कोरोना महामारी ने दुनिया भर में जितना हाहाकार मचाया, उससे ज्यादा हंगामा हमारे यहां विपक्षी दलों ने पहले इस बीमारी से लड़ने के तरीकों और फिर इसकी वैक्सीन को लेकर किया था. भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश था जहां वैक्सीन को लेकर इतनी सियासत की गई. मोदी सरकार को पहले इसलिये कोसा गया कि वो वैक्सीन नहीं ला पा रही है. जब सरकार ने दो देशी कंपनियों को इसे बनाने की मंजूरी दे दी, तब इस पर बवाल किया गया कि वो इतनी प्रभावी साबित नहीं होगी और सरकार ने ये फैसला जल्दबाज़ी में लिया है. उसके बाद इस साल जुलाई तक जब देश में 47 करोड़ लोग टीके की पहली ख़ुराक ले चुके थे, तब विपक्ष ने वैक्सीन की कमी होने का रोना रोते हुए सरकार पर तमाम तरह के सवाल उठाये. लेकिन गुरुवार को सौ करोड़ लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करके सरकार ने विपक्ष के तमाम आरोपों का जवाब दे दिया है या कह सकते हैं कि उनकी बोलती बंद कर दी है. लेकिन ये अकेले सरकार की पीठ थपथपाने का जश्न नहीं समझना चाहिए बल्कि इस कामयाबी में हर उस शख्स का योगदान है, जिसने इसे जमीन पर अंजाम देने में अपनी कोई कसर बाकी नहीं रखी.
जाहिर है कि भारत के लिए ये एक बहुत बड़ी कामयाबी है क्योंकि इस साल की शुरुआत में जब भारत में निर्मित होने वाली कोविशिल्ड व कोवेक्सीन को मंजूरी दी गई थी, तब सरकार में बैठे लोग भी इस बात को लेकर आशंकित थे कि इतना बड़ा अभियान आखिर कैसे सफलतापूर्वक पूरा हो पायेगा. लेकिन कहते हैं कि अगर जज़्बा हो और नीयत भी साफ हो, तो किसी भी लक्ष्य को करना नामुमकिन नहीं होता.
ये सच है कि जब कोई अभियान इतना बड़ा हो जिसमें 135 करोड़ की आबादी को कवर करना हो और जिसका कोई पूर्व अनुभव भी न हो, तब उसमें कुछ खामियां होना स्वाभाविक है. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ राज्यों में कुछ वक्त के लिए वैक्सीन का संकट भी देखने को मिला. इस मसले पर विपक्षशासित राज्यों ने केंद्र सरकार पर भेदभाव वाली नीति अपनाने का भी आरोप लगाया. लेकिन वहां के लोगों की तारीफ इसलिये की जानी चाहिए कि उन्होंने अनुशासन व संयम से काम लिया और वैक्सीन की आपूर्ति होने का इंतज़ार किया.
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में किसी राज्य का नाम लिए बगैर इस आरोप का जवाब भी दिया है कि वैक्सीन के बंटवारे में किसी तरह का कोई भेदभाव किया गया. उन्होंने कहा कि, "किस राज्य को कितना वैक्सीन मिलनी चाहिए और कब पहुंचनी चाहिए, इसको लेकर भी वैज्ञानिक फॉर्मूल के तहत काम हुआ. भारत के लोगों के लिए यह भी कहा जा रहा था कि इतना संयम, इतना अनुशासन यहां पर कैसे चलेगा? लेकिन हमारे लिए लोकतंत्र का मतलब है सबका साथ."
वैसे कोरोना की बीमारी ने दुनिया को एक बड़ा सबक भी दिया है कि उसने अपना शिकार बनाने में कोई भेदभाव नहीं किया. बीमारी ने ये नहीं देखा कि वो अमीर है या गरीब या फिर किस मज़हब या जाति से है. अब ये अलग बात है कि लोगों ने इसके जरिये कितना सबक लिया. लेकिन भारत ने अपने वैक्सीन अभियान में इसका पूरा ख्याल रखते हुए देश के वीआईपी कल्चर को खत्म करने में काफी हद तक सफलता पाई है. सरकार ने कोविन प्लेटफार्म के जरिये सबको एक कतार में ला खड़ा किया और ये साबित कर दिखाया कि वैक्सीन पर किसी अमीर या किसी वीआईपी का ही अधिकार नहीं है, वो सबके लिए समान है.
लेकिन हमें ये गलतफहमी कतई नहीं पालनी चाहिए कि वैक्सीन की दो खुराक लेने के बाद हमने कोरोना से जंग जीत ली है. वो सिर्फ बचाव है, बीमारी को जड़ से खत्म कर देने का इलाज नहीं है, इसलिये WHO ने भी अब तक ऐसा कोई दावा नहीं किया है. लिहाज़ा, प्रधानमंत्री की इस अपील पर ध्यान देना सबका फ़र्ज़ होना चाहिए कि, "कवच कितना ही उत्तम हो, कवच कितना ही आधुनिक हो, कवच से सुरक्षा की पूरी गारंटी हो, तो भी, जब तक युद्ध चल रहा है, हथियार नहीं डाले जाते. मेरा आग्रह है, कि हमें अपने त्योहारों को पूरी सतर्कता के साथ ही मनाना है."
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