डीपफेक आज के संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण और घातक चुनौती है, जो हम सबके सामने आ खड़ी है. इसका मुख्य कारण ये है कि ये वो टेक्नोलॉजी है, जो आमलोगों के हाथों तक आ गई है. पहले ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल साइबर क्रिमिनल किया करते थे. अब, जब ये टेक्नोलॉजी आम लोगों के हाथों तक आ गयी है तो आम व्यक्ति भी कभी न कभी साइबर अपराध को अंजाम दे देता है. जब ऐसी टेक्नॉलोजी आपको प्रोत्साहित करती है कि आप गलत कर लीजिए, तो लोग कहीं न कही ऐसी घटनाओं को अंजाम दे ही देते हैं.


डीपफेक के बारे में अगर आम शब्दों में बोला जाए तो काफी आसान टेक्नॉलोजी है. मान लीजिए कोई मेरी तस्वीर और मेरा वीडियो है, अगर आप मेरी तस्वीर या मेरे वीडियो पर किसी और की शक्ल छाप दें और उसी को मिमिक कर दें तो लोगों को यही लगेगा कि वो मैं नहीं बल्कि वो व्यक्ति बोल रहा है. डीप फेक के जरिए यही कोशिश की जाती है कि आप लोगों को गुमराह करें, उसे चीट करें, उसके ट्रस्ट को जीतें और उसके बाद उसे साइबर क्राइम का शिकार बनाएं.


हर बड़े सेलिब्रिटी के बन रहे डीपफेक वीडियो


आजकल जितने भी बड़े सेलिब्रिटी हैं उनके डीपफेक वीडियो बन रहे हैं, वो चाहे रश्मिका मंदाना हो, कैटरीना कैफ हो, काजोल हो या फिर वो देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही क्यों न हों. आज हर व्यक्ति के डीपफेक बनाने की क्षमता पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है और उसका अब लगातार दुरुपयोग होगा. लोगों की मानसिक शांति भंग होगी और ये भी प्रयास किया जाएगा कि इस डीपफेक के माध्यम से भारत की जो चुनाव प्रक्रिया है, उसको बेपटरी किया जा सके. चुनाव के नतीजों को भी प्रभावित किया जा सके. इसलिए डीपफेक बड़ा खतरा है और जितनी जल्दी में इस चुनौती से पार पा लें, एक राष्ट्र के तौर पर ये बहुत ही अच्छा होगा.



सामान्य  आंखों से ये पहचान करना मुश्किल है कि ये डीपफेक वीडियो है या फिर नॉर्मल वीडियो है. जब टेक्नोलॉजी बहुत ज्यादा विकसित नहीं थी, उस वक्त ये पता लग जाता था कि वहां पर झटका है. लेकिन अब टेक्नोलॉजी इतनी ज्यादा विकसित कर गई है कि ये पता लगाना बहुत ही मुश्किल है. उसके अंदर ऐसी फीचर है. लेकिन जब व्यक्ति विशेष ये खुद बोलेगा कि वे उस वीडियो में नहीं है तो सामान्य तौर पर आपको पता लग सकता है कि वो डीपफेक वीडियो है.



आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अलग से कानून की जरूरत


 किसी भी वीडियो का अगर फॉरेंसिक एनालिसिस किया जाएगा, तो उसमें भी पता लगाया जा सकता है कि वो डीपफेक वीडियो है या फिर सामान्य वीडियो है. उस वीडियो के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ की गई भी है या नहीं. जिस तरह से आज डीपफेक वीडियो की भरमार है, ऐसे में हाथ पर हाथ धरे बैठना विकल्प नहीं है. ज्यादा बेहतर होगा कि इन चुनौतियों का हमें मुंहतोड़ सामना करना पड़ेगा.


इसके लिए जरूरी है कि कानूनी उपकरण हों, जो इन चुनौतियों से डील करने में सक्षम हों. आज जब भारत के वर्तमान कानूनी प्रकरण पर नजर डालता हूं तो ये पता चलता है कि यहां पर विशेष तौर पर कोई कानूनी प्रावधान मौजूद नहीं है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति समर्पित हों या डीपफेक को वर्णित करते हों.


जब आपके पास कोई कानून नहीं है और भारत का जो सूचना प्रौद्योगिकी कानून है साल 2000 का, वो पूरी तरह से आईटी एक्ट में डीपफेक को लेकर कुछ भी खास नहीं कहा गया है. ऐसे में डिजिटल फेमवर्क बनाने की जरूरत है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर कानून को लाने की जरूरत है. वो कानून विशेष तौर पर ये प्रावधान लेकर आए कि डीपफेक वीडियो को एक दंडनीय अपराध बनाए.


अभी हमारे पास भारतीय दंड संहिता में धारा 468 है. कहीं न कहीं जब आप डीफेक करते हैं तो आप इलेक्ट्रोनिक फर्जीवाड़ा करते हैं. इसलिए जरूरी है डीपफेक स्पेशिफिक एक अपराध बनाएं. ताकि ऐसा करने वालों का लगे कि अगर मैं पकड़ा गया तो स्वभाविक तौर पर मुझे इतने सालों तक जेल के अंदर रहना पड़ सकता है. 


स्पेसिफिक बने कानून


कानून का उद्देश्य यही होता है कि लोगों के हृदय में इतना डर फैला दें ताकि वो कानून का उल्लंघन न कर पाए. ऐसे में पहली चीज तो ये है कि कानून लाना पड़ेगा. लेकिन, कानून लाना एक लंबी यात्रा है. इससे बेहतर होगा कि जब तक कानून नहीं आता तब तक केन्द्र सरकार के पास कानून है, भारत के सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 87. रुल्स एंड रेगुलेशन को अप्लाई करते हैं ताकि आईटी एक्ट के प्रावधानों का पालन सुचारू रूप से किया जा सके.


सरकार  सर्विस सेक्टर के लिए नए रुल्स एंड रेगुलेशन लेकर आ सकती है, ताकि वो मूकदर्शक न बने रहे, बल्कि वो ये जरूर देखे कि उनके प्लेटफॉर्म पर डीपफेक वीडियो कैसे आ रहा है और कड़े कदम उठाए. ताकि, वीडियो का प्रसारण उनके प्लेटफॉर्म पर न किया जा सके. इस इश्यू को प्रभावी रुप से डील करना पड़ेगा.


अगर देश के प्रधानमंत्री को टारगेट किया जा सकता है तो किसी भी जनता-जनार्दन को टारगेट किया जा सकता है. कहीं न कहीं देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा भी नकारात्मक रुप से इससे प्रभावित हो सकती है. इसलिए ये चुनौती बहुत ज्यादा विकराल है. जितनी जल्दी हम इसको निपटने के लिए सही प्रावधान लेकर आएं, उतना ही अच्छा होगा.


भारत में एक ऐसे का कानून की जरूरत है जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित हो. दुनिया के बाकी देशों को देखें तो वो पहले से ही एक डेडिकेटेड लॉ लेकर आ रहे हैं. चीन ने 15 अगस्त 2023 को एक नया और दुनिया का पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लॉ पारित कर उसे लागू कर दिया. यूरोपीय यूनियन ड्राफ्ट एआई लॉ लेकर आ रही है.         


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