देश के जानेमाने उद्योगपति अनिल अंबानी ने आम आदमी पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह के खिलाफ पांच हजार करोड़ की मानहानि का दावा ठोक दिया है. संजय सिंह ने हाल ही में अनिल अंबानी पर राफेल लड़ाकू विमान की खरीद घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था.


दरअसल रॉफेल लड़कू विमान खरीद के मुद्दे पर मोदी सरकार चौतरफा घिरी हुई है. विपक्ष मोदी सरकार से राफेल सौदे के कागज़ात सार्वजनिक करने की मांग कर रहा है. मोदी सरकार इसे फ्रांस सरकार के बीच हुआ गोपनीय समझौता बताकर सार्वजनिक करने से इंकार रही है. ताजा मामले में संजय सिंह ने अनिल अंबानी के मानहानि के नोटिस को बंदर घुड़की करार देकर साफ कहा है कि वो इससे डर कर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना बंद नहीं करेंगे.


अंबानी ने कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पर भी पांच हज़ार करोड़ की मानहानि का दावा ठोका है. सिंघवी ने 30 नवंबर को कहा था कि अरुण जेटली ये कह कर देश की जनता को मूर्ख बना रहे हैं कि किसी बड़े अद्योगपति को कर्ज़माफी का फायदा नहीं पहुंचाया गया है. अनिल अंबानी का मोदी सरकार के खिलाफ बोलने वाले दो पार्टियों के नेताओं के खिलाफ इतनी भारी भरकम रकम की मानहानि का दावा ठोकने से साफ जाहिर है कि मोदी सरकार उद्योगपतियों के हित में काम कर रही है. इसी अहसान का बदला चुकाने के लिए अंबानी जैसे उद्योगपति सरकार के विरोधियों को अदालतों के चक्कर लगवा कर परेशान करना चाहते हैं.


यह तीसरा मौका है जब मोदी सरकार या उसके किसी मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वालों के खिलाफ भारीभरकम रकम की मानहानि का दावा ठोका गया है. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे की कंपनी के कारोबार में अचानक हुई अप्रत्याशित बढोत्तरी की खबर करने पर “द वायर” नामक नयूज़ पोर्टल पर सौ करोड़ की मानहानि का दावा ठोका गया. न्यूज़ पोर्टल ने गुजरात हाई कोर्ट में ये मुकदमा खारिज करने की अपील की तो उसकी अपील खारिज कर दी गई. गुजरात हाई कोर्ट ने जय शाह के मानहानि के दावे को सुनवाई करने लायक पाया है.


इससे पहले कोर्ट ने 12 अक्टूबर को जय शाह की याचिका मंजूर करते हुए अहम आदेश दिया था. इसके तहत 'द वायर', उसके संपादक और आलेख के लेखक को जय शाह की कम अवधि में बेशुमार कमाई की कहानी को किसी भी तरह आगे बढ़ाने पर रोक लगाई गई थी. गौरतलब है कि न्यूज़ पोर्टल ने 'गोल्डन टच ऑफ जय अमित शाह' नाम से एक आलेख प्रकाशित किया था. इसमे जय शाह की कंपनी के टर्नओवर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी का उल्लेख किया गया था. यह रोक मीडिया के सभी माध्यमों में लगाई गई थी. हाई कोर्ट ने इस संबंध में साक्षात्कार, टीवी बहस समेत अन्य सभी संभावित माध्यमों पर रोक लगाई थी. यानि हाई कोर्ट का साफ आदेश है कि जय शाह की कंपनी की खबर ना तो को कहीं छापी जाए ना हीं उस पर कहीं कोई चर्चा हो.


करीब दो साल पहले मोदी सरकार के एक और मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर सौ करोड़ का मुकदमा का ठोका था. केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि डीडीसीए में उस वक्त बड़ा घोटाला हुआ था जब अरुण जेटली इसके चेयरमैन थे. इन आरोपों से तिलमिलाए जेटली ने कोजरीवाल और उनके ट्वीट को रीट्वीट करने वाले आप के नेताओं को भी मानहानि के मुकदमे में घसीट रखा है. कोजरीवाल, अशुतोष और राघव चढ्ढा अदालतों के चक्कर काट रहे हैं. आम आदमी पार्टी के नोताओं को भाजपा के कई और नेताओं ने मानहानि के मुकदमों में उलझाया हुआ है. भाजयुमो के एक नेता ने कोजरीवाल और आशुतोष पर एक-एक रुपए की मानहानि के साथ आपराधिक मुकदमा भी ठोका हुआ है.


दरअसल मानहानि का मुकदमा एक राजनीतिक हथियार बन गया है. सत्ताधीश या बड़े राजनीतिक रसूख वाले लोग इसे अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं. विरोधी कोई भी हो सकता है. विरोधी पार्टियों के नेता या फिर मीडिया संस्थान. बड़ी रकम का मानहानि का दावा होने पर कोई भी मानसिक दबाव में आ सकता है. इसकी वजह से उसके विरोध के हमलों की धार कुंद हो सकती है. मानहानि का मामला कई साल चलता है. ज्यादातर मामलों में आपसी रज़ामंदी के मामले निपटा लिए जाते हैं. ऐसा ही एक मामला यूपीए सरकार के दौरान सामने आया था. यूपीए सरकार में मंत्री रहे कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के खिलाफ मानहानि का दावा ठोका था. दोनों नेताओं को माफी मांग कर इस मुकदमे से पीछा छुड़ाना पड़ा था.


बड़ी रकम का मुकदमा ठोकने के बाद उसे रफादफा करने के दो मामले बसपा नेता मायावती से जुड़े है. करीब 2000 के दशक के शुरुआत में एक राष्ट्रीय अखबार ने पहले पेज पर मायावती के नाम के साथ जातिसूचक शब्द छाप दिया था. अखबार बाजार में आते ही हंगामा हो गया. मायावती की तरफ से तब उनकी पार्टी में नए-नए आए सतीश मिश्रा ने अखबार पर सौ करोड़ रुपए की मानहानि का नोटिस भेजा, मुकदमा भी दाखिल किया. कुछ दिनों बाद अखबार मालिक ने मायावती से मिलकर माफी मांगी और मामला रफादफा कराया. मायावती ने अपने बारे मे गलत खबर छापने पर और और राष्ट्रीय अखबार पर 250 करोड़ रुपए की मानहानि का दावा किया था. लेकिन बाद में यह मामला भी रफादफा हो गया था.


विरोधी पार्टियों के नेताओं, पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के खिलाफ किए गए मानहानि के इन कुछ मुकदमों से साफ जाहिर है कि सत्ता में उंचे पदे पर बैठे लोग अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं. पहले रसूखदार लोग सांकेतिक रकम की मानहानि का दावा करके अपना बड़प्पन दिखाया करते थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वापजेयी अक्सर कहा करते थे राजनीति में मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए. अब मामला उल्टा हो गया है. मतभेद कम हैं मनभेद ज्यादा है.


वाजयेपी के दौर तक दूसरी पार्टियों के लोगों को सहयोगी या राजनीति विरोधी समझा जाता था. अब मोदी का दौर है. इस दौर में हर विरोधी पार्टी और उसके नेता दुश्मन है. दुश्मनों को साम, दाम, दंड, भेद सभी हथकंडे अपना कर ख़त्म करना ही एक मात्र उद्देश्य है. जहां खुद मानहानि का ठोक सकते हो ठोक दो. नहीं ठोक सकते तो अपने सरपरस्त उद्योगपतियों से मुकदमा करा दो. आज के इन सत्ताधीशों की खतरनाक सोच अब खुल कर सामने आ रही है. मानहानि के मुकदमों से वो इतना डर बैठा देना चाहते हैं कि उनके खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ गले में ही दम तोड़ दे. उनके खिलाफ़ कुछ भी लिखने से पहले कलम चलाने वाले हाथ थर्रा जाएं. शायद ऐसे ही हालात के बारे में कभी फैज़ अहमद फैज़ ने लिखा था.

“ निसार तेरी गलियों पे ए वतन कि जहां,
चली है रस्म कि कोई न सर उठा कर चले.”


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)