कांग्रेस की आंतरिक कलह को थामने और असंतुष्ट नेताओं की आवाज़ का जवाब देने के लिए आखिरकार सोनिया गांधी को ही फिर मोर्चा संभालना पड़ा. लंबे वक्त के बाद पार्टी की वर्किंग कमेटी की आज हुई इस बैठक को लेकर ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि इसमें जी-23 के असंतुष्ट नेताओं द्वारा उठाये गए मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी और शायद ये भी टटोलने की कोशिश की जायेगी कि गांधी परिवार के अलावा ऐसा और कौन उपयुक्त व प्रभावी चेहरा हो सकता है, जिसे पार्टी की कमान सौंपी जा सके. लेकिन ऐसे तमाम कयासों को दरकिनार करते हुए सोनिया गांधी ने असंतुष्टों को नसीहत वाले लहज़े में ये साफ कर दिया कि वे पार्टी की पूर्णकालिक अध्यक्ष के तौर पर ही काम कर रही हैं. लेकिन पिछले दिनों पंजाब में पार्टी के भीतर जो घमासान मचा, उसे देखकर तो सबको यही लगा था कि कमान भले ही सोनिया के हाथ में है, लेकिन सारे अहम फैसले तो राहुल गांधी व उनकी कोटरी ही ले रही है.


शायद इसीलिये हाल ही में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ये कहा था कि पार्टी में फ़ैसले कौन ले रहा है ये सबको को पता भी है और नहीं भी. सिब्बल का इशारा भी राहुल और उनकी सलाहकार मंडली की तरफ ही था. सिब्बल भी उन 23 नेताओं के समूह में शुमार हैं, जिन्होंने पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी. उस चिट्ठी लिखने का मकसद ही ये था कि पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष का चुनाव जल्द करवाया जाये. चिट्ठी लिखने वाले इन 23 नेताओं को ये उम्मीद थी कि आज की बैठक में चुनाव कराने को लेकर भी फैसला होगा, जो नये साल की शुरुआत में कराये जाएंगे. फैसला तो हुआ लेकिन बड़ी चतुराई से इसे अगले साल सितंबर में कराये जाने का ऐलान कर दिया गया.


इसलिये सवाल उठ रहा है कि जिस मसले को लेकर पार्टी के भीतर इतनी कलह मची हुई है, उसे 11 महीने लंबा टालने का भला क्या मकसद है और गांधी परिवार को क्या अपनी अध्यक्षी चले जाने का कोई डर है? जब पार्टी की कमान गांधी परिवार के किसी सदस्य के हाथ में ही रहनी है, तो फिर ये चुनाव आगामी जनवरी में भी तो हो सकता था. जाहिर है कि कुछ नेताओं ने ये सवाल उठाया भी होगा, लेकिन अब वे इसे मीडिया के सामने जाहिर करने से कतराएंगे. वह इसलिये कि आज सोनिया ने अपने भाषण का अंत ही ये नसीहत देते हुए किया कि, "मैंने हमेशा स्पष्टता को सराहा है. मुझसे मीडिया के ज़रिए बात करने की ज़रूरत नहीं है. आईए, हम सब स्वतंत्र और ईमानदार चर्चा करते हैं. लेकिन, इस कमरे की चारदीवारी से बाहर क्या कहा जाएगा ये सीडब्ल्यूसी का सामूहिक निर्णय होगा."


हालांकि सीडब्ल्यूसी की इस बैठक से ये भी साफ हो गया कि पार्टी में असंतुष्ट आवाजें भले ही उठ रही हों, लेकिन अधिकांश नेता पार्टी की बागडोर गांधी परिवार के सिवा किसी और को सौंपने के मूड में नहीं हैं या फिर वे ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे, ए के एंटनी और अंबिका सोनी जैसे सीनियर नेताओं ने राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाने का राग फिर से अलापा है. बैठक के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, ''सभी ने एक मत से प्रस्ताव रखा कि राहुल गांधी अध्यक्ष बने. हम सभी चाहते हैं कि राहुल गांधी हमारे अध्यक्ष बने लेकिन ये उन पर छोड़ा गया है.'' राहुल के नाम पर सहमति बनने की जानकारी देते हुए अंबिका सोनी ने भी यही कहा कि सभी लोगों का मानना है कि राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष होना चाहिए लेकिन ये राहुल गांधी पर निर्भर करता है वो बनना चाहते हैं या नहीं. अंबिका ने ये भी खुलासा किया कि बैठक में जी-23 के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई और सभी लोग वहां मौजूद थे. उन्होंने कहा, "कांग्रेस बंटी हुई नहीं है, हम सब एक हैं."


वैसे पार्टी नेताओं की इस मांग पर राहुल गांधी ने फिलहाल अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोले हैं. पार्टी अध्यक्ष बनने को लेकर राहुल गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा, "मैं विचार करूंगा." उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें पार्टी नेताओं से विचारधारा के स्तर पर स्पष्टता की जरूरत है. कुछ नेताओं ने मांग रखी है कि संगठन के चुनाव होने तक उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए. लेकिन इस पर भी राहुल ने अभी 'हां' नहीं की है.


पर, बड़ा सवाल ये है कि कांग्रेस आखिर कब तक गांधी परिवार के साये में रहेगी और वो इससे मुक्त क्यों नहीं होना चाहती?


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