(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
शराब घोटाले में CBI के बाद ED का शिकंजा, जानिए क्यों और बढ़ सकती है मनीष सिसोदिया की मुश्किलें
दिल्ली शराब घोटाले में कथित अनियमितताओं और मनी लांड्रिंग के मामले में दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मुसीबत सौ प्रतिशत बढ़ने वाली है. इसका कारण ये है कि पहले भ्रष्टाचार मामले में CBI ने उन्हें गिरफ्तार किया और ED का इंवॉल्वमेंट होने के लिए उसमें शेड्यूल ऑफेंस का होना जरूरी है. पहले अगर आपके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज होता है और उसमें शेड्यूल ऑफेंस अगर है तो ईडी का उसमें इनवॉल्वमेंट होना तय है. यहां पर उनके ऊपर भ्रष्टाचार करने का मामला है जोकि एक शेड्यूल ऑफेंस है. जैसे कि IPC की धारा 120 B के तहत क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी एक्ट है या किसी के खिलाफ आरोप है और शेड्यूल ऑफेंस के परिणाम स्वरूप कहीं से पैसे का गमन हुआ है या ट्रांसफर हुआ है और लेनदेन हुआ है या जिस किसी भी मामले में यह संशय है कि स्त्रोत अगर गैर-कानूनी (Illegal) है, तो इस तरह के मामले में ED की दखलअंदाजी बनती है.
जिस दिन CBI ने मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार किया था, उसी वक्त एक वकील होने के नाते मुझे यह बात समझ में आ गई थी कि अब इसमें ED की भी एंट्री होगी. क्योंकि फर्जीवाड़ा करना और भ्रष्टाचार का मुकदमा शेड्यूल ऑफेंस के अंतर्गत आता है. इस तरह के मामले में IPC की धारा 120 B भी लगती है क्योंकि इसमें कई लोगों की कॉन्सपिरेसी होती है...तो ये मान के चलिए कि ED ने इसमें अपनी इंट्री कर लिया है तो बेल मिलने के चांसेस भी बहुत कम हो जाते हैं. अगर कुछ अपवादों को छोड़ दें तो जैसी की आरोपी व्यक्ति बहुत बीमार है तो उसे बेल मिल जाएगी, लेकिन सामान्य मामलों में आरोपी को बेल मिलना बहुत मुश्किल जाता है.
ED की गिरफ्तारी से बढ़ेंगी मुश्किलें
ED की गिरफ्तारी का मतलब ये है कि जो पहले गिरफ्तारी हुई थी, वो CBI के जो आरोप थे, उसके तहत हुई थी. लेकिन अब ED के आने से क्या होगा कि इस पूरे प्रकरण में जो पैसों का लेन-देन हुआ है, उसकी रिकवरी करना आसान हो जाएगा. चूंकि, CBI के प्रावधानों के तहत पैसों के लेन-देन का जो मामला है वो उसके ग्रे एरिया में आता है. मतलब कि CBI पैसों की उगाही नहीं कर सकती है. वहीं, जो चीटिंग करने का मामला हुआ, पैसों का लेनदेन हुआ उसको रिकवर करने के लिए ED के पास फुल पावर है. वह अलग-अलग जगहों पर रेड डालेगी. इसे आप एक फ्रेश केस कह सकते हैं यानी कि ED का एक नया मामला शुरू हो गया है. इस मामले CBI पीछे रह जाएगी, एक तरीके से यानी कि जो केस है वो स्वतंत्र रूप से चलता रहेगा.
लेकिन अब जब ED ने एक नए ECIR (मतलब की नई FIR) के साथ अपनी एंट्री मार दी है, तो अब वे अपने तरीके से इस मामले की छानबीन करेंगे और जगह-जगह से सबूत इकट्ठा करेगी. जो भी संपत्तियां जिनका की कोई गेनफुल रिसोर्स नहीं है, उसको अटैच करेगी. इसका एक अलग ट्रायल चलेगा और इसलिए ED ने गिरफ्तार किया है. चूंकि जो आरोपी गिरफ्तार है वह CBI के केस में अरेस्ट किया गया है. लेकिन ये अब औपचारिक तौर पर दूसरा मामला हो गया, जिसमें गिरफ्तारी की बात कही है. आज अगर सीबीआई के केस पर बहस होनी थी और मान लिया जाए कि उन्हें बेल मिल जाती तो उससे भी जान नहीं छूटेगी, क्योंकि वे जेल से रिहा नहीं होंगे क्योंकि उन्हें पहले ED में बेल लेनी होगी.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हो सकता है कि वो एक आम आदमी की तरह बात कर रहे हों, लेकिन मैंने आपको एक वकील होने के नाते बताया कि जिस दिन CBI ने डिप्टी सीएम को गिरफ्तार किया, उस दिन ही हमलोगों ने एक लीगल पर्सन होने के नाते या ये कह लीजिए कि आज के समय में जो कानूनी रूप से चल रहा है तो हम लोग ये मान के चलते हैं कि अगर CBI ने शेड्यूल ऑफेंस में डाल दिया है, तो आज न कल इसमें ED इस मामले में अपना हस्तक्षेप करेगी. जैसे कि इनकी बेल की बात होने लगी तो ED ने सही समय पर अपना केस ओपन कर दिया.
उसे एक नए तरीके से छानबीन करने का मौका मिल गया. केजरीवाल जो कह रहे हैं कि CBI के मामले में बेल हो जाएगी तो ये बात सही है कि CBI के मामलों में बेल मिल जाती है. क्योंकि वो पहले से ही अपना छानबीन पूरा करके अरेस्ट डालती है और CBI के पास जांच करने के लिए कुछ बचता नहीं है.
खुद को साबित करना होगा बेकसूर
लेकिन ED के केस में ऐसा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने जो विजय मदन लाल के मामले में फिक्स किया है तो उसमें जो शेड्यूल ऑफेंस है पहला कंडीशन में तो उसके दायरे में तो ये आ गए हैं. उसके बाद जो ट्विन कंडिशन है अगर उसमें ये फॉल करते हैं तब इन्हें बेल मिलेगी. यानी कि इनको यह साबित करना होगा कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूं जो कि थोड़ा सा मुश्किल काम है.
मैं तो ऐसा नहीं कह सकता हूं कि CBI और ED को एक टूल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं. लेकिन जो बात कोर्ट के अंदर कि है वो ये कि वहां जैसे ही ये साबित करते हैं कि ये जांच का समय है और जो लॉ के अंदर आ जाता है, कोर्ट उसके हिसाब से कार्रवाई को आगे बढ़ाने लगती है. जो सामान्य केस होता है उनमें प्रोसिक्यूशन को ये साबित करना होता है कि मेरे खिलाफ मामला बनता है या नहीं बनता है. लेकिन ED के मामले में आपको खुद ही ये साबित करना है कि मेरे खिलाफ ये केस नहीं बनता है और मुझे गलत तरीके से फंसाया जा रहा है.
हालांकि अब तो ED में भी कुछ ऐसे मामले आए हैं, जिसमें आपने देखा होगा कि बेल मिल रही है. जो भी सबूत होंगे वो तो कोर्ट के समक्ष रखा ही जाएगा. लेकिन मेरा मानना है कि 100 प्रतिशत ED के इस मामले में हस्तक्षेप होने से मनीष सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ेंगी और अब इस मामले में उनके बेल पर बाहर निकलने में समय लग सकता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल मुरारी तिवारी से बातचीत पर आधारित है.]