Flood: मानसून (Monsoon Season) के मौसम में देश का शायद ही कोई शहर ऐसा बचता है, जहां बारिश (Rain) के कारण बाढ़ (Flood) के हालात न बनते हों. गुजरात (Gujarat), महाराष्ट्र (Maharashtra), राजस्थान (Rajasthan), कर्नाटक (Karnataka) समेत आधा दर्जन से भी ज्यादा राज्यों में बाढ़ ने तबाही मचा रखी है, जिसमें जानमाल का भारी नुकसान हुआ है.
अन्य कई राज्यों में भी भारी बारिश का कहर देखने को मिल रहा है. बारिश के कारण अकेले महाराष्ट्र में एक जून से अब तक 76 लोगों की मौत हो चुकी है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कई हिस्सों में बाढ़ तो हर साल आती है लेकिन बारिश के पानी की निकासी का स्थायी इंतजाम क्यों नहीं किया जाता और इसके लिए राज्य सरकारें अपने शहरों के स्थानीय निकायों की जवाबदेही आखिर क्यों नहीं तय करतीं?
दरअसल, हमारे देश में नगर नियोजन को लेकर न तो राज्य सरकारें और न ही स्थानीय निकाय गंभाीर नहीं है. नगर नियोजन की त्रुटियों से देश के महानगर ही नहीं बल्कि हर जिला, शहर और यहां तक कि बड़े कस्बे के लोग भी परेशान हैं. अनियोजित निर्माण के कारण थोड़ी सी बारिश भी पूरे शहर के लिए बड़ी आफत बन जाती है.
मुम्बई की सड़कों को तो हर साल दरिया में तब्दील होते सबने देखा है लेकिन दिल्ली और एनसीआर जैसे शहरों में भी बारिश का पानी लोगों के घरों में उत्पात मचाने लगे, तो उसमें कसूर बारिश का नहीं बल्कि हमारे स्थानीय निकायों के उन लापरवाह अफसरों और उन जन प्रतिनिधियों का है, जिनके लिए हर बारिश के बाद सड़कों का निर्माण करवाना और उसके लिए बजट पास करना, कमाई का एक नया जरिया बन जाता है.
अगर हम हर राज्य के मुताबिक वहां के हर बड़े शहर की नगर नियोजन को देखेंगे, तो पाएंगे कि इस मामले में हर शहर दूसरे को पछाड़ने में जुटा हुआ है. तीन दशक पहले तक बिल्डर माफ़िया का राज सिर्फ गिने-चुने महानगरों तक ही था लेकिन अब हर बड़े-छोटे शहरों में स्थानीय निकायों की मिलीभगत से इनका राज है, जो मनमाने तरीके से निर्माण करते हैं और इसकी फिक्र भी नहीं करते कि घर के बाहर बनी नालियों में अगर सुराख नहीं करेंगे, तो बारिश के पानी की निकासी भला कैसे होगी.
स्थानीय निकायों (Local Bodies) की इसी अनदेखी और बिल्डरों (Builders) को मनमानी छूट देने के कारण न तो वे बारिश (Rain) के मौसम की गंभीरता को समझते हैं और न ही उससे निपटने के उपायों से जुड़ी योजनाएं बनाने पर ही कोई ध्यान देते हैं. हर शहर बारिश तो चाहता है लेकिन फिर वहीं ये भी पूछता है कि इसे एक बड़ी आफत में बदलने के लिए आखिर कौन है कसूरवार?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)