पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के किए कामों से इतिहास करेगा उनको याद
26 सितंबर 2024 को मनमोहन सिंह का निधन हुआ और तब वह 92 साल के हो चुके थे, यानी एक भरा-पूरा जीवन उन्होंने जिया। वह रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्लानिंग कमीशन के वाइस चेयरमैन से लेकर प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे, जो अपने-आप में एक बहुत बड़ी मिसाल हैं. कोई एक आदमी 'फर्श से अर्श तक' कैसे पहुंच सकता है?, वह इसका जीवंत दस्तावेज थे. वह अर्थशास्त्री और शिक्षाशास्त्री थे, पर उनके जो राजनीति में संबंध रहे है. वह अपने आप में बड़ी बात है. इसके अलावा राजनीतिक, सामाजिक, औद्योगिक और वैश्विक व्यवस्था में जो छाप उन्होंने छोड़ी, वो अपने आप में एक मिसाल है. एक व्यक्ति अपने आप को कहां तक पहुंचा सकता है? कहां तक उनकी बात सुनी जा सकती है? अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि मनमोहन सिंह जब बात करते हैं तो सारा विश्व उन्हें सुनता है. यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात रही है.
मनमोहन सिंह ने मुल्क के लिए क्या-क्या किया है?
1991 में पी, वी नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री बनाया था. ऐसे दौर में मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया जब भारत की अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही थी. जब भारत के पास आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा को बदलने के लिए दो सप्ताह का भी समय नहीं था. नरसिम्हा राव के लिए वह चुनौती पूर्ण पल रहा होगा. वित्त मंत्री मनमोहन सिंह उस दौर से हिंदुस्तान को बाहर लेकर आए जो हर किसी नेता के लिए मुश्किल था. लोगों के मन में उस समय कई तरह के विचार आए और लोगों के कई तरह के विरोध भी रहे थे. उन्होंने इस मुश्किल काम को कर दिखाया. यह भी सही है. उनके लिए यह भी कहा जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के दबाव में उन्होंने भारत में उदारीकरण और वैश्विकरण की नीति अपनाई.
हिंदुस्तान को आगे लेकर जाने और 90 के दशक में इन उलझनों को सुलझाना अपने आप में एक बहुत बड़ी चीज रही है. यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब वह वित्त मंत्री बने थे तब हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था में तमाम तरह की परेशानियां देखने को मिली. महंगाई हिंदुस्तान का आसमान छू रही थी, अर्थव्यवस्था गड्ढे में थी, तमाम पब्लिक सेक्टर ने उनकी आलोचना की थी, लेकिन डॉ मनमोहन सिंह ने डिसइनवेस्टमेंट यानी विनिवेश का रास्ता खोल दिया. उस समय उनके जो उत्तराधिकारी रहे उन्होंने कई मामलों में गलत फायदा उठाया और कई तरह के स्कैम किए जो बाद में देखने को मिले. उनके वित्त मंत्री रहने के पांच साल के दौर में हम देखते है कि एक के बाद एक स्कैम से भारत उलझता गया था. कई सारे स्कैम से निकलना आसान नहीं था. मनमोहन सिंह ने हिंदुस्तान की इकोनॉमी में खुलेपन का दौर शुरु किया. उसमें हमको यह देखने को भी मिला कि हिंदुस्तान की इकोनॉमी का कुछ लोगों ने कैसे ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश की थी. उसमें विदेशी निवेशकों ने बहुत सस्ते में अपने निवेश बढ़ा लिए और भारत के निजी व्यापारियों ने भी उसका इतना लाभ नहीं उठाया था.
भारत को दिए खुली अर्थव्यवस्था के साथ और कई उपहार
बैंकों में 2008 के लेहमैन ब्रदर्स कांड और दुनिया भर में जारी मंदी के बाद से उन्होंने सारी इकोनॉमी, बैंक की पूंजी को बड़े पूंजीपतियों के लिए खोलकर रख दिया. यह बैंकों के लिए समस्या बन गई. यूपीए 1 के पीएम के तौर पर इस सबके बावजूद उन्होंने देश के लिए खास चीजें कीं. जैसे कि किस तरह से गांव के गरीबों के हाथ में पैसा पहुंचाया जाए? कैसे गांव के गरीबों को भारत की अर्थव्यवस्था में हिस्सेदार बना सके? वह सब काम उन्होंने किया. 2005 में मनमोहन सिंह ने 'सूचना के अधिकार' की बात को संसद में रखा, महिला सशक्तीकरण की बात को रखा. 'सूचना के अधिकार' को लागू किया. इसकी मंशा देश के हर एक नागरिक को सरकार के बारे में जानने का अधिकार देने की थी. हालांकि, वो मंशा कितनी कामयाब रही वह बाद में देखने की चीज है. नौकरशाही पर उन्होंने ऐसा दबाव बनाया कि उनको खुले दिल से, खुले पन से पूरे हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था और संसाधनों की व्यवस्था में सरकार की जवाबदेही तय करनी पड़ी.
सार्वजनिक व निजी संबंध रहे शानदार
मनमोहन अच्छे पब्लिक संबंधों के व्यक्ति रहे हैं. तमाम तरह की विपरीत धारणाओं के लोगों को साथ लेकर आगे बढ़े. वामपंथियों ने उनसे कहा कि अगर आप न्यूक्लियर डील पर आगे बढ़ेंगे तो वे उनका साथ छोड़ देंगे. वामपंथियों ने उनका साथ छोड़ा तो उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया. यह उनकी एक बहुत बड़ी खासियत रही है. जिस तरह से मनमोहन सिंह देश के विकास को लेकर आगे बढ़े वो कोई आसान बात नहीं रही है. हालांकि, जब 2004 में पोखरण2 परमाणु परीक्षण किया गया, उसके बाद अमेरिका ने जो पाबंदियां लगाई, वो इसी वजह से इतने सफल नहीं रह पाए. 2007 में अमेरिका को झुक के भारत के साथ आना पड़ा क्योंकि अमेरिका खुद भारत के साथ न्यूक्लियर डील करना चाह रहा था. मैं समझता हूं कि वामपंथियों की बहुत बड़ी भूल थी और मनमोहन सिंह देश को इससे आगे लेकर गए.
आज हिंदुस्तान में जिस तरह से कई चीजों की शुरुआत हुई है जैसे कि नोटबंदी, तो उसको लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीधे-सीधे शब्दों में कहा कि यह भारत की सबसे बड़ी भूल है. उस दौर में सबसे बड़ा नुकसान देश के गरीबों को हुआ था. आज प्राइवेट सेक्टर की जिस तरह से बढ़त हुई वो मनमोहन सिंह की पुरानी नीतियों की वजह से हुई है. मनमोहन सिंह चाहते थे कि प्राइवेट सेक्टर की सारी चीजों को ओपन कर सके लेकिन वामपंथियों के दबाव में वह सारी व्यवस्थाओं को ठीक नहीं कर पाए. देश पहले की परेशानियों से कहीं आगे निकल चुका है. मनमोहन सिंह के बाद की वाजपेयी सरकार ने प्राइवेट सेक्टर को और आगे किया. आज करीब-करीब चारों तरफ प्राइवेट सेक्टर ही दिख रहा है. पब्लिक सेक्टर लगभग खत्म हो चुके हैं. उसपर हमें पुन: विचार करने की जरूरत है.
मुश्किल दौर में हुई गलतियां भी
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के मुश्किल दौर का नेतृत्व किया. मुश्किल दौर में भी उनके नेतृत्व देने में बहुत गलतियां भी हुई थी. उन्होंने गलतियों के बावजूद भी राजनेताओं से अच्छे संबंध बनाए. उस दौर में उन्होंने बहुतेरी प्रेस कॉन्फ्रेंस की थीं और खुलकर पत्रकारों के सवालों का जबाव दिया. यह अपने आप में दिखाता है कि भारत की पूरी व्यवस्था को वो किस तरह से जिम्मेदार बनाना चाहते थे. तमाम खामियों के बावजूद मनमोहन सिंह ने जो कुछ भी किया वो भारत के लिए वंदनीय है. मनमोहन सिंह ने भारत को एक नाया रास्ता दिखाने की कोशिश की, हर व्यक्ति हरेक मोर्चे पर, हरेक चीज में सफल नहीं होता है. वह भी हरेक मुद्दे पर सफल नहीं हुए पर इसके बावजूद मनमोहन सिंह ने जो रास्ता दिखाया, जिस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था को समेटने की कोशिश की, वो अपने आप में एक मिसाल हैं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]