राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार की तरफ से लाए राइट टू हेल्थ बिल के खिलाफ डॉक्टरों ने 4 अप्रैल को हड़ताल खत्म कर दी. खुद राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर इस बात का एलान किया सरकार की तरफ से इस पर उनकी कई मांगों को माने जाने के बाद ये सहमति बन पाई है. लेकिन मैं ये बतना चाहूंगा कि राइट टू हेल्थ इज द राइट टू पीपल, जैसे राइट टू फूड होता है, राइट टू एजुकेशन होता है. सभी गवर्नमेंट्स का यह कांस्टिट्यूशनल दायित्व है. एक वेलफेयर स्टेट होने के नाते ये सारी सरकारों कि जिम्मेदारी होती है कि वो पब्लिक के फेवर की, जो हमारे संविधान में लिखा गया है, पब्लिक के लिए काम करने को कहा गया है, वो सारे काम करें. उसमें राइट टू हेल्थ भी है. हालांकि, हो क्या रहा है कि जो सरकार की अपनी जिम्मेदारी है और शायद वो जिम्मेदारी निभा नहीं पा रही है. पूरी तरह तो वो ये प्राइवेट डॉक्टर्स के ऊपर डाल दे रहे हैं. ये जो बिल लाए हैं, हम लोग राइट टू हेल्थ के खिलाफ नहीं हें, ये जो राइट टू हेल्थ बिल लाई है राजस्थान सरकार, उस बिल में जो खामियां हैं, हम उसके खिलाफ हैं.


अब उस बिल के अंदर वो लोग कह रहे हैं कि किसी भी इमरजेन्सी में, तो उन्होंने डिफाइन ही नहीं किया कि इमरजेंसी का मतलब क्या है? आम आदमी को तो हर बीमारी इमरजेंसी लगती है. दूसरी बात, उन्होंने उसमें लिखी है कि पेशेंट को ट्रांसपोर्ट करने की व्यवस्था भी डॉक्टर को ही करनी पड़ेगी. सभी डॉक्टर्स के पास तो एंबुलेंस नहीं होती, तो वो कैसे करेंगे ट्रांसपोर्ट, मरीजों को? अगर कोई मरीज किसी के चैंबर में आ गया और वह डॉक्टर स्पेशलिस्ट नहीं उसका, वह तो कहेगा न कि दूसरे किसी को जाकर दिखाओ, तो डॉक्टर ट्रांसपोर्टेशन कैसे देगा..ये व्यावहारिक नहीं है. 



राइट टू हेल्थ बिल नहीं व्यवहारिक


जिस संविधान में राइट टू हेल्थ है, हम भी उसी संविधान के दायरे में आते हैं, हम भी इसी देश के नागरिक हैं, लेकिन वही संविधान हर किसी को अपनी जीविका अर्न करने का अधिकार भी देता है. आप उस जीविका पर कैपिंग नहीं कर सकते. हर इंसान अपनी काबिलियत के अनुसार चार्ज करता है. इसके बावजूद IMA और इससे जुड़े डॉक्टर जो भी कल्याणकारी योजनाएं हैं, हेल्थकेयर सर्विसेज के लिए जिनका रजिस्ट्रेशन होता है, उनको तो अपने हॉस्पिटल में प्रोवाइड करा रहे हैं न. उसमें ये क्लैरिटी भी नहीं है कि पेमेंट कैसे करेंगे, उसमें एंबिग्युटी है, इमरजेन्सी को लेकर एंबिग्युटी है, स्पेशलाइजेशन को लेकर एंबिग्युटी है, ट्रांसपोर्ट को लेकर एंबिग्युटी है, आप जबरदस्ती फोर्स कर प्राइवेट डॉक्टर्स को नहीं कह सकते कि वह सरकारी स्कीम से इलाज करे. जिन्होंने वेलफेयर की सरकारी स्कीम के तहत सहमति दी है, उनको आप कह सकते हैं. 


एकतरफा सख्त कार्रवाई करना तो संविधान के खिलाफ हे. राइट देता है जो सबको, उसके खिलाफ है. तो हम इस बिल में जो खामियां हैं, उसके खिलाफ हैं, राइट टू हेल्थ के खिलाफ नहीं हैं. राइट ऑफ हेल्थ तो हम कह रहे हैं, हेल्थ टू ऑल के लिए तो आइएमए लड़ रही है. ये लेकिन सरकार को करना है, प्राइवेट डॉक्टर्स ने नहीं करना है. 


राइट टू हेल्थ बिल मेडिकल पर चोट


ये मेडिकल पर चोट ही है, और क्या है. अगर आपके घर में कोई आ जाए और कहे कि घर खाली करो क्योंकि फुटपाथ पर जो लोग रह रहे हैं, उनको देनी है तो आपको कैसा लगेगा. ये तो वही बात है न कि कोई भी इमरजेन्सी में किसी डॉक्टर के पास जाओ और अगर वह इलाज नहीं करेगा तो आपने उसमें एक प्राधिकरण भी बना दिया है, जिसमें आपके पार्षद वगैरह सदस्य हैं. आप बताइए, अब डॉक्टर का यही काम रह गया है? आप कितनी जगह अपीलेट बनाएंगे, जबकि पहले से ही अपीलेट हैं. कमीशन है, आप कहीं कोर्ट में जा सकते हैं, अगर कोई शिकायत है तो आप कीजिए न. आप इतनी जगह अपीलेट बनाएंगे तो डॉक्टर का आधा टाइम तो इसी में निकल जाएगा. 


आप जो पॉलिसी बना रहे हैं, उसके स्टेकहोल्डर को तो बिल्कुल उसमें शामिल करना चाहिए. यह तो प्लैनिंग का बेसिक स्ट्रक्चर होता है. आप जो भी पॉलिसी बना रहे हैं, आइएमए को उसमें भागीदार बनाइए, हम अच्छी सलाह देंगे. मोटे तौर पर यह है कि इमरजेन्सी डिफाइन नहीं है. दूसरी बात, बाध्यता नहीं होनी चाहिए कि सभी को ये करना ही है. तीसरी बात जो ट्रांसपोर्ट को लेकर है कि हम कैसे मरीज के ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करेंगे. चौथी बात कि पेमेंट की क्लैरिटी नहीं है कि पेमेंट कौन और कैसे करेगा...पांचवीं बात कि ये जो प्राधिकरण बन रहा है, उसकी क्या जरूरत है, गन पॉइंट पर रखकर आप प्राइवेट डॉक्टर्स को कैसे काम करवा सकते हैं. अंतिम बात यह है कि इस बिल की जो खामियां हैं उसे दूर कर एक व्यावहारिक बिल लाएं और उसे पहले छह महीने तक सरकारी अस्पतालों में चलाएं, देखें कि यह कैसे काम कर रहा है. फिर, जो कमियां हैं, उसे दूर करें, तब प्राइवेट इंस्टीट्यूशन्स के साथ लागू करें. जो डेजिग्नेटेड अस्ताल हैं. 


हम पॉलिटिशियन्स पर क्या कहें. हमारा तो काम है पढ़ना और सेवा करना. हमारे इन्हीं डॉक्टर्स ने राजस्थान को बचाया था. कोविड के दौरान राजस्थान की जनता के लिए इन्हीं डॉक्टरों ने काम किया है. यही डॉक्टर आज कैसे बदल गए. कोई दुष्प्रचार कर रहा है, मुझे नहीं पता कि कौन कर रहा है, लेकिन कुछ लोग यह कह रहे हैं कि डॉक्टर लोगों के खिलाफ है. डॉक्टर भला लोगों के खिलाफ कैसे हो सकते हैं, अभी छह महीने पहले तो आप इन्हीं डॉक्टर्स को भगवान बता रहे थे, कोविड के दौरान और अभी भी कोविड पूरा गया नहीं है. भगवान न करे फिर वैसी स्थिति हुई तो यही डॉक्टर फिर आपको बचाएंगे. लेकिन, उन डॉक्टर्स की ही जब आप गरदन घोंट देंगे, तो कैसे चलेगा? सरकार अपनी जिम्मेदारी डॉक्टर्स पर डाल रही है, ये गलत बात है.


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है]