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क्रिमिनल होता है जुनूनी, दिल्ली में डबल मर्डर के लिए लॉ एंड ऑर्डर नहीं जिम्मेदार, पुलिस की बनती है खास जिम्मेदारी

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 24 घंटे के अंदर हो हत्याएं हुईं. पहली घटना डाबरी इलाके में हुई, जहां एक बिल्डर की पत्नी को मौत के घाट उतार दिया और उसके बाद हमलावर ने खुदकुशी कर ली. जबकि दूसरी घटना दिल्ली के पॉश इलाके मालवीय नगर की है. यहां पर एक कॉलेज स्टूडेंट के ऊपर रॉड से हमला किया गया. जिससे उसकी मौत हो गई. वे कमला नेहरू कॉलेज में पढ़ती थी. हमलावर इसके बाद वहां से फरार हो गया. 

लेकिन, सबसे खास बात ये हैं कि दिल्ली में जो हत्या हुई है, उसके फैक्ट्स अभी आने बाकी हैं. पुलिस की जांच चल रही है. जहां तक हत्या को प्रिवेंट करने की बात है, तो अगर डकैती के साथ हत्या हुई है, फिर तो दिल्ली पुलिस पर सवाल उठेगा ही. दूसरा अगर मर्डर का मोटिव कुछ और है, जैसे व्यक्तिगत शत्रुता है, जमीन वगैरह का मामला है तो फिर उसमें पुलिस की बहुत भूमिका बनती नहीं दिखती है. आगे की जांच से ही बहुत कुछ पता चलेगा. 

हमारे समाज का अक्स है अपराध

हमारे यहां जो पुलिस की भूमिका है, वही फिर समाज पर भी लागू होगी. समाज किस तरह का है, समाज में हमारे यहां टेंशन अधिक है, फ्रस्ट्रेशन ज्यादा है, उस वजह से भी ये सब हो रहा है. पुलिस को भी अपने ऐसे तत्वों को एक्टिवेट रखना होगा जो उन्हें सूचना पहले ही दे सकें. वैसे तो कुछ अपराध ऐसे होते हैं, जिनको पुलिस अपने स्तर से सुलझा सकती है, वरना तो कुछ अपराध ऐसे होते हैं, जिनको पुलिस चाहे तो भी रोक नहीं सकती है. जैसे, इनहाउस मर्डर जो होता है, जैसे संपत्ति के लिए, आपस के झगड़े में जो हत्या हो जाती है, वारदात घट जाती है, उसे तो पुलिस चाहे तो भी नहीं रोक सकती. हां, अगर डकैती के साथ अगर हत्या है, तो ये अधिक बुरा माना जाता है. पुलिस को आजकल के लेटेस्ट तरीके से लेकर पुराने तरीके तक आजमाकर क्राइम को कम से कम करना है. उस हिसाब से पुलिस की ये जिम्मेदारी थी, लेकिन जैसा पहले भी कहा गया है कि कुछ क्राइम होते हैं, जो रोके नहीं जा सकते हैं. 

राजधानी में पॉपुलेशन दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. फ्लोटिंग जनसंख्या है, मतलब लोग आते हैं, जाते हैं, क्राइम करने वाले भी फरार हो जाते हैं. इसके अलावा पहले भी कहा कि फ्रस्ट्रेशन बढ़ती जा रही है, धैर्य कम है, रोजगार का मसला है औऱ कई चीजें ऐसी हैं जो अपराध का ग्राफ बढ़ाती हैं. कोई एक कारण नहीं होता, कई सारी वजहें मिलकर फिर इस तरह के अपराध का कारण बनते हैं. पुलिस के जहां तक क्राइम रोकने की बात है, तो पुलिस को तवज्जो देनी चाहिए कि जो भी वजह है, उसको दूर करे. 

कुछ अपराध रुक नहीं सकते

जो मर्डर ऐसे होते हैं, जो इनहाउस है, जो जमीन-जायदाद के लफड़े में खुद हुए हैं, तो उनका पुलिस और लॉ एंड ऑर्डर से बहुत अधिक संबंध नहीं है. आप यह देखिए कि घर में अगर दो आदमी एक-दूसरे के दुश्मन हैं, उसी में हत्या हो गयी तो ये लॉ एंड ऑर्डर की समस्या नहीं है. लॉ एंड ऑर्डर की बात तब होगी, जब कानून और समाज की समस्या हो. जैसे, किसी अनजान व्यक्ति की हत्या हो गयी, तो उस पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन पर्सनल लेवल के, व्यक्तिगत दुश्मनी के जो अपराध होते हैं, उन में लॉ एंड ऑर्डर की बात करना ठीक नहीं होगा. पुलिस को अगर पहले से मालूम हो कि फलानी जगह दो लोगों के बीच दुश्मनी चल रही है, या प्रेम चल रहा है या जबरन प्रेम चल रहा है, जिसमें अपराध होने की संभावना हो, तो पुलिस उसमें पहले से कार्रवाई कर सकती है, करनी चाहिए. 

चाहे पुलिस तो कंट्रोल में हो क्राइम

साथ ही, जो छंटे हुए अपराधी हैं, जो बडिंग क्रिमिनल्स हैं, या फिर हो सकते हैं, इन सब पर नजर रखना पुलिस की पहली प्राथमिकता है. अगर सब कुछ के बाद भी क्राइम रुकता नहीं, हो ही जाता है, तो अपराधियों को तुरंत पकड़ना पुलिस की जिम्मेदारी होती है. तीसरी जिम्मेदारी पुलिस की इनवेस्टिगेशन की होती है. कोई भी अपराध हो गया तो उसको उचित तरीके से जांच कर जल्दी कोर्ट भेजा जाए, ताकि उसमें न्याय मिले और लोगों में भरोसा हो कि पुलिस उनकी मदद कर रही है, जहां पर पुलिस अपराधियों को पकड़ नहीं पाती, वहां जरूर ही पब्लिक का कॉन्फिडेंस डगमगाता है. लोगों को लगता है कि पुलिस जब अपराधियों को पकड़ ही नहीं सकी, तो आगे न्याय कैसे दिलाएगी? उसी तरह पुलिस अगर अपना काम पूरा कर कोर्ट के सामने ठीक ढंग से एविडेंस लाती है, तो लोगों का भरोसा जरूर बना रहेगा. पुलिस अगर ठीक से ट्रायल चलाए और इनवेस्टिगेशन करे, तो अपराधियों का बच पाना बहुत ही मुश्किल होगा. 

परिणाम की नहीं सोचते अपराधी

क्रिमिनल जुनूनी होता है. वह उस समय परिणाम की नहीं सोचता. बहुतेरे अपराधियों को देखा गया है कि वे क्राइम के समय नशे की हालत में थे. खासकर मर्डर जैसे क्राइम में देखा गया है कि लोग शराब पीकर मदहोश होते हैं, शायद उससे उनको कोई मदद मिलती हो. मर्डर या क्राइम के वक्त उसका एक ही मोटिव होता है. उसके आगे की वह नहीं सोचता है. बहुतेरे लोग तो यह भी सोचते हैं कि चूंकि एक ही मामला कई सालों तक चलता है औऱ कई बार लोग बरी हो जाते हैं, अलग-अलग वजहों से. जैसे, गवाहों को याद नहीं रहना, या उनका थक जाना या फिर कुछ भी ऐसा कारण, तो कई बार लोग इस चक्कर में भी क्रिमिल बन जाते हैं कि वे तो छूट ही जाएंगे. क्राइम कैसा भी हो, अपने निशान छोड़ता ही है, यह बात अगर क्रिमिनल याद रखे तो फिर क्राइम हो ही नहीं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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