हाल ही में चेन्नई में तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में, सबसे पुरानी आध्यात्मिक परंपराओं में से एक, सनातन धर्म का विषय जांच के दायरे में आ गया. इससे भी अधिक दिलचस्प तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. के बेटे उदयनिधि स्टालिन की भागीदारी थी. इन विचार-विमर्शों में स्टालिन. सनातन धर्म के बारे में उदयनिधि की टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया और राजनीतिक हलकों, विशेषकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से तीखी प्रतिक्रियाएँ मिलीं.
सम्मेलन में उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों पर तब सवाल खड़े हो गए जब उन्होंने सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया से जोड़ा. कई लोगों को यह एक असामान्य संबंध लग सकता है, लेकिन जब इसे तमिलनाडु के इतिहास के एक प्रमुख हस्ती पेरियार और भारत के संविधान निर्माता बी.आर. आंबेडकर की विचारधाराओं के चश्मे से देखा जाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है. पेरियार और अम्बेडकर दोनों ब्राह्मणवाद और हिंदू धर्म के भीतर जाति व्यवस्था के मुखर आलोचक थे. उदयनिधि की टिप्पणियाँ, एक तरह से, हिंदू धर्म के इन पहलुओं के प्रति उनके लंबे समय से चले आ रहे विरोध के अनुरूप थीं.
पेरियार, तमिलनाडु के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य के एक दिग्गज, संस्कृत भाषा और ब्राह्मणवाद के विरोधी और द्रविड़ पहचान की ज़बरदस्त वकालत के लिए जाने जाते थे. वह खुद को हिंदू नहीं, बल्कि द्रविड़ मानते थे और ब्राह्मणवादी प्रभुत्व के खिलाफ मजबूती से खड़े थे. उनकी मान्यताएँ हिंदू धर्म की मुख्यधारा की धारणा के विपरीत थीं, और वे जाति-आधारित भेदभाव के उन्मूलन के मुखर समर्थक थे.
पेरियार की विचारधाराओं ने तमिलनाडु की राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ी, जिसने द्रविड़ आंदोलन को आकार दिया जो राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को आज भी प्रभावित करता है. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) दोनों ने पेरियार के विचारों को अपनाया है, जो द्रविड़ संस्कृति, भाषा और पहचान के संरक्षण और प्रचार की वकालत करते हैं.
पेरियार की विरासत के संदर्भ में देखी जाने वाली उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों को तमिलनाडु में द्रविड़ पहचान को फिर से मजबूत करने के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है. सनातन धर्म पर सवाल उठाकर वह अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में ब्राह्मणवादी परंपराओं और हिंदू रूढ़िवादिता को चुनौती देते हैं. इस रणनीतिक कदम को तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे के बढ़ते प्रभाव की प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है.
भाजपा ने उदयनिधि के बयान पर तेजी से प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसके संभावित विभाजन और हिंदू बहुमत के लिए इसके कथित खतरे के बारे में चिंता व्यक्त की. पार्टी की प्रतिक्रिया तमिलनाडु में व्यापक राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित करती है, जहां पहचान की राजनीति, धर्म और सांस्कृतिक संरक्षण एक दूसरे से मिलते हैं. खुद को हिंदू हितों के रक्षक के रूप में स्थापित करके, भाजपा का लक्ष्य राज्य में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना है. उदयनिधि के इस बयान पर की सनातन धर्म डेंगू, मलेरिआ की तरह है और उसे ख़त्म करने की ज़रूरत है कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा की उदयनिधि का बयान 80% हिन्दुओं को क़त्ल करने की बात करता है. बीजेपी ने उदयनिधि के बयान को हिन्दू नरसंहार से जोड़ते हुए इंडिया गठबंधन और कांग्रेस पार्टी को भी सवालो के घेरे में खड़ा कर दिया.
बीजेपी के साथ एक दिक़्क़त ये है की अगर वो सीधे तौर पर उदयनिधि के बयान की अलोचना करती है तो बात फिर आंबेडकर और पेरियार पर भी उठेगी ऐसे में बीजेपी को ये लगता है की इस बात पर कही उनके दलित और ओबीसी समर्थक वोटर्स का एक तब्क़ा पार्टी' से नाराज़ न हो जाए.
विचारधाराओं के इस टकराव के राजनीतिक निहितार्थ महत्वपूर्ण हैं. उदयनिधि की टिप्पणियाँ और भाजपा की प्रतिक्रिया द्रविड़ पहचान, हिंदू राष्ट्रवाद और तमिलनाडु में राजनीतिक चालबाजी के बीच जटिल अंतरसंबंध को उजागर करती है. जैसे-जैसे देश लोकसभा चुनाव की तरफ़ बड़ रहा है इस तरह की रणनीतिक और सामाजिक बहस एक मुद्दे की शक्ल में जनता के चिंतन और विचारो को प्रभावित करने का काम करेगा, राजनितिक पार्टिया और खास कर एनडीए और इंडिया गठबंधन इस के सहारे चुनावी वैतरणी पार् करने की कोशिश करेगी.
जनता तैयार रहे अभी यह देखना बाकी है कि पहचान, संस्कृति और धर्म आने वाले वर्षों में चुनावी परिदृश्य को कैसे और कितना प्रभावित करेंगे. अभी तो चुनावी जवार चढ़ना शुरू हुआ है!
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