रईसजादों के बिगड़ैल बेटों के हाथ में है क्या दिल्ली का कानून?
नए साल का सूरज उगने से चंद घंटे पहले देश की राजधानी दिल्ली में जिस तरह से दरिंदगी का खौफनाक खूनी खेल गया वो सिर्फ दिल्ली पुलिस के मुंह पर ही नहीं बल्कि केंद्र के पूरे सिस्टम पर भी करारा तमाचा है. वह इसलिये कि राजधानी की पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है और उसके सर्वेसर्वा यहां के उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना हैं. 20 साल की युवती को अनजाने में या जानबूझकर घसीट कर मारे देने की इस वारदात के बाद हमारे लाड साहब ने ट्वीट किया कि "इस घटना को सुनकर मेरा सिर शर्म से झुक गया है. ऐसी राक्षसी असंवेदना देखकर मैं स्तब्ध हूं."
दिल्ली के एलजी को पीड़ित परिवार के प्रति अपनी संवेदना जताने का पूरा हक है. लेकिन उनकी जिम्मेदारी की असली अग्नि परीक्षा की शुरुआत तो अब होगी कि वे इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अपने पुलिस अफसरों को बचाते हैं या फिर पीड़ित लड़की के परिवार को इंसाफ दिलाने की पहल करने के लिए सबसे पहले आगे आते हैं. इस सवाल उठने की एक बड़ी वजह है क्योंकि वारदात की पूरी जांच-पड़ताल किये बगैर महज़ 12 घंटे के भीतर ही पुलिस के एक आला अफसर ने मीडिया के आगे आकर जो बयान दिया है वो पांचों आरोपियों को एक तरह से बचाने वाला और इस संगीन हत्या को कमजोर करने वाला है.
उसी एक बयान से सिर्फ दिल्ली महिला आयोग को ही नहीं बल्कि हर समझदार इंसान को भी ये शक हो रहा है कि पुलिस कुछ छुपाने-दबाने की कोशिश कर रही है. अब इसके पीछे लक्ष्मी माया की ताकत है या फिर कोई ऊपरी दबाव है लेकिन इतना तो साफ दिख रहा है कि कोई तो गड़बड़झाला है कि पुलिस इसे सिर्फ एक एक्सीडेंट का मामला बताकर सुल्टा देने की फ़िराक में है.
इसलिये दिल्ली के एलजी सक्सेना साहब को पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा से पहला जवाबतलब तो ये करना चाहिए कि आउटर दिल्ली जिले में तैनात उनके डीसीपी हरेंद्र के सिंह को ऐसा बयान मीडिया में देने की इतनी जल्दी क्यों थी और इसके पीछे आखिर मकसद क्या था. पुलिस ने इसे एक्सीडेंट का मामला बताने के साथ ही मीडिया में ये खबर भी प्रसारित करवा दी है कि पांचों गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में उन्होंने बताया है कि वे नशे की हालत में थे, इसलिये उन्हें पता ही नहीं था की उनकी गाड़ी के नीचे कोई लड़की भी आ गई है, जो घसीटती चली जा रही है.
आमतौर पर किसी भी संगीन वारदात के बाद गिरफ्तार किये गये आरोपियों की दलील को पुलिस मीडिया में सार्वजनिक करने से बचती है. लेकिन इस मामले में उसकी जल्दबाजी बताती है कि दाल में कहीं तो कुछ काला है. हम इसे अपने बरसों पुराने बनाये कानून की खामी समझें या अपनी मजबूरी लेकिन हकीकत ये है कि किसी भी वारदात के बाद ये सब कुछ पुलिस के हाथों में ही होता है कि पूरे मामले को कितना कमजोर बनाया जाए या फिर तमाम सबूतों को जुटाकर इसे एक पुख्ता केस के तौर पर अदालत के सामने पेश किया जाये. इसीलिये आज़ादी मिलने के 75 साल बाद भी पुलिस की जांच करने का तौर-तरीका और उसकी विश्वसनीयता आज भी शक के घेरे में ही है.
बेशक पुलिस में अधिसंख्य लोगों की चिंता ये कभी नहीं होती कि वे अपनी ख़ाकी वर्दी की दागदार छवि को कैसे बदलें बल्कि उनकी सबसे पहली फिक्र व प्राथमिकता ये होती है कि उसे मलाईदार पोस्टिंग कैसे हासिल हो. इसलिये कहते हैं कि उस पैमाने में कोई भेदभाव नहीं है क्योंकि ये नीचे से लेकर ऊपर तक सभी पर समान रुप से लागू होता है. दरिंदगी का भयानक चेहरा दिखाने वाली इस वारदात को लेकर पुलिस ने अपने नतीजे पर पहुंचने में जितनी जल्दबाजी दिखाई है, उससे वो खुद ही शक के घेरे में आ गई है. वह इसलिये कि निष्कर्ष निकालने से पहले पुलिस ने किसी चश्मदीद का बयान रिकॉर्ड दर्ज़ करने की शायद कोई ज़हमत ही नहीं उठाई. अब न्यूज़ चैनलों के सामने कुछ ऐसे चश्मदीद सामने आए हैं जिन्होंने युवती की मेडिकल रिपोर्ट और अपने बयानों से पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया है.
बताया गया है कि मेडिकल रिपोर्ट में डॉक्टर ने केवल लड़की के सिर में लगी चोट का जिक्र किया है. वहीं चश्मदीद का कहना है कि कार से लड़की को बाहर फेंका गया था. ग्राउंड जीरो पर पहुंची एपीबी न्यूज़ की टीम से चश्मदीद ने दावा किया कि एक्सीडेंट होते हुए किसी ने नहीं देखा है, युवती को गाड़ी से फेंका गया था. चश्मदीद ने ये भी दावा किया कि युवती के शव का ऊपर का हिस्सा क्षत-विक्षत नहीं था. आरोपियों ने पुलिस को पास आता देख शव को कार से बाहर फेंका था.
शायद यही वजह है कि पूरे मामले की संदिग्धता को देखते हुए ही इस मामले में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी करने में कोई देर नहीं लगाई. उन्होंने ट्वीट किया कि, "दिल्ली के कंझावला में एक लड़की की नग्न अवस्था में लाश मिली, बताया जा रहा है कि कुछ लड़कों ने नशे की हालत में गाड़ी से उसकी स्कूटी को टक्कर मारी और उसे कई किलोमीटर तक घसीटा. ये मामला बेहद भयानक है, मैं दिल्ली पुलिस को हाज़िरी समन जारी कर रही हूं. पूरा सच सामने आना चाहिए."
ख़ाकी वर्दी की बेरहमी को देख चुके सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस ए.ऐन मुल्ला ने काफी पहले कहा था कि, "हमारे देश में पुलिस,वर्दीधारियों का एक संगठित गिरोह है और देखना होगा कि कौन-सी सरकार इस गिरोह को तोड़ पाती है." अपने आसपास नजरें घुमाइये और देखिये कि क्या ये गिरोह सचमुच टूट चुका है?
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