पीएम नरेंद्र मोदी ने वादा और दावा किया था कि 8 नवंबर को उनके द्वारा की गई नोटबंदी की घोषणा के 50 दिन पूरे होते ही जनता को इससे होने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी. अगर यह वादा पूरा हो जाता तो निश्चित ही मोदी जी का राजनीतिक दावा और मजबूत होता. लेकिन नोटबंदी के अप्रत्याशित वार के चलते कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटो, कंस्ट्रक्शन, टेक्सटाइल और सर्विस सेक्टर के साथ-साथ सब्जी विक्रेता, व्यापारी वर्ग, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री और असंगठित क्षेत्र के मजदूर नोटबंदी के भयावह 52 दिनों बाद भी कराह रहे हैं.


पीएम मोदी लाख कहें कि नोटबंदी का मुद्दा राजनीति से जुड़ा नहीं है लेकिन कम होने के बजाए नित नई बढ़ रही तकलीफों के चलते आर्थिक सुधार का यह अहम कदम वाया राजनीतिक संघर्ष अब एक चुनावी मुद्दा बन गया है. ऐसे में देखना दिलचस्प है कि नोटबंदी से पीएम मोदी और भाजपा को राजनीतिक तौर पर क्या नफ़ा-नुकसान है.


सवाल उठता है कि क्या नोटबंदी महज चुनावी फायदा उठाने के लिए किया गया फैसला था जो बूमरैंग हो गया है? देश की जनता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, नशाखोरी, बिजली की समस्या, ख़राब सड़कें, बीमार शिक्षा एवं क़ानून व्यवस्था, असंवेदनशील पुलिस, रेत, खनन और शिक्षा माफ़िया तथा तरह-तरह के घोटालों से त्रस्त रहती है. इनसे निजात पाने के लिए वह हर शासक और सरकार की तरफ बड़ी उम्मीद से देखती है. जब नोटबंदी की तरह का साहसिक निर्णय ले लिया जाता है तो लोग शासक को सर-आंखों पर बिठा लेते हैं. मोदी जी का जादू जनता पर पहले ही चला हुआ था और उनके द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद तो यह और भी सर चढ़ कर बोलने लगा. ज़िंदगी-मौत, शादी, यात्रा, खेती-पाती, पढ़ाई-इलाज आदि में हुई लाख तकलीफें उठाकर भी लोग बैंक की लाइनों के अलावा उनके निर्णय के साथ भी डटे रहे. जनता ख़ुश हुई कि राजनीति में गैरक़ानूनी तरीके से ख़र्च होने वाला धन कूड़ा हो गया. काले धन के कुबेर अब राख फांकेंगे. मोदी जी की ही तरह उन्हें भी यह भरोसा था कि इस फैसले से करप्शन, ब्लैकमनी, नकली नोट और टेरर फंडिंग की समस्या पर प्रहार होगा और ‘अच्छे दिन’ आ जाएंगे. लेकिन हुआ क्या?



नोटबंदी से पहले 17 लाख करोड़ रुपए करंसी चलन में थी. कोटक सिक्युरिटीज और केयर रेटिंग के अनुमान के मुताबिक इसमें से 3 लाख करोड़ रुपए ब्लैकमनी के रूप में मौजूद थे. वहीं सरकार के आंकड़े कहते हैं कि अब तक 3600 करोड़ रुपए का कालाधन देशभर में चली कार्रवाई के दौरान जब्त किया जा चुका है. अर्थात नोटबंदी के 50 दिन में सरकार महज 1.036% ब्लैकमनी ही जब्त कर पाई. स्पष्ट है कि काला धन बाहर निकालने का प्रयास विफल हो चुका है.


नोटबंदी के बाद हुए मिसमैनेजमेंट और बार-बार गोल पोस्ट बदले जाने से भी जनता में आक्रोश है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा 50 दिनों में 64 बार नोटिफिकेशन जारी किए गए और काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर कैशलेस अर्थव्यवस्था बताने तक की कवायद की गई. ग़रीब और ईमानदार जनता बैंक काउंटरों के सामने लाइन में लगी रही और बैंक अधिकारी पीछे के चोर दरवाज़ों से अमीरों और बेईमानों का काला धन सफ़ेद करते रहे. इससे लोग ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. जनता को अब भी भरमाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में नोटबंदी का फ़ायदा अवश्य मिलेगा. कैसे मिलेगा- यह बताने के लिए कोई सामने नहीं आता! रोज कुआं खोदकर पानी पीने वालों का गुज़ारा कैसे होगा? थोक और फुटकर बाज़ार कैसे चलेगा? सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई, जानलेवा बेरोजगारी और ख़ून में शामिल हो चुके भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगाया जाएगा? इन सवालों के जवाब देने वाला भी भाजपा की तरफ से कोई नज़र नहीं आ रहा है.


ऐसा भी नहीं है कि नोटबंदी से उत्पन्न परेशानियों को कम करने के लिए सरकार ने इन 50 दिनों में कोई कदम ही न उठाया हो. पेट्रोल-डीजल के 4.5 करोड़ उपभोक्ताओं को डिजिटल मोड से ख़रीदारी करने पर 0.75% छूट की घोषणा सरकार ने की. इसी तरह डिजिटल पेमेंट से रेलवे टिकट लेने पर 0.5% छूट और 10 लाख तक का दुर्घटना बीमा और रेल सुविधाओं पर 5% छूट देने का एलान किया गया. नई ऑनलाइन बीमा पॉलिसी और प्रीमियम पर 10% छूट की घोषणा हुई. रुपए 2000 तक के सिंगल डेबिट और क्रेडिट कार्ड ट्रांजेक्शन पर सर्विस टैक्स से छूट और टोल प्लाजा पर डिजिटल पेमेंट करने पर 10% की छूट का ऐलान हुआ. लेकिन 125 करोड़ की जनता की ज़िंदगी संचालित करने वाली बहु-स्तरीय अर्थव्यवस्था में ये रियायतें ऊंट के मुंह में जीरा हैं. तभी तो नोटबंदी का खुल कर समर्थन करने वाले धुर मोदी विरोधी नीतीश कुमार और समर्थक चंद्रबाबू नायडू के सुर बदल गए हैं. चंद्रबाबू नायडू कह रहे हैं कि नोटबंदी से उत्पन्न परेशानियों का हल हम नहीं खोज पा रहे हैं. विपक्षी ब्रिगेड के राहुल गांधी, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और वाम दलों आदि का विरोध तो समझ में आता है लेकिन नोटबंदी समर्थकों का आलोचकों में बदल जाना मोदी जी के लिए बड़ा राजनीतिक नुकसान कहा जा सकता है.


इस नुकसान को फ़ायदे में बदलने का एक ही तरीका है और वह ये कि नोटबंदी के सुखद परिणाम जल्द से जल्द जनता के सामने आने चाहिए और जनता को इनका प्रत्यक्ष अहसास भी कराया जाना चाहिए. अगर नोटबंदी के परिणामों से लोग ख़ुश हुए तो आगामी विधानसभा चुनावों में वे मोदी जी और भाजपा को ख़ुश कर सकते हैं. और अगर इसका उल्टा हुआ तो नोटबंदी भाजपा की लुटिया भी डुबो सकती है!


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