Opinion: दिल्ली सीएम के एलान में हो रही देरी के पीछे छिपे हैं ये पांच बड़े फैक्टर

दिल्ली में बीजेपी को मुख्यमंत्री के लिए नाम चुनने में देरी हो रही है. इस पर सभी की आंखें टिकी हुई है. आखिर क्या कारण है कि दिल्ली में बीजेपी इतना फूंक–फूंक कर कदम रख रही है? जब बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला और 70 में से 48 सीटें बीजेपी के पास है तो फिर परेशानी कहां है? सबसे पहले हमें ये समझना पड़ेगा दिल्ली की बीजेपी अंदर से एक पार्टी नहीं है बल्कि इसमें कई खेमे हैं, जैसे- जातिगत, क्षेत्रगत. इसके अलावा और भी कुछ ऐसी चीजें हैं, जिस पर गहराई से सोचने की जरूरत है.
ऐसा भी कहा जा रहा है कि नाम तो तय हो चुका है, बस बताने की देर है. कुछ लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश यात्रा यानी फ्रांस-अमेरिका दौरे से पहले ही दिल्ली सीएम का नाम तय हो चुका था. फिर एलान क्यों नहीं हो पा रहा है? ये सवाल सामान्य है और सभी के मन में भी है.
हम ये देख चुके हैं कि राजस्थान हो, मध्य प्रदेश हो या फिर छत्तीसगढ़ हो, हर जगह बीजेपी ने समय लेकर ही नाम का चयन किया. और आखिर में ऐसे नाम सामने आए, जिनके बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं था. दिल्ली में भी ऐसा हो सकता है कि जो नाम हम शायद सोच रहे हैं वह नाम ना हो. क्योंकि दिल्ली में बीजेपी कितनी तरह की अंदर से है, ये समझने की हमें जरूरत है.
बीजेपी में दिल्ली सीएम के एक दावेदार नई दिल्ली विधानसभा सीट पर केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा हैं. इसके अलावा, पूर्वांचलों के भी कई दावेदार हैं, उनमें से सतीश उपाध्याय भी हैं, जो नई दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी के वाइस चेयरमैन हैं और हर तरह से सक्षम भी हैं. दिल्ली बीजेपी की जीत के पीछे विजेन्द्र गुप्ता का भी बड़ा हाथ है. इसके अलावा भी कई नाम हैं जो एमएलए नहीं हैं. ऐसे में दिल्ली में मुख्यमंत्री के नाम पर अटकलें लगाना बहुत मुश्किल काम है. कई लोग दौड़ में है पर कौन क्या करेगा, इसका निर्णय निश्चित रूप से हाइकमान ही करेगा. हाइकमान में प्रधानमंत्री जैसा सोचेंगे और जैसा वे फाइनल करेंगे, वैसा ही होगा.
कांग्रेस के बिना जीत नहीं मुमकिन
इस जीत के बावजूद भी बीजेपी के सामने एक सवाल मुंह बाए खड़ा है और वो ये कि बीजेपी के लिए अब आम आदमी पार्टी अब शायद उतनी बड़ी चुनौती न रह जाए. लेकिन कांग्रेस एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है. बीजेपी के सभी नेता इस जीत के बाद बातों-बातों में ये इशारा कर बताते हैं कि ये जीत संभव ना होता, अगर कांग्रेस मैदान में ना होती.
कांग्रेस के मैदान में उतरने से सीधे-सीधे 14 सीटों पर तो असर हुआ ही है., जिसमें अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के वोट अगर जोड़ लें तो बीजेपी के उम्मीदवार से कहीं ज्यादा है. केजरीवाल भी अगर दिल्ली चुनाव हारे तो इसी वजह से हारे हैं. बड़ी मुश्किल से अगर आदिशी जीत पाई हैं तो वो भी कांग्रेस की वजह से ही. मनीष सिसोदिया अगर हारे तो उसकी वजह भी कांग्रेस की तरफ से आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचाना है.
यानी, कांग्रेस की बढ़ती हुई साख या प्रभाव कह लीजिए, जो दिल्ली की जनता पर पड़ रही है, उससे कैसे निपटा जाए ये भी बीजेपी में एक विषय है. बीजेपी को ये भी समझ में आ रहा है कि बहुत से वो आरोप जो आम आदमी पार्टी के खिलाफ लगाए गए, वो उस तरह से नही थे, जो सामान्य रुप से जो जनता ने समझा होगा या वोटर पर शायद असर पड़ा होगा. उनमें से एक जो सबसे बड़ा मुद्दा रहा है कि दील्ली में यमुना क्यों नही साफ हो रही. यह सब जानते है कि यमुना दिल्ली की सरकार तब तक नही साफ कर जब तक केन्द्र के जल संसाधन मंत्रालय साथ नही देगा.
वादों को पूरे करना चुनौती
अब चुनाव हो गए और सरकार बनी नही और दिल्ली की यमुना की सफाइ शुरू हो गई है. यानी की सफाई पहले भी हो सकती था, जो नही किया गया. ऐसे कई तरह के सवाल है. सवाल ये भी है कि क्या एमसीडी को बीजेपी अपने कब्जे में करना चाहती है. आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों ने बीजेपी ज्वाइन किया. क्या इस तरह का बीजेपी का म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन पर भी कब्जा हो पाएगा? बीजेपी कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रही है.
इन सारी लड़ाइयों में बीजेपी की कोशिश ये है कि लड़ाई तो जीत जाएं पर आंच कहीं ना आए. इन सारी चीजों को देखते हुए मुख्यमंत्री के दावेदार हैं, उनका चुनाव उनको करना है. उसमें भी कई पेंच है कि किसको बनाया जाए? क्या किसी महिला को बनाया जाए? जो चुनकर महिलाएं सामान्य रुप से आयी हैं, वो इतनी सक्षम नहीं दिख रही हैं, जिन्हें सीएम पद की कमान सौंपी जा सके.
ऐसे में दिल्ली की साएम कौन होगा, ये सवाल दिल्ली की जनता को भी साल रही है और दिल्ली बीजेपी को भी साल रही है. सभी विपक्षी पार्टियां वो चाहें कांग्रेस हो या फिर आम आदमी पार्टी, सभी बीजेपी की इन उलझनों को बखूबी देख रही हैं. लेकिन, अब और ज्यादा वक्त सीएम के फैसले में नहीं लगेगा. गहन विचार के बाद जल्द ही पता चला जाएगा कि कौन सीएम बनेगा, अभी नामों का जिक्र करना बेमानी होगी.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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