दिल्ली के मेयर चुनाव में 'आप' की जीत ने बीजेपी के लिए खड़ी कर दी नयी चुनौती?

दिल्ली नगर निगम यानी MCD की सत्ता पर 15 साल से काबिज़ बीजेपी को बेदखल करने के बाद अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने आखिरकार मेयर और डिप्टी मेयर के पद पर भी कब्जा कर लिया. हालांकि इसे भी राजनीति का अजूबा ही कहा जायेगा कि राजधानी के लोगों को चौथे प्रयास के बाद ही अपना महापौर मिल पाया है, लेकिन दिल्ली बीजेपी के लिए आप की तरफ से ये सिर्फ नयी नहीं बल्कि बड़ी चुनौती इसलिये भी है कि विधानसभा के बाद अब नगर निगम में भी पूरी तरह से आप की ही सरकार बन गई है.
हर छोटे-बड़े काम के लिए दिल्ली वासियों का अधिकांश वास्ता अपने क्षेत्र के विधायक या वार्ड के पार्षद से ही पड़ता है और अब दोनों ही जगह आप का बहुमत है. लिहाज़ा, सियासी लिहाज़ से अगले लोकसभा चुनाव के लिए इसे बीजेपी के लिए खतरे की घंटी समझा जा रहा है. इसलिए कि फिलहाल दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं लेकिन स्थानीय निकाय में मिली अभूतपूर्व जीत के बाद आप के हौंसले बुलंद हुए हैं और आगामी लोकसभा चुनाव में वह पूरी ताकत लगा देगी कि कुछ सीटें उसकी झोली में आ जाये. इसलिये दिल्ली बीजेपी के लिए सातों सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती होगी. हालांकि दिल्ली के सियासी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब मेयर चुनाव को लेकर न सिर्फ इतनी जद्दोजहद हुई बल्कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर ये चुनाव सम्पन्न कराना पड़ा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भी बीजेपी को शर्मिंदगी ही झेलनी ही पड़ी. दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा मनोनीत 10 पार्षदों यानी एल्डरमैन को मेयर चुनाव में वोट देने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. लेकिन बीजेपी ने लगातार ये कोशिश की कि उनके भी वोट डलवाकर आप उम्मीदवार को पटखनी दी जा सके.
मेयर के चुनाव के लिए एमसीडी सदन की तीन बार बैठक बुलाई गई थी लेकिन हर बार बीजेपी और आप पार्षदों की खींचतान व हंगामे के चलते उसे चुनाव कराये बगैर ही स्थगित करना पड़ा. उसके बाद आम आदमी पार्टी से मेयर पद की उम्मीदवार शैली ओबेरॉय ने बीजेपी के इस तर्क पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि उपराज्यपाल ने 10 एल्डरमेन (मनोनीत सदस्यों) को चुनाव में मतदान करने की अनुमति दी है,जो कि संविधान के प्रावधान के खिलाफ है.पहली सुनवाई में ही मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मनोनीत सदस्य चुनाव में मतदान नहीं कर सकते हैं. पीठ ने कहा, "मनोनीत सदस्य चुनाव में भाग नहीं ले सकते. संवैधानिक प्रावधान बहुत स्पष्ट हैं." साथ ही कोर्ट ने उप राज्यपाल को भी निर्देश दिया कि वे इस चुनाव के लिए 24 घंटे के भीतर सदन की बैठक बुलाने का नोटिस जारी करें.सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं था,जबकि आप ने इसे संविधान की जीत बताया.
आखिरकार पूरे 84 दिन बाद शैली ओबेरॉय दिल्ली की मेयर चुन ली गईं. उन्होंने BJP की रेखा गुप्ता को 34 वोटों से हराया. डिप्टी मेयर पद भी AAP की झोली में गया है.आले मोहम्मद इकबाल नये उप महापौर निर्वाचित हुए हैं. मेयर चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, "गुंडे हार गए, जनता जीत गई. दिल्ली नगर निगम में आज दिल्ली की जनता की जीत हुई और गुंडागर्दी की हार. शैली ओबरॉय के मेयर चुने जाने पर दिल्ली की जनता को बधाई." बता दें कि दिल्ली को लंबे अरसे बाद महिला मेयर मिली है.साल 2011 में बीजेपी की रजनी अब्बी आखिरी महिला मेयर थीं.उसके बाद 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सरकार ने दिल्ली नगर निगम को 3 हिस्सों में बांट दिया था, लेकिन पिछले साल केंद्र सरकार ने इन हिस्सों को मिलाकर फिर एक कर दिया था. उसके बाद यह MCD का पहला चुनाव था.बीते 4 दिसंबर को हुए इस चुनाव में 250 सीटों वाली MCD में AAP को 134 सीटें मिली,जो बहुमत से 8 ज्यादा हैं. वहीं बीजेपी ने 104 और कांग्रेस ने महज़ 9 सीटों पर जीत हासिल की थी.जबकि 3 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने कब्जा जमाया.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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