दिल्ली के लाल कहलाने वाले अरविंद केजरीवाल के वादों पर भरोसा करते हुए जनता ने उन्हें MCD की सत्ता भी सौंप दी है, जो बीजेपी के लिए बड़ा झटका इसलिए भी है कि राजधानी के छोटे-से चुनाव नतीजे का संदेश भी बहुत दूर तक जाता है. महज़ डेढ़ साल के भीतर होने वाले आगामी लोकसभा चुनावों के लिहाज से ये बीजेपी के लिए खतरे की घंटी इसलिए भी है क्योंकि दिल्ली में पार्टी के सात में से चार सांसदों के इलाके में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. इसमें भी सबसे खराब प्रदर्शन उस लुटियंस दिल्ली का रहा है, जो नई दिल्ली कहलाती है और जहां से मीनाक्षी लेखी सांसद होने के साथ ही केंद्र में विदेश राज्य मंत्री भी हैं. लिहाजा, बीजेपी के लिए ये बड़ा संकेत है कि आम आदमी पार्टी ने उसके मजबूत किले में सेंध लगाकर 2024 का अपना टारगेट सेट कर लिया है.


हालांकि ये भी सच है कि हर चुनावी जीत चुनौतियों का पहाड़ भी अपने साथ लाती है. इसलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वे देश की राजधानी को कूड़े के पहाड़ से मुक्ति दिलवाने के लिए कौन-सी ऐसी जादुई तकनीक का इस्तेमाल करेंगे, जो बीजेपी अपने 15 साल के शासन में नहीं कर पाई है.


केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की TRP बढ़ने और नगर निगम की सत्त्ता पर काबिज होने की जो मुख्य वजह बनी हैं, उनमें सबसे बड़ा उनका ये वादा ही रहा कि एमसीडी की सत्ता में आने में बाद वे दिल्ली को कूड़े के पहाड़ से निजात दिलाएंगे. इसे केजरीवाल मैजिक कहें या बीजेपी का अहंकार लेकिन ये वादा ही दिल्लीवालों को क्लिक कर गया. शायद इसलिए कि राजधानी में कूड़े के छोटे-बड़े पहाड़ हर गली-मोहल्ले में दिखाई देते हैं और उनकी सफाई में प्रति इलाके के पार्षद ऐसे उदासीन बने रहते हैं, मानों ये उनकी जिम्मेदारी का हिस्सा ही नहीं है.


केजरीवाल ने अपने चुनावी अभियान में नालियों की सफाई, सड़कों का निर्माण और पार्कों का रखरखाव करने जैसे स्थानीय मुद्दों के अलावा एक और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे को जमकर उछाला और वह था-नगर निगम में फैला भ्रष्टाचार. ये सड़कें बनाने, सफाई करवाने या पार्कों के रखरखाव का ठेका देने तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसकी आंच आम आदमी तक भी पहुंच चुकी थी.


तीन-चार मंजिला मकान बनाकर उसे बेचने वाले बिल्डर तो पहले से ही स्थानीय और निगम के अफसरों की हथेलियां गरम कर देते हैं, ताकि कोई रोकटोक न हो लेकिन आए दिन दिल्ली के हर कोने से ऐसी शिकायतें मिलना एक आम बात हो गई थी कि कोई व्यक्ति अगर खुद अपना दो या तीन मंजिला मकान बना रहा होता है तो उसकी भनक लगते ही स्थानीय पार्षद के गुर्गे अपने मोबाइल से उस निर्माणाधीन मकान की तस्वीरें लेकर ये हिदायत दे जाते थे कि अगर काम नही रुकवाना है, तो पार्षद जी से आकर मिल लो.


सुनी-सुनाई नहीं बल्कि आंखों देखी ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जहां पार्षद महोदय ने हर मंजिल के हिसाब से अपना रेट तय किया हुआ था और मजबूर होकर लोगों को उनकी हथेली गरम करनी ही पड़ती थी क्योंकि ऐसा न होने पर कोई भी नुक्ता चीनी निकालकर निगम के अफसर अगले ही दिन उस मकान का निर्माण कार्य रुकवा देते थे.


जाहिर है कि भ्रष्टाचार की इस गंगा में पार्षद और निगम के अफसर एक साथ मिलकर ही नहा रहे थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में अचानक इसमें ज्यादा तेजी आई और रेट भी बढ़ा दिए गए. इससे लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा, लेकिन उनके सामने एक नया विकल्प था- आम आदमी पार्टी, जिस पर उन्होंने पूरा भरोसा किया. बीजेपी का नेतृत्व न तो पार्षदों के इस कथित भ्रष्टाचार को रोक पाया और न ही लोगों के गुस्से को भांप पाया. यह ही आप को मिली इतनी बड़ी कामयाबी की वजह बना.


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