा है. दुनिया के हर देश की सरकारें अपने नागरिकों को बचाने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं. अभी अर्थव्यवस्था की किसी को सुध नहीं है. अभी सबसे ज्यादा अनिवार्य है इस संक्रमण से अपने आपको बचाना और लोगों में जागरूकता फैलाना.
आज कोरोना ने हमारी कमर जरूर तोड़ी है, लेकिन हिम्मत नहीं. हमारे सपने जरूर सिमट गए हैं, लेकिन हमारा ज़ज़्बा नहीं. हम आपस में जरूर बिछड़े हैं, हमारी संवेदना और इंसानियत नहीं. इंसान अपनी गलतियों से ही सीखता है, लेकिन गलती ऐसी न हो की किसी और को नुकसान पहुंचे. आर्थिक बुलंदियों और सुन्दर महल बनाने के इस दौर में इंसानियत न खो दें. आज कुछ नहीं तो कोरोना ने इंसानियत की राह जरूर दिखाई है.
इस मुश्किल घड़ी में दूर रहकर भी एक दूसरे के लिए कैसे मदद करें, ये सीखा है हमने. कितनी जल्दी हम सीख गए कि अलग रहकर भी एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं और एक साथ रह कर भी एक दूसरे को नुकसान पहुंचा सकते हैं. हमें कितनी जल्दी एहसास हो गया है कि, छोटी से छोटी चीजें हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं, और एक छोटी सी भूल भी पूरी मानवता के लिए खतरा बन सकती है.
(हेमन्त झा एक विपुल विचारशील लेखक हैं, नियमित रूप से सार्वजनिक समस्याओं, कार्यक्रमों और शीर्ष प्रकाशनों में पब्लिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं.नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)