ओलंपिक खेलों में अपने कमाल के जरिए समाज को आईना दिखाती देश की बेटियां
टोक्यो ओलंपिक को इतिहास में सिर्फ इसलिये ही नहीं याद रखा जायेगा कि इसमें भारत की बेटियों ने अपने जबरदस्त खेल का कमाल दिखाते हुए दुनिया के मंच पर तिरंगा लहराया था, बल्कि इसलिए इसकी मिसाल दी जाती रहेगी कि इसी के जरिये देश की बेटियों ने पुरुष-प्रधान समाज को ये आईना भी दिखाया था कि उन्हें बोझ मानने-समझने की दकियानुसी दुनिया से बाहर निकलकर खुले आसमान में उड़ने की आज़ादी दीजिये और फिर कमाल देखिये.
हालांकि ये अफसोसजनक है कि भारतीय समाज का एक बड़ा तबका आज भी स्त्री-पुरुष की समानता को लेकर भेदभाव रखता है. लेकिन 550 साल पहले सिखों के पहले अवतार श्री गुरुनानकदेव जी ने इस भेदभाव को ख़त्म करने की पुरजोर वकालत करते हुए समाज को जो संदेश दिया दिया, वह श्री गुरु ग्रंथ साहिब में इस रुप में दर्ज है-- 'सो किउ मंदा आखिअै जितु जंमहि राजानु' (अंग 473). इसका अर्थ है कि जिसने राजाओं, अवतारों, पैगम्बरों को जन्म दिया, उसे अपने से कमतर आखिर आप कैसे मान सकते हैं. अगली पंक्ति में उन्होंने स्त्री-सम्मान की रक्षा की आवाज बुलंद करते हुए नारी को पुरुष के समान माना है.
जिस देश में सिर्फ उस क्रिकेट के लिये ही दीवानगी हो, जिसे ओलंपिक में खेल ही न माना जाता हो, वहां इन बेटियों ने अलग-अलग खेलों में अपनी प्रतिभा के जरिये एक नया इतिहास रचकर खेलप्रेमियों को यह जता दिया है कि दुनिया में देश का डंका बजाने के लिए और भी बहुत सारे विकल्प हैं, सिर्फ मौका मिलना चाहिये.
किसने सोचा था कि घर के लिए जलाऊ लकड़ी का बोझ अपने सिर पर उठाने वाली मीराबाई सानू एक दिन इतनी ताकतवर वेटलिफ्टर बन जाएगी कि दुनिया के खेल-नक्शे पर भारत का नाम सिल्वर मेडल के साथ चमका देगी. हममें से कितने लोग ये जानते हैं कि जिस लड़की के पूरे परिवार का खेलों से दूर-दूर तक कभी कोई वास्ता ही न रहा हो, उसी गुरजीत कौर का दाग गया एकमात्र गोल 41 बरस बाद देश की महिला हॉकी टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचा देगा. हालांकि पी वी सिंधु के रैकेट से मिले कांस्य पदक की उपलब्धि को भी हम भुला नहीं सकते लेकिन उनका मसला इन दोनों लड़कियों के मुकाबले थोड़ा अलग इसलिये है क्योंकि उनके माता-पिता भी खिलाड़ी रहे हैं, इसलिये कह सकते हैं कि उन्हें खेल विरासत में ही मिल गया था.
दो महीने बाद उम्र के 26 बरस पूरे करने वाली अमृतसर के मियादी कलां गांव में जन्मीं गुरजीत कौर के परिवार का हॉकी से कुछ लेना-देना नहीं था. खेती करने वाले उनके पिता सतनाम सिंह के लिए तो दोनों बेटियों की पढ़ाई ही पहली प्राथमिकता थी. गुरजीत और उनकी बहन प्रदीप कौर ने शुरुआती शिक्षा गांव के पास के निजी स्कूल से ली. इसके बाद वे तरनतारन के कैरों गांव में एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने चली गई. कहावत है कि प्रकृति आपका जो बनाना चाहती है, उसके प्रति आपका लगाव खुद ब खुद शुरु हो जाता है. वहां दोनों बहनों ने लड़कियों को हॉकी खेलते देखा और कुछ ऐसी प्रभावित हुईं कि खुद भी इसमें हाथ आजमाने का फैसला कर लिया.
जहां चाह,वहीं राह का नतीजा ये हुआ कि कम ही वक़्त में दोनों बहनों ने जल्द ही खेल में महारत हासिल कर ली और छात्रवृत्ति पाने की हकदार भी बन गईं. हॉकी ने ही उन्हें मुफ्त स्कूली शिक्षा और बोर्डिंग की सुविधा दिला दी. इसके बाद गुरजीत कौर ने जालंधर के लायलपुर खालसा कॉलेज से ग्रेजुएशन की. गुरजीत ने इस कॉलेज में बीए आर्ट्स में दाखिला लिया था और करीब पांच साल तक कॉलेज की अकादमी में वे खेलती रही हैं.
कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. नवजोत कहती हैं कि आज पूरे कॉलेज को बहुत मान महसूस हो रहा है कि उनकी छात्रा ने ओलंपिक में देश का नाम रोशन किया है. अब वाहेगुरु से यही अरदास करते हैं कि भारतीय महिला हॉकी टीम देश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आये. महिला हॉकी खिलाड़ियों ने जो कर दिखाया है उससे पूरे कॉलेज में जश्न का माहौल बन गया है. कॉलेज का स्टाफ और छात्राएं बहुत गर्व महसूस कर रही हैं.
डॉ. नवजोत ने कहा कि गुरजीत कौर को हर समय प्रैक्टिस को लेकर जुनून रहता था और आओसे शायद ही कभी हुआ कि उसने छुट्टी कर मैदान छोड़ा हो. वह हर समय प्रैक्टिस को ही प्राथमिकता देती रही जिसका नतीजा है कि उसने आज टोक्यो ओलंपिक में सबको चौंकाने वाला इतिहास रच दिया है.
कॉलेज के हॉकी कोच कुलबीर सिंह सैनी ने कहा कि "बहुत ज्यादा मान इसलिये भी महसूस हो रहा है कि मुझसे कोचिंग लेने वाली गुरजीत कौर ने आज देश का नाम ओलंपिक में चमकाया है. वैसे गुरजीत कौर अब तक करीब 53 इंटरनेशनल मैच खेल चुकी हैं. वह उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) के प्रयागराज में सीनियर क्लर्क के पद पर तैनात हैं.
शायद यही वजह है कि हॉकी टीम के साथ ही गुरजीत को भी बधाई देने वाक्यों में आज पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अव्वल थे. कैप्टन ने ट्वीट किया कि तीन बार के ओलंपिक चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराकर ओलंपिक सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए मुझे हमारी महिला हॉकी टीम पर गर्व है. उन्होंने मैच में एकमात्र गोल करने वाली अमृतसर की गुरजीत कौर को बधाई दी. कैप्टन ने कहा कि हम इतिहास की दहलीज पर हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)