लिव इन रिलेशनशिप में आखिर कब तक शिकार बनती रहेंगी लड़कियां?
देश की राजधानी में श्रद्धा वालकर हत्याकांड की तर्ज पर ही मर्डर का एक और सनसनीखेज मामला सामने आने के बाद एक बार फिर से ये बहस छिड़ गई है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहना लड़कियों के लिए कितना सुरक्षित रह गया है? सवाल ये भी है कि ऐसे रिश्तों में हत्या की कई वारदातें होने के बाद भी पश्चिमी सभ्यता वाली इस संस्कृति का प्रचलन भारत में इतनी तेजी से आखिर क्यों बढ़ रहा है? ग़ौरतलब है कि बीते तीन महीने में दिल्ली में यह दूसरा ऐसा मामला है,जब लिव इन में रह रही अपनी पार्टनर की हत्या करके आरोपी ने उसके शव को फ्रिज में छुपाकर रख दिया. 23 साल की निक्की यादव का शव वेलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी को उसके प्रेमी साहिल गहलोत के परिवार के एक रेस्तरां में फ्रिज के अंदर मिला था. निक्की और साहिल पिछले लंबे समय से लिव इन पार्टनर के तौर पर रह रहे थे.
हत्या के आरोपी 24 वर्षीय साहिल गहलोत को हालांकि पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. बताते हैं कि साहिल के किसी दूसरी महिला से शादी करने को लेकर दोनों के बीच बीती 9 फरवरी को करीब तीन घंटे तक झगड़ा हुआ था. पुलिस के मुताबिक लड़ाई बढ़ने पर साहिल ने मोबाइल चार्जिंग केबल का इस्तेमाल कर निक्की का गला घोंट दिया. कत्ल करने के बाद वह निक्की के शव को कार में लेकर 10 फरवरी को हरियाणा स्थित अपने गांव मितराऊं पहुंचा. जहां अपने परिवार के एक ढाबे में शव को बड़े फ्रीज़र में रखकर ठिकाने लगा दिया.हैरानी की बात ये है कि उसी दिन उसने दूसरी महिला से शादी भी रचा ली, जो रिश्ता उसके घरवालों ने तय किया था.कहते हैं कि कातिल कितना भी चतुर क्यों न हो लेकिन उसका जुर्म बहुत ज्यादा दिनों तक छुपा नहीं रहता और कानून के लंबे हाथ उसे अपने शिकंजे में कस ही लेते हैं.
ऐसा ही इस मामले में भी हुआ लेकिन सवाल है कि ऐसी कितनी श्रद्धा. पिछले दो दशक में हमारे यहां जिस तेजी से लिव-इन रिलेशनशिप का कल्चर बढ़ रहा है, वो चौंकाने के साथ ही चिंताजनक भी है.इसलिये कि कुछ महानगरों को छोड़ दें,तो ऐसे रिश्ते को आज भी पूरी तरह से सामाजिक मान्यता नहीं मिली है,फिर भी नौकरी पेशा युवतियों में इस तरह की रिलेशनशिप को अपनाने का क्रेज़ तेजी से बढ़ा है.शायद इसकी बड़ी वजह ये है कि इसमें शादी के रिश्ते जैसा कोई बंधन नहीं है और दोनों को अपनी मर्जी से जीने की आज़ादी मिलती है.लेकिन इसी आजादी की शुरुआत झगड़े से होती है,जिसका अंजाम किसी बड़े जुर्म के साथ खत्म होता है लेकिन अक्सर इसका शिकार लड़की ही बनती है.
साल 2018 में एक सर्वे हुआ था. इस सर्वे में शामिल 80 फीसदी लोगों ने लिव-इन रिलेशनशिप को किसी भी तरह से गलत न मानते हुए इसका खुलकर सपोर्ट किया था. इनमें से 26 प्रतिशत ने कहा था कि अगर मौका मिला, तो वो भी लिव-इन रिलेशन में रहना ही पसंद करेंगे.
हालांकि फिलीपींस, फ्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, स्कॉटलैंड, यूके, अमेरिका समेत दर्ज़न भर देशों में अलग-अलग कानूनी परिभाषाओं के अंतर्गत लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता मिली हुई है.लेकिन हमारे देश में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई कानून नहीं हैं. कानून बेशक नहीं है लेकिन फिर भी लिव-इन में रहना कोई अपराध भी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतों के फैसलों ने लिव-इन रिलेशनशिप को एक तरह से कानूनी मान्यता दे रखी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसलों के ज़रिए ऐसे रिश्तों के क़ानूनी दर्जे को साफ़ किया है. साल 2006 के एक केस में फ़ैसला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि, "वयस्क होने के बाद व्यक्ति किसी के भी साथ रहने या शादी करने के लिए आज़ाद है." उस फ़ैसले के साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप को क़ानूनी मान्यता मिल गई. अदालत ने कहा था कि कुछ लोगों की नज़र में 'अनैतिक' माने जाने के बावजूद ऐसे रिश्ते में रहना कोई 'अपराध नहीं है'.सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी फ़ैसले का हवाला साल 2010 में अभिनेत्री खुशबू के 'प्री-मैरिटल सेक्स' और 'लिव-इन रिलेशनशिप' के संदर्भ और समर्थन में दिए गए बयान के मामले में भी दिया था.अगर लिवइन रिलेशन में बच्चा पैदा होता है, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार बच्चे पर अधिकार ठीक उसी आधार पर तय होगा, जैसा कि शादी के कानून के अंतर्गत होता है.
हालांकि, अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति बिना तलाक लिए किसी के साथ लिव-इन में रहे तो ये गैर-कानूनी माना जाता है. लेकिन दो साल पहले पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था कि , 'शादीशुदा होने के बावजूद लिव-इन में रहना कोई जुर्म नहीं है और इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि पुरुष ने तलाक की प्रक्रिया शुरू की है या नहीं.' पर, सच तो ये है कि अभी भी समाज में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है. ऐसे रिलेशन में रहने वाली लड़कियों के चरित्र पर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं. राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शिव कुमार शर्मा कहते हैं कि इस व्यवस्था के लिए भी कानून तो होना ही चाहिए. विवाह की तरह लिव इन का भी रजिस्ट्रेशन होना चाहिए, संबंध तोड़ने में भी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक बनाया जाना चाहिए.
एक स्टडी के मुताबिक भारत में लिव इन के सबसे ज्यादा मामले बेंगलुरू में हैं जो आईटी इंडस्ट्री का सबसे बड़ा हब है.देश के तमाम राज्यों के युवा वहां दर्जनों कंपनियों में कार्यरत हैं.दोनों के बीच प्रेम जब परवान चढ़ता है,तो फिर वे साथ में ही रहने लगते हैं.लिव इन रिलेशन की वजह से शादी से पहले सेक्स के मामले भी बढ़ रहे है.नतीजा ये है कि बिना शादी के गर्भवती होने के मामले भी बेहद तेजी से बढ़े हैं.ज्यादातर लिव इन रिलेशन में जब दोनों के बीच नहीं पटती है, तो लड़कियां अपने साथी के खिलाफ रेप केस करने की धमकियां भी देती हैं.ऐसी सूरत में उसका पार्टनर या तो डर कर समझौता करने में ही अपनी भलाई समझता है या फिर उस आवाज़ को हमेशा के लिये खामोश करने के मकसद से हत्या कर देता है.