नयी दिल्लीः देश की राजधानी के एक श्मशान घाट में नौ साल की एक मासूम बच्ची को पहले हैवानियत का शिकार बनाया जाता है और फिर मारकर लाश को जबरदस्ती जला दिया जाता है. पुलिस आती है और अधजली लाश को अपने कब्जे में ले लेती है. फिर उसी आग पर अपनी राजनीति गरमाने की ऐसी होड़ लगती है कि उस शोर में मासूम की यह चीख ही दब जाती है कि 'मुझे इंसाफ़ चाहिये'.
हैवानियत की सारी हदें पार कर देने वाली इस घटना के बाद विपक्षी दलों के नेता अगर पीड़िता के परिवार से मिलने-सहानुभूति जताने गए हैं, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. यह उनका अधिकार भी बनता है लेकिन इससे राजनीतिक फायदा लेने की बदनीयती अगर उनके दिमाग में उठती है, तो फिर यह किसी घोर पाप से कम नहीं है. लेकिन पीड़ित परिवार से मिलने पर सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को न तो ऐतराज़ करना चाहिए और न ही सवाल उठाकर इतने नाजुक मामले को राजनीति की आग में भस्म कर देना चाहिये. पीड़िता के परिवार से मिलने का हक़ राहुल गांधी को भी उतना ही है, जितना कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को. लेकिन सबका मकसद सिर्फ़ एक होना चाहिए कि पीड़िता को जल्द से जल्द इंसाफ़ मिले क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर यही देखा गया है कि राजनीति इतनी हावी हो जाती है कि उसमें इंसाफ़ दिलाने की आवाज़ ही गायब हो जाती है.
हालांकि, सरकार को घेरने के लिए ये एक ऐसा मुद्दा है, जो विपक्ष को सबसे कारगर दिखता है, लिहाज़ा वो ऐसे मुद्दों पर अक्सर अपनी राजनीति चमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. लेकिन यह तय करने का फैसला जनता पर छोड़ देना चाहिये क्योंकि उसमें इतनी समझ है कि इस मसले पर कौन राजनीति कर रहा है और कौन पीड़ित परिवार की ईमानदारी से मदद कर राजा है. चूंकि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है, इसलिये ऐसी किसी भी घटना के लिए समूचा विपक्ष पहले भी केंद्र को ही कटघरे में खड़ा करता रहा है और अब भी वही हो रहा है. आधे-अधूरे अधिकारों वाले राज्य का दर्ज़ा पाई दिल्ली में भले ही अरविन्द केजरीवाल की सरकार हो लेकिन पुलिस व कानून-व्यवस्था पर उनका कोई हक नहीं है. केजरीवाल भी आज पीड़िता के परिवार से मिलने पहुंचे और उन्हें 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का एलान करके अपना मानवीय चेहरा पेश किया है, जो सराहनीय है.जल्द इंसाफ़ दिलाने के लिए उन्होंने सरकार की तरफ से बेहतरीन वकील की सेवा लेने का भी भरोसा दिया है.
दरअसल, नांगल इलाके के श्मशान घाट में हुई इस घटना के बाद दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग को लेकर पीड़ित परिवार के साथ स्थानीय लोग कैंट इलाके में सड़क पर धरना दे रहे हैं. बुधवार सुबह राहुल गांधी इसी जगह पहुंचे थे.उन्होंने पीड़िता के माता-पिता को अपनी गाड़ी में बैठाकर करीब आधे घंटे तक बात की और दुख बांटा. मुलाकात के बाद राहुल ने कहा, 'परिवार न्याय मांग रहा है. परिवार की शिकायत है कि न्याय नहीं मिल रहा है. उन्हें न्याय दिलवाऊंगा. उनके साथ खड़ा हूं. जब तक न्याय नहीं मिलेगा एक इंच पीछे नहीं हटूंगा.
लेकिन बीजेपी ने राहुल के इस दौरे को राजनीति से जोड़ दिया और पार्टी प्रवक्ता भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने राहुल गांधी से कहा कि रेप पर राजनीति करना अच्छा नहीं है. कांग्रेस को दिल्ली में दलित की बच्ची से दुष्कर्म दिखाई देता है लेकिन राजस्थान के रेप पर वह चुप क्यों हो जाते हैं. पात्रा ने कहा कि, दिल्ली के नांगल में नन्ही सी बच्ची के साथ रेप हुआ, ये बहुत दुखद है, हम इसकी घोर निंदा करते हैं. इसमें चार से अधिक लोग गिरफ्तार हुए हैं. कानून इस पर अपना काम कर रहा है लेकिन रेप के मामलों में अगर राजनीति की जाए, तो ये राजनीति का सबसे निम्न स्तर होता है.
संबित पात्रा ने इस बारे में राहुल गांधी के ट्वीट पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि कल राहुल गांधी जी ने ट्वीट किया कि दलित की बेटी हिंदुस्तान की बेटी है. इसमें कोई दो मत नहीं है.उसे न्याय मिलना ही चाहिए. लेकिन क्या राजस्थान की दलित बेटी, छत्तीसगढ़ की दलित बेटी और पंजाब की दलित बेटी, जिसके साथ जघन्य अपराध होता है, क्या ये हिंदुस्तान की बेटियां नहीं हैं? क्या कांग्रेस बता सकती है कि वह इन राज्यों में होने वाली ऐसी ही घटनाओं पर चुप क्यों रहती है?
हालांकि पीड़िता के परिवार से मिलने के बाद आज राहुल गांधी ने फिर अपने ट्वीट में लिखा कि " माता-पिता के आंसू सिर्फ एक बात कह रहे हैं- उनकी बेटी, देश की बेटी न्याय की हकदार है और इस न्याय के रास्ते पर मैं उनके साथ हूं." राहुल ने इस ट्वीट में पीड़िता के माता-पिता की तस्वीर भी साझा की जिसमें पीड़ित परिवार की पहचान उजागर हो रही थी. इसको लेकर भी बीजेपी ने राहुल गांधी पर सवाल उठाए है. राहुल के ट्वीट को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब में कांगेस ने सफाई देते हुए कहा कि सोशल मीडिया के दौर में परिवार की पहचान पहले ही उजागर हो चुकी थी, लिहाजा इसका कोई मतलब नहीं है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)