कर्नाटक में भ्रष्टाचार के मामले छोटे-छोटे स्तरों पर बढ़े हैं. लोगों तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि आरटीआई कानून भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कितना कारगर साबित हो रहा है?  हमारे देश में भ्रष्टाचार दिन दिनों बढ़ा है और यह कैंसर की तरह और बढ़ता ही जा रहा है. अब तक जितने भी खुलासे हुए हैं वो तो महज 10 प्रतिशत है. बाकी जिन मामलों का खुलासा नहीं हुआ है उनका क्या. जहां तक आरटीआई कानून और व्हिसल ब्लोअर एक्ट की बात है तो इन कानूनों को सरकारों ने उसमें बदलाव लाकर और कमजोर करने का काम किया है. आज आप देख सकते हैं कि किस तरह से आरटीआई के माध्यम से सवाल करने वालों को टारगेट किया जाता है. उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ जाती है. उन्हें कोई प्रोटेक्शन नहीं है. 


जैसे जब पानी गंदा हो जाता है तब उसमें से कीड़े निकलने लगते हैं उसी तरह से जब सिस्टम में ही गंदगी भरी है तो हम गरीबी, बेरोजगारी की समस्या का निराकरण नहीं कर पा रहे हैं. लोगों के हालात खराब होते जा रहे हैं तो लोग सोचते हैं कि किसी तरह से बस पैसा कमाओ. अब आप नौकरी देने का ही मामला देख लो. लोग कैसे नौकरी देने के नाम पर पैसा बनाते हैं. जो परीक्षाएं होती हैं और उनमें जो धांधली होती है वो भी तो भ्रष्टाचार का ही अंग है. मेरा मानना है कि हमारे देश में सिर्फ कानून रहने से काम नहीं होगा. ये सारे कानून तो अच्छे हैं लेकिन जब तक सिस्टम को दुरुस्त नहीं किया जाएगा और जो लोग सिस्टम में बैठे हैं अगर वो अपना काम ईमानदारी से नहीं करेंगे तब तक भ्रष्टाचार का मामला बढ़ता ही जाएगा.


सारी चीजें अर्थ तंत्र से जुड़ीं


मेरा मानना है कि ये सारी चीजें हमारी अर्थ तंत्र से जुड़ी हुई है. सिर्फ भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार चिल्लाने से तो नहीं हो जाएगा. मान लीजिए अगर कोई बच्चा किसी बीमारी से पीड़ित है और उसे आप ये कह दो कि तुम गांधीजी की तस्वीर अपने गले में लटका कर घूमो तो क्या वह मान जाएगा. वह किसी केमिस्ट की दुकान में चोरी भी तो कर सकता है या वो किसी को मार भी सकता है. तो जब तक हम एक हेल्दी सिस्टम नहीं देंगे तो भ्रष्टाचार की समस्या बरकरार रहेगी और फिर आरटीआई जैसा कानून भी क्या ही कर लेगा. देखिये, इसे बनाने व बढ़ाने में कहीं न कहीं हम सभी लोग जिम्मेदार भी हैं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर. जिसे इस सिस्टम का लाभ मिल जाता है वो ठीक है और जिसे नहीं मिलता है वो सोचता है कि हमें भगवान ने नहीं दिया. 


मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हमें अपने वातावरण में बदलाव करने की आवश्यकता है. आप देखिये कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लोकायुक्त की नियुक्ति और लोकपाल विधेयक लाकर इंस्टिट्यूशन को स्थापित किया गया और ये सारे संस्था भी अच्छे हैं लेकिन सिर्फ कानून बना देने और इंस्टीट्यूशन को क्रिएट कर देने से कुछ नहीं होगा जब तक हम लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएंगे. हमारे देश में जो सिस्टम है उससे भ्रष्टाचार की तरक्की होती है. महाराष्ट्र सरकार को ही देख लीजिए उन्होंने कहा कि हम किसानों को छह हजार रुपये देंगे तो इसकी जरूरत क्यों है क्योंकि वे गरीब हैं...तो हम जो बेसिक नीड है उसकी पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. इसलिये, बहुत सारे लोगों का मानना है कि भारत में भ्रष्टाचार को लीगल कर देना चाहिए. ये कुछ देशों में पहले से ही लीगलाइज्ड है. अगर ऐसा हो जाएगा तो कम से कम ये तो जरूर हो जाएगा की हम जब बेईमानी को रोक नहीं पा रहे हैं तो कम से कम ये पैसे व्हाइट में तो आ जाएंगे...तो यहां लोग वो भी नहीं करना चाहते हैं.


तेजी से बढ़ रहा भ्रष्टाचार


मेरा मानना है कि जब तक कुछ इस तरह का स्टेप नहीं उठाया जाएगा तब तक कुछ भी बदलने वाला नहीं है. आप जुडिसियरी के अंदर ही देख लो यहां भी भ्रष्टाचार व्याप्त है. अगर आप पैसे वाले हैं तो आप ऑर्डर लिख कर भेज दीजिए जज साहब उस पर साइन कर देंगे. एक हाई कोर्ट के जज पर पटियाला हाई कोर्ट में इस तरह का मामला भी चल रहा है. केस की फाइलें चली जाती थी बिल्डर्स के पास और वे ऑर्डर बनाकर भेजते थे और जज साहब उस पर साइन भी कर देते थे डीडीए के खिलाफ. तो मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार होते हुए हमें दिख नहीं रहा है लेकिन ये और तेजी से बढ़ रहा है. लोग तो अब खुल्लम खुला यहां तक कहने लगे हैं कि ये सब ठीक है. 


रिश्वत लेने में पहले लोगों को शर्म भी आती थी अब तो वह भी नहीं आ रही है. यानी के रिश्वत लेना भी अब एक मोरल बन गया है. ये कहा जा सकता है कि रिश्वत लेते पकड़े जाओ और रिश्वत देकर छूट भी जाओ. कानून के रहने के बावजूद कानून को कौन पूछ रहा है. काम तो इंसान ही करेगा न. यहां सब कुछ के लिए उल्टी ही गंगा बह रही है. तो मेरा मानना है कि सारे सिस्टम का फायदा उसमें बैठे लोगों को ही हो रहा है और जो लोग हैं उन्हें सिर्फ बेवकूफ बनाने का काम किया जा रहा है. मेरा मानना है कि ईमानदारी की वैल्यू नहीं है तो सारे लोग यही सोचने लग जाते हैं कि मैं क्या ले सकता हूं इस सिस्टम से इसलिए आरटीआई ठीक है कुछ लोगों में इसका डर तो है लेकिन इससे काम नहीं होने वाला है. भ्रष्टाचार का जो प्रोडक्शन वो बढ़ाता ही जा रहा है. ये जो रात में होटलों के अंदर नाच-गाने होते हैं और जो लोग वहां पैसे पानी की तरह बहाते हैं वो पैसे क्या उनके घर से निकलता है...तो हमें पहले अपने सिस्टम को ठीक करना होगा तभी कानून का लाभ समस्या को खत्म करने लिए लिया जा सकता है.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल वकील अशोक अग्रवाल से बातचीत पर आधारित है.]