53 बरस पहले बना दिल्ली का जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय यानी JNU आज भी दुनिया के तमाम विकसित देशों की सूची में इतनी काबलियत रखता है कि उसे कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता. ये ऐसा इकलौता ऐसा विश्विद्यालय है जिसने इस देश को नोबेल पुरस्कार विजेता दिए हैं तो सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने का अवसर भी दिया है. देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी इसी JNU से निकलकर ही राजनीति का वो पाठ पढ़ा है जो सत्ता की ताकत अपने हाथों में लाने का गुर सिखाता है.


यह संस्थान आज भी देश की ऐसी शान बना हुआ है जिसके लिए अब भी न जाने कितने युवाओं का ये सपना होता है कि उन्हें किसी भी तरह से JNU में एडमिशन मिल जाए. वैसे तो इसे छात्र-राजनीति का सबसे पुराना और मजबूत गढ़ माना जाता है और अब तक इसे वामपंथी विचारधारा के सबसे कारगर औजार की तरह ही इस्तेमाल किया जाता रहा है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में आरएसएस के आनुषंगिक संगठन विद्यार्थी परिषद ने यहां अपनी ताकत बढ़ाई है. उसी ताकत ने अब दो छात्र -संगठनों के बीच कुत्ते-बिल्ली का ऐसा बैर कर दिया है कि पूरा परिसर और वहां पढ़ने वाले छात्र शुक्र मनाते हैं कि अब यहां कोई हंगामा न हो. 


वहीं, बदकिस्मती ये है कि अब जेएनयू में ऐसा माहौल ही नहीं रहा और वहां हर दिन कोई ऐसा विवाद पैदा हो जाता है जो इस नामी संस्थान की प्रतिष्ठा पर बट्टा लगा रहा है जो दुनिया के बहुतेरे देशों में भारत के लिए किसी काले दाग से कम नही है. दरअसल, इस बार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय कैंपस में ये विवाद शुरू होने की वजह कुछ ऐसी है जो छात्रों को किसी धर्म में नही बल्कि जातियों में बांटने की ऐसी शरारत है जिसे कोई भी सभ्य व उदारवादी इंसान कभी बरदाश्त नहीं करेगा.


विवाद भी ऐसा जो पिछले पांच दशकों में न कभी किसी ने सुना और न ही कभी अपनी आंखों से देखा होगा. हालांकि पिछले सात-आठ साल में दो अलग विचार धाराओं वाले संगठनों के बीच झगड़े तो पहले भी खूब हुए हैं लेकिन इस बार इसमें जातियों का तड़का किसने लगाया और किस मकसद से लगाया गया ये तो जांच का विषय है. ये तो कोई भी नहीं जानता कि पुलिस भी इस तहक़ीकात से किसी नतीजे पर पहुंचकर दोषियों को पकड़ भी पायेगी भी कि नहीं? लेकिन इस बार जो बवाल खड़ा किया गया है वो कुछ ज्यादा गंभीर इसलिये है कि इस बार हिंदुओं की कुछ खास जातियों को निशाना बनाते हुए पूरे कैंपस के माहौल को खराब कर दिया गया है.


दरअसल, ये विवाद शुरू हुआ है स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (School of International Studies) के सेकंड और थर्ड फ्लोर पर दीवारों पर लिखी जाति सूचक बातों से. जेएनयू परिसर की कई इमारतों की दीवारों पर लाल रंग से ब्राह्मणों कैंपस छोड़ों, ब्राह्मणों-बनियों हम तुम्हारे लिए आ रहे हैं, तुम्हें बख्शा नहीं जाएगा, शाखा लौट जाओ… जैसी धमकियां लिखी गई हैं. जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी साझा की गईं हैं. यह आपत्तिजनक बातें ना सिर्फ क्लास रूम के बहार दीवारों पर लिखी गई है बल्कि कई फैकल्टी के दरवाजे पर भी लिखी गई हैं. जाहिर है कि ये विवाद दो विपरीत विचारधारा वाले संगठनों के बीच एक नई रंजिश बनेगा जिसका अंजाम क्या होगा ये कोई भी नहीं जानता.


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