अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को शनिवार को इलाहाबद के कोल्विन अस्पताल में मेडिकल चेकअप के लिए लाया गया था. उसी दौरान तीन युवकों ने ताबड़तोड़ 22 राउंड फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी. अब ऐसे में सवाल है कि योगी सरकार जो अबतक अपने कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जानी जाती थी, उसे लेकर सवाल खड़ा हो गया है. किसी की भी पुलिस कस्टडी में हत्या किया जाना, मीडिया के कैमरों के समक्ष मार गिराया जाना कानून व्यावस्था की कमजोरी को दर्शाता है. अतीक अहमद और अशरफ की हत्या इस मायने में काफी दुर्भाग्यचपूर्ण है, कि पुलिस बंदोबस्त, पुलिस दस्ते यहां तक कि 17-18 पुलिसकर्मियों की मौजूदगी के बीच में अपराधी बाइक से आए और मीडियाकर्मी बनकर प्वा्इंट ब्लेंक रेंज से गोली मारकर हत्या कर दी. उसे कान से सटाकर गोली मारी गई. अतीक के भाई अशरफ ने पलटकर देखा तो उसके दिमाग पर सटाकर गोली मारी गई.
गोलीबारी होते ही पुलिसवाले पीछे भागे, पत्रकार भी पीछे भागे. जैसा कि फुटेज में दिख रहा है, पुलिसवाले एक सर्किल बनाए हुए थे. बड़ा सवाल यह है कि जब हमलावर ताबड़तोड़ गोली चला रहे थे तो पुलिस भी गोली चला सकती थी. जब उत्तर प्रदेश में आए दिन अपराधियों की धर-पकड़, एनकाउंटर हो रहे हैं तो हमले के वक्त पुलिस भी हमलावरों के पैर पर गोली चला सकती थी. तीनों हमलावरों की पीठ पुलिसवालों की तरफ थी. पुलिस भी उनके पैर पर गोली मार सकती थी. अगर पुलिस हमलावरों कोऑन-द-स्पाट मार देती तो यह सवाल खड़ा होता कि एक बहुत बड़ी साजिश को दबा देने के लिए अपराधियों को मार दिया गया ताकि जांच की आगे की कड़ी खत्म हो जाए कि वे कौन लोग थे. किसके इशारे पर हत्या हुई. सोशल मीडिया का जमाना है. यह घटना कानून-व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े करती है.
पुलिस अपराध नियंत्रण का दावा करती है. मुख्य मंत्री भी दावा करते हैं. काफी कुछ हुआ भी है. बड़ी संख्या में अपराधियों ने सरेंडर किया है. बहुत अपराधी राज्य को छोड़कर चले गए हैं. इसके बावजूद अपराध रूक तो नहीं रहा है. करीब एक महीने पहले एक हत्याकांड के फुटेज में अतीक का बेटा नजर आया. हत्याएं हो रही हैं, अपराध हो रहे हैं. पुलिस की घेराबंदी में जिस तरह हत्या हुई है वह भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है. अतीक के बेटे असद के एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह सेलेब्रेशन हुआ, उसको देखते हुए यह सवाल उठ रहा है कि हम किस तरह के समाज का निर्माण कर रहे हैं. क्या हम कबीलाई, तालिबानी समाज का निर्माण कर रहे हैं.
अपराधी का कोई धर्म नहीं होता. अतीक अहमद का ही एक आडियो लीक हुआ था जिसमें कथित रूप अतीक मुंबई के एक मुस्लिम बिल्डर को धमका रहा है, गाली-गलौज कर रहा है. मोटा पैसा मांग रहा है. वह भी मुस्लिम बिल्डर से कहने का मतलब यह कि अपराधी का कोई जाति-धर्म नहीं होता. अपराधी का धर्म होता है पैसा और उसका आपराधिक साम्राज्य. क्या हम धर्म के आधार पर तालिबानी व्यवस्था का पब्लिक का माइंडसेट तैयार कर रहे हैं. जिस तरह सोशल मीडिया पर एक समूह खड़ा हो रहा है वह देश, समाज और धार्मिक भाइचारे के लिए ठीक नहीं है. जो हत्या हुई, उसके बाद सोशल मीडिया पर बुलडोजर बाबा की जय हो के नारे लगाए जा रहे हैं तो ओवैसी और अखिलेश यादव सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं. भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण एक चैनल पर जो वक्त्व्य दे रहे थे राष्ट्रपति शासन लगाने की, परोक्ष रूप से इस मामले में योगी आदित्यनाथ की ओर इशारा किया जा रहा है.
यह एक हत्या थी. क्या इस हत्या से योगी आदित्यनाथ को राजनैतिक फायदा हुआ है. मेरा मानना है कि योगी आदित्यनाथ को राजनैतिक नुकसान हुआ है. अतीक और अशरफ जिंदा रहते तो 2024 के चुनाव में पार्टी इस मुद्दे को भुनाती. वैसे मामला काफी पेचीदा रहेगा क्योंकि योगी आदित्यनाथ को इसका कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलेगा. अतीक के बेटे असद का एनकाउंटर हुआ तो उसका काफी पोलिटिकल माइलेज योगी आदित्यनाथ को मिला. अतीक का मुद्दा अब खत्म हो चुका है. योगी को हुए इस नुकसान के पीछे पार्टी के भी कुछ ऐसे नेता हैं जो दूसरे दल से बीजेपी में आए हैं. अतीक अहमद के भी करीबी रहे हैं। निवेश भी कर रखा है. प्रयागराज के एक बड़े बिजनेसमैन के यहां अतीक का पैसा लगा हुआ है. गोरखपुर में मंच पर उक्त बिजनेसमैन की तस्वीरें खिंचवाई गईं. कुल मिलाकर यह मामला पेचीदा होने जा रहा है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है]