एक मई से भारत में कोरोना का टीका लगाने का पूरा अंदाज ही बदल जायेगा. 18 से 45 साल आयु वर्ग को भी टीका लगेगा. केन्द्र का टीका, राज्यों का टीका, निजी अस्पतालों का टीका. उस पर सीरम इंस्टीटयूट के टीके के दाम अलग, भारत बायोटेक के टीके के दाम अलग. कुल मिलाकर राज्य सरकारों पर आ जाएगी टीका खरीदने और उसका निजी क्षेत्र में बंटवारा करने की जिम्मेदारी. सवाल उठता है कि क्या इतने टीके बाजार में है जितने टीकों के तलबदार है. क्या 18 प्लस को टीका लगाने का काम एक मई से शुरु हो पाएगा. आखिर देश की 70 फीसद आबादी को टीका लगने में कितने महीने लगेंगे. अगर आप 18 से 45 साल आयु वर्ग में आते हैं तो एक मई से आप टीके के हकदार हो जाएंगे. हां, टीका आपको कब लग पाएगा यह कहना मुश्किल है. ऐसा लग रहा है कि इस आयु वर्ग को टीकों के लिए 15 दिन से तीस दिन तक इंतजार करना पड़ सकता है. समयसीमा तय नहीं है लेकिन यह तय हो गया है कि आपको केन्द्र सरकार टीका नहीं लगाएगी. राज्य सरकार के पास आपको जाना होगा जो हो सकता है कि आपको मुफ्त में टीका लगा दे (ज्यादातर राज्य मुफ्त टीका लगाने के लिए नैतिक रुप से मजबूर हैं) लेकिन राज्य सरकार को सीरम इंस्टीटयूट का कोवीशील्ड टीका 400 रुपए का और भारत बायोटेक का टीका 600 रुपए में खरीदना पड़ेगा. अगर आप निजी अस्पताल जाते हैं तो वहां कोवीशील्ड के टीके के 600 रुपए और कोवैक्सीन के 1200 रुपए देने होंगे. इसमें आप कम से कम सौ रुपये का सर्विस चार्ज जोड़ दीजिए. अब टीकों की खरीद पर कुछ टैक्स भी देने पड़ें तो टीकों के दाम और ज्यादा बढ़ जाएंगे.
सवाल उठता है कि एक ही देश में जब इमरजेंसी यूज के लिए टीकों को मंजूरी दी गयी है और महामारी के एक्ट के तहत मंजूरी दी गयी है तो फिर टीका लगाने वाली कंपनी कैसे रेट तय करने के लिए क्यों आजाद छोड़ दी गयी. दुनिया भर में सरकारें जब मुफ्त में टीका लगा रही हैं तो हमारे यहां पैसे क्यों देने पड़ रहे हैं. सवाल उठता है कि जब भारत सरकार ने अपने बजट में 35 हजार करोड़ रुपए टीकों के लिए रखे थे तो फिर राज्यों से क्यों खरीदने को कहा जा रहा है. अगर एक टीके की कीमत 350 रुपये (खरीद, भंडारण पर खर्च, वितरण में खर्च आदि मिलाकर) माने तो भी देश की सौ करोड़ आबादी को इस पैसों से टीका लगाया जा सकता है. सवाल उठता है कि कोरोना काल में 18 से 45 साल का आयु वर्ग ही नौकरी के लिए सामने आ रहे हैं, कारखाने चला रहा हैं, फैक्टरियों में काम कर रहे हैं और इस आयु वर्ग को ही कोरोना से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा है तो फिर इस वर्ग को मुफ्त टीकों से क्यों वंचित किया जा रहा है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर भारत को कोरोना की दूसरी लहर की मार को कम करना है और संभावित तीसरी लहर से बचना है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम से कम समय में टीका लगाना जरुरी है. जानकारों का कहना है कि नई टीका नीति से टीका बनाने वाली कंपनियों को मुनाफा होगा तो वो टीकों के उत्पादन में तेजी लाएंगी. टीकाकरण का काम प्रभावी तरीकें से चलेगा. निजी अस्पताल और कोरपोरेट जगत की भागेदारी से वितरण अच्छी तरह से हो सकेगा. मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन और सामंजस्य बना रहेगा. उधर इस नयी नीति का विरोध करने वालों का कहना है कि ये राज्यों के साथ भेदभाव है. कोपरेटिव फेडरेलिज्म की भावना के खिलाफ है और बाजार मूल्य पर कोई सीमा नहीं लगाई है. कहा जा रहा है कि जब जीवन रक्षक दवाओं के दाम सरकार तय कर सकती है तो कोरोना से बचाव के सबसे बड़े हथियार यानि टीके का दाम सरकार क्यों तय नहीं कर सकती. इसके अलावा कहा जा रहा है कि 18 से 45 साल के आयु वर्ग में गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वालों को, राशनकार्ड धारकों को और भोजन के अधिकार के कानून के तहत आने वालों को तो मुफ्त में टीका लगाना ही चाहिए. यह काम केन्द्र सरकार को करना चाहिए. हैरानी की बात है कि अभी तक केन्द्र सरकार ने इस पर स्थिति साफ नहीं की है.
वैसे साफ तो अन्य बहुत सी चीजे भी नहीं है. नई नीति के तहत टीका कंपनी पचास फीसद टीके केन्द्र सरकार को देगी. बाकी का हिस्सा राज्य सरकार और निजी अस्पतालों के लिए रखा जाएगा. लेकिन यहां बंटवारा कैसे होगा यह साफ नहीं है. सबसे बड़ी बात है कि इस समय दो ही टीके बाजार में है और दोनों का रेट अलग अलग है. अब ऐसे में स्वभाविक है कि सभी राज्य कोवीशील्ड का 400 रुपये वाला टीका ही खरीदना चाहेंगे. ऐसे में क्या होगा. क्या कोवीशील्ड इतने टीके बनाने में सक्षम है जो सभी राज्यों को संतुष्ट कर सके. सवाल उठता है कि जो राज्य पहले आर्डर देगा उसे टीका पहले मिलेगा या जो राज्य जितना बड़ा आर्डर देगा उसे पहले टीका मिलेगा. सस्ता टीके के लिए इंतजार लंबा रहा तो इससे टीकाकरण का काम प्रभावित होगा. सवाल उठता है कि बड़े निजी अस्पतालों और बड़े कोरपोरेट घरानों को टीका पहले दिया जाएगा या छोटे नर्सिंग होम की जरुरतों का भी ध्यान रखा जाएगा. राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि सीरम कंपनी से उन्होंने बात की थी और उन्हे बताया गया कि 15 मई तक तो वह केन्द्र के पहले से आर्डर किए गये टीकों को बनाने के काम में जुटे हैं. उसके बाद ही राज्यों का नंबर आएगा. साफ है कि 15 मई तक का तो इंतजार 18 प्लस को करना ही पड़ेगा.
सबसे बड़ी बात है कि टीका बनाने वाली कंपनियों के सामने भी स्थिति साफ नहीं है. ये भी साफ नहीं है कि कंपनियां राज्यों के साथ अलग से और उस राज्य के निजी अस्पतालों के साथ अलग अलग कारोबार करना पंसद करेंगी या फिर राज्य के साथ ही टीका खरीद का सौदा करेंगी. राज्य फिर उस में से निजी अस्पतालों को टीका देगा. निजी अस्पताल के संचालकों और सीआईआई फिक्की जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ हाल ही एक बैठक में कुछ जरुरी सुझाव सामने आए. कहा गया कि निजी क्षेत्र के अस्पताल आपस में बैठकर बल्क आर्डर तैयार करे और उसे राज्य सरकार के माध्यम से खऱीदे. सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकारें इस पर सहमत होंगी. ये भी कहा गया कि केन्द्र सरकार पुरानी व्यवस्था को कम से कम अगले दो महीने तक बहाल रखे यानि केन्द्र की कोल्ड चेन और सप्लाई चेन वैसी की वैसी तब तक बरकरार रखी जाये जब तक कि निजी सैक्टर अपनी कोल्ड चेन और सप्लाई चेन नहीं स्थापित कर लेता. सवाल उठता है कि क्या केन्द्र सरकार इसके लिए तैयार होगी. अगर यह सारा कन्फ्यूजन अगर दूर हो भी गया तो भी क्या एक मई से नई टीका नीति लागू हो पाएगी. इसे लेकर भी कन्फ्यूजन बना हुआ है.
एक मई में चंद ही घंटे बाकी हैं. इस बीच राज्य सरकारों को टीका कंपनियों के साथ बैठकर कीमत पर मोल भाव करना है, बारगेनिंग करनी है. उसके आधार पर फिर आर्डर प्लेस करना है. नये टीकाकरण केन्द्र बनाने हैं, वहां के लिए स्टाफ रखना है, उस स्टाफ को रिकार्ड ऱखने की ट्रेनिंग देनी है, अतिरिक्त भंडारण और वितरण से जुड़ी व्यवस्था करनी है, चूंकि कोविन सिस्टम पर 18 प्लस का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया लिहाजा इसकी भी माकूल व्यवस्था करनी है, निजी अस्पतालों का नये सिरे से रजिस्ट्रेशन करना है, निजी संस्थानों के स्टाक और सर्विस चार्ज पर नजर रखनी है. अगर कोई राज्य खुद के लिए के साथ साथ निजी अस्पतालों के लिए भी टीके खरीदता है तो उसे हिसाब किताब रखना है कि किस अस्पताल या संस्थान के लिए कितने टीके खरीदे, किस रेट पर खरीदे, वो संस्थान लोगों से टीका लगाने के कितने पैसे अतिरिक्त रुप से ले रहा है आदि आदि. सारी जानकारी कोविन एप में डालना भी जरुरी होगा. जानकारों का कहना है कि इन सब काम में पंद्रह दिन से लेकर तीस दिन लग सकते हैं यानि 18 प्लस को जून महीने से ही टीके लग पाएंगे.
कुल मिलाकर 18 से 45 आयु वर्ग में साठ करोड़ लोग आते हैं और इन्हें मिलाकर देश की 70 फीसदी आबादी यानि करीब सौ करोड़ लोगों को टीके लगने हैं. पिछले सौ दिनों में देश में करीब 14 करोड़ लोगों को टीकें लग चुके हैं. अगर यही रफ्तार रहती है को तीन साल से ज्यादा समय लग जाएगा. लेकिन राहत की बात है कि पिछले सात दिनों का हमारा औसत 24 लाख रोज का रहा है. अगर यही रफ्तार रहती है तो एक साल नौ महीने लगेंगे. जाहिर है कि इस रफ्तार को पचास लाख रोज करने की जरुरत है यानि 15 करोड़ टीके हर महीने लेकिन क्या इतने टीकों का उत्पादन हो रहा है. फिलहाल कोवीशील्ड के सात करोड़ और कोवैक्सीन के एक करोड टीके ही हर महीने बन रहे हैं. इस हिसाब से हमें लक्ष्य तक पहुंचने में एक साल आठ महीने लग जाएंगे.
कहा जा रहा है जून जुलाई में भारत में करीब 12 करोड़ टीके हर महीने बनने लगेंगे. अगर ऐसा हुआ तो देश की 70 फीसद आबादी को टीका लगने का काम चौदह महीनों में पूरा होगा. कहा जा रहा है कि अगस्त महीने में स्पूतनिक वी से लेकर अन्य कुछ देशी विदेशी टीके भी बाजार में आ जाएंगे जिनकी संख्या दो करोड़ हर महीने की होगी. ऐसे में हमारे पास हर महीने चौदह करोड़ टीके हर महीने होंगे और हम एक साल में लक्ष्य पूरा कर लेंगे. यानि एक मई से टीकों की आपूर्ति नहीं होगी कि हम 18 प्लस को टीके लगा सकें. यही वजह है कि यूपी, तमिलनाडू और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने इस आयु वर्ग को किश्तों में टीका लगाने की बात कही है. इन राज्यों का कहना है कि इस आयु वर्ग में उन युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी जो डायबिटीज, हाइपर टेंशन, किडनी या दिल की गंभीर बीमारा के शिकार होंगे. उसके बाद अन्य लोगों का नंबर आएगा.
गौरतलब है कि भारत सरकार ने भी 45 से 60 साल के आयु वर्ग के लिए पहले यही प्राथमिकताएं तय की थी. कुल मिलाकर एक तरफ टीकों की कीमत का अर्थशास्त्र है तो दूसरी तरफ टीकों की संख्या का गणितशास्त्र है. इन दोनों के बीच फंसा है राजनीतिशास्त्र जो हावी है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)