दिल्ली के मेयर चुनाव ने दिखा दिया राजनीति का सबसे बेशर्म चेहरा?

देश की राजधानी दिल्ली में मेयर के चुनाव के लिए बीजेपी और आम आदमी पार्टी के पार्षदों के बीच हुई मारपीट का जो नजारा देखने को मिला है, वह राजनीति के गिरते स्तर का सबसे शर्मनाक सबूत है, जो लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है. दिल्ली नगर निगम के सदन की कार्यवाही के ऐसे दृश्य ने लोगों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ये चुने हुए पार्षद हैं या फिर किसी गली-मुहल्ले के छुटभैये मवाली हैं!
तीन घंटे तक हुए इस हंगामे ने मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव को तो अगले तीन महीने के लिए टाल दिया है, लेकिन दोनों दलों के बीच शुरू हुई आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने कुछ बुनियादी सवाल खड़े कर दिए हैं, जो सदन के नियमों से जुड़े हुए हैं. इसमें बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि दिल्ली के उप राज्यपाल वी के सक्सेना ने 10 मनोनीत पार्षद यानी एल्डरमैन को नियुक्त करने और प्रोटेम स्पीकर बनाने में क्या नियमों की अनदेखी की है? वह इसलिये कि मुख्यमंत्री अऱविंद केजरीवाल ने एलजी वी के सक्सेना के दस मनोनीत पार्षदों को लेकर कहा है कि चुनी हुई सरकार को ही ये नाम तय करने का अधिकार है, लेकिन उसे उपराज्यपाल ने खुद ही चुन लिया,जो कि नियमों का उल्लघंन है. उनकी दूसरी दलील ये है कि सबसे वरिष्ठ पार्षद को ही प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है, जो चुने हुए पार्षदों को पहले शपथ दिलाता है और फिर मेयर के चुनाव के लिए वोटिंग करवाता है.
हालांकि परंपरा भी यही रही है लेकिन एलजी ने उसे दरकिनार करते हुए बीजेपी की पार्षद सत्या शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बना दिया. पुरानी परंपरा को अपनाया जाता, तो सबसे वरिष्ठ पार्षद आम आदमी पार्टी के मुकेश गोयल हैं, जो प्रोटेम स्पीकर बनने के हकदार थे. इसके बाद सदन की कार्यवाही शुरू होने में भी जब नियमों की धज्जियां उड़ाई जाने लगी तो आप पार्षदों के विरोध जताने को गलत इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि DMC Act के सेक्शन 3A1 के तहत मनोनीत पार्षद मेयर या डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं, लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने निर्वाचित पार्षदों की बजाय पहले मनोनीत पार्षदों को जब शपथ दिलानी शुरू की, तो उनकी नीयत पर शक तो होना ही था. सो, यहीं से हंगामा शुरू हो गया और नौबत ये आ गई कि पार्षद एक-दूसरे पर कुर्सियों से हमला करने लगे.
दरअसल, आम आदमी पार्टी के नेता पहले से ही ये शक जता रहे थे कि बहुमत न होने के बावजूद बीजेपी चंडीगढ़ वाली कहानी ही दिल्ली में भी दोहराने की तैयारी में है. चंडीगढ़ नगर निगम में बहुमत आप का है लेकिन वहां मेयर बीजेपी का है. लिहाजा, कुछ वही सीन दोहराने के लिए पहले मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने की शुरुआत की गई, ताकि एक बार उनकी "पार्षदी"कानूनी तौर पक्की हो जाने के बाद उनसे भी वोट डलवाकर मेयर चुनाव में आप को पटखनी दे दी जाए, लेकिन निष्पक्षता से आकलन किया जाए तो आप पार्षदों के भारी विरोध, हंगामे और सदन के भीतर से तमाम न्यूज़ चैनलों के लगातार कवरेज के चलते बीजेपी अपनी इस मुहिम में कामयाब नहीं हो पाई.
हालांकि पूरे मामले पर दिल्ली के सीएम केजरीवाल ने एलजी वी के सक्सेना को लेटर लिखकर उन पर चुनी हुई सरकार को नजरअंदाज कराने का आरोप लगाया है. उन्होंने लिखा है कि सरकार को 2 करोड़ लोगों के लिए काम करने दीजिए. हमें सविधान को मजबूत करने का काम कीजिए लेकिन दिल्ली में सीएम और एलजी के बीच पावर गेम की ये लड़ाई कोई नई नहीं है, क्योंकि दिल्ली में एलजी के पास कानूनी शक्तियां अधिक हैं, इसलिये फिलहाल ये कहना मुश्किल है कि तीन महीने के बाद आप इतनी आसानी से अपना मेयर या डिप्टी मेयर बनवाने में कामयाब हो ही जाएगी.
बता दें कि मेयर इलेक्शन के लिए निर्वाचक मंडल में 250 निर्वाचित पार्षदों के अलावा दिल्ली के सात लोकसभा और तीन राज्यसभा सदस्य तथा 14 विधायक शामिल हैं. दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में ‘आप’ के 13 और बीजेपी के एक सदस्य को मनोनीत किया है. दिसंबर में हुए दिल्ली नगर निगम चुनाव में आप ने 134 सीटों पर जीत दर्ज की थी और एमसीडी में बीजेपी का 15 साल का शासन खत्म हुआ था जबकि बीजेपी ने 104 वॉर्ड में जीत हासिल की थी.
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