दुनिया के सबसे विवादास्पद दार्शनिक ओशो रजनीश ने बरसों पहले राजनीति को लेकर बेहद सटीक बात कही थी जो मौजूदा माहौल में भी बेहद अहमियत रखती हैं. उन्होंने कहा था, "अच्छा आदमी, अच्छा होने की वजह से कुर्सी पर बिठाया गया है. कुर्सी छोड़ने से नीचा नहीं हो जाने वाला है. अच्छा आदमी कुर्सी को छोड़ने की हिम्मत रखता है और जो लोग कुर्सी को छोड़ने की हिम्मत रखते हैं किसी भी चीज को चुपचाप छोड़ सकते हैं बिना किसी जबर्दस्ती किए उनके साथ वो मुल्क की जीवनधारा का अवरोध कभी नहीं बनते बल्कि राजनीति को एक नई दिशा की तरफ ले जाते हैं."


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आधुनिक राजनीति में कमोबेश ऐसा नेता माना जाता है जो बेहद संयत व संजीदा होकर आम लोगों से खुद को कनेक्ट करने की कला में माहिर है. लेकिन फिलहाल केजरीवाल के लिए ऐसी चुनौती सामने आ गई है जिससे निपटने और फिर वैसा ही औरा कायम करने का नुस्खा किसी और के पास है भी नहीं. उनके सबसे विश्वस्त सहयोगी मनीष सिसोदिया ने सीबीआई की गिरफ्त में आने के बाद उप मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. जाहिर है कि उनका ये फैसला केजरीवाल की मर्जी से ही हुआ होगा. लेकिन अब सवाल ये है कि केजरीवाल दूसरा मनीष सिसौदिया कहां से और कैसे तलाशेंगे? 


इसलिये कि जिन महत्वपूर्ण विभागों को सीएम केजरीवाल ने कभी अपने पास नहीं रखा उन सारे 18 विभागों का जिम्मा सिसोदिया को सौंप रखा था. इनमें दो सबसे अहम विभाग थे- वित्त और शिक्षा. यानी, उन्होंने अपने 23 साल पुराने साथी पर सौ फीसदी भरोसा किया हुआ था जो राजनीति में अक्सर बहुत कम ही देखने को मिलता है.


दरअसल, सियासी भाषा में कहें तो सिसोदिया की गिरफ्तारी केजरीवाल की एक बांह को तोड़ने जैसी है. इसलिए कि आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश में जोरशोर से जुटे हुए हैं. इस महीने के पहले दो हफ्तों में ही उन चार राज्यों में उनके दौरे प्रस्तावित हैं जहां इसी साल विधानसभा के चुनाव हैं. इनमें कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान अहम हैं. जहां केजरीवाल अपनी पार्टी की सियासी जमीन मजबूत करने के साथ ही तीसरी बड़ी ताकत बनकर उभरने के लिये पूरी तैयारी से जुटे हुए हैं लेकिन सिसोदिया की गिरफ्तारी ने अब उनके साथ ही पार्टी के लिए भी संकट खड़ा कर दिया है.


वो इसलिये कि बीते लोकसभा चुनाव हों या फिर पिछले साल हुए पंजाब विधानसभा के चुनाव हर बार केजरीवाल को दिल्ली से बाहर जाने-रहने में कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई. इसलिए कि वे बेफिक्र रहते थे कि सरकार का सारा कामकाज सिसोदिया बखूबी संभाल लेंगे. सच ये भी है कि उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से संभाला भी और केजरीवाल को कभी शिकायत का कोई मौका भी नहीं दिया.


देश की राजनीति में ये भी इकलौती और ऐसी अनूठी घटना है कि भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन कर के 26 नवंबर 2012 को पैदा हुई आम आदमी पार्टी के दो मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप में ही जेल जाना पड़ा या गिरफ्तार होना पड़ा है. तकरीबन नौ महीने से जेल में कैद दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है लेकिन सिसोदिया का इस्तीफ़ा देना बहुत मायने इसलिये रखता है कि ये सरकार के लिए नहीं बल्कि आप के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका है. हालांकि दिल्ली समेत देश के लोगों को ये भी बेहद अजूबी मिसाल देखने को मिली है कि जो अन्ना हजारे ता उम्र शराब के खिलाफ आंदोलन करते रहे, उन्हीं की छत्रछाया में खड़ी हुई एक राजनीतिक पार्टी की सरकार के उप मुख्यमंत्री को शराब नीति बनाने में हुए कथित घोटाले को लेकर गिरफ्तार होना पड़ा और इस्तीफा भी देना पड़ा.


वैसे सियासी विश्लेषक कहते हैं कि सिसोदिया के मामले में सीबीआई के आरोपों में कितनी सच्चाई है इसका फैसला तो अदालत ही करेगी. उनकी गिरफ्तारी पर सियासी पारा गरम होना ही था सो वह हो भी रहा है. लेकिन देखना ये होगा कि केजरीवाल अपने सबसे करीबी सहयोगी की इस गिरफ्तारी को अपने पक्ष में कितना भुना पाते हैं और अगले लोकसभा चुनाव तक इस मोमेंटम को किस हद तक बरकरार रख पाते हैं. हालांकि इतनी ताबड़तोड़ दिए गए सिसोदिया के इस्तीफे पर आप ने दलील यही दी है कि दिल्लीवासियों का कोई काम न रुके, इसलिये उन्होंने इस्तीफा दिया है. लेकिन बीजेपी ने इसे भी मुद्दा बनाते हुए कहा है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली इसलिए मजबूरी में ऐसा करना पड़ा. अधिकांश विश्लेषक मानते हैं कि सिसोदिया की गिरफ्तारी बीजेपी के लिए एक बड़ा सियासी औजार भी साबित हो सकती है. वो इसलिए कि पंजाब की सत्ता हासिल करने के बाद बीजेपी किसी भी सूरत में नहीं चाहती कि दिल्ली से बाहर अन्य राज्यों में आम आदमी पार्टी का विस्तार हो और वह एक बड़ी ताकत बनकर उभरे.


हिंदी के मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने बहुत पहले जो लिखा था वो आज कितना सच है उसका फैसला आप ही कर सकते हैं. उन्होंने लिखा था- "दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की भीड़ खतरनाक होती है. इसका उपयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं. यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है. यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर दे. फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं. यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है. हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है और इसका उपयोग भी हो रहा है. आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनाश के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है.” 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)