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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

राज की बात: मुख्य सचिव पद पर दुर्गाशंकर मिश्रा की नियुक्ति, क्या BJP का है 'ब्रह्मास्त्र'?

Uttar Pradesh Election 2022: उत्तर प्रदेश में बीजेपी का फिलहाल ऑपरेशन ब्राह्मण चल रहा है. छह माह पहले ओबीसी और एससी की सोशल इंजीनियरिंग की गई थी. तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में जातीय समीकरण दुरुस्त कर और यूपी को प्रतिनिधित्व देकर पिछड़ों और दलितों को संदेश दिया गया. अब विप्र समाज की कथित नाराजगी को साधने के लिए उनके नेताओं से तो मुलाकात हो ही रही है, लेकिन नौकरशाही के जरिये भी संदेश दिया जा रहा है. यूपी के नए मुख्य सचिव पद पर दुर्गाशंकर मिश्रा की नियुक्ति के पीछे यही राज की बात है. यह फैसला प्रशासनिक हितों को साधने के साथ-साथ राजनीतिक संदेश भी देने वाला है. साथ ही पीएम मोदी के खास को चीफ सेक्रेट्री बनाने का आदेश जिस तरह से आया..उसके संदेशों में न सिर्फ बड़े राज हैं, बल्कि प्रभाव भी बड़े.

आप सोच सकते हैं कि अभी तक जो मुख्य सचिव थे, आर.के. तिवारी...वो भी तो ब्राह्मण थे. इससे पहले अनूप चंद्र पाण्डेय भी ब्राह्मण थे. फिर दुर्गाशंकर को ब्राह्मण कार्ड से कैसे जोड़ा जा सकता है. तो पहले तो ये समझ लीजिए कि राजनीति में कभी भी टू प्लस टू चार नहीं होता. वैसे तो ये भी अजीब है कि राजनीतिक दलों में और सरकार में जाति या संप्रदाय के प्रतिनिधित्व को लेकर समायोजन होता है, लेकिन नौकरशाही में भी ये होता है क्या? तो उत्तर प्रदेश में जातीय संतुलन एक ऐसी सच्चाई है, जिसको न कोई नकार सकता है और न ही अनदेखी कर सकता है. योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के साथ दो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या और दिनेश शर्मा को बनाकर ओबीसी और ब्राह्मण समीकरण साधे गए. मगर यूपी सचिवालय में पंचम तल यानी मुख्यमंत्री कार्यालय में कौन है, इसको लेकर भी सियासत और पावर कॉरीडोर खासे गर्म रहे हैं.

यूपी की सियासत में पूर्वांचल का दबदबा हमेशा से रहा है. पूर्वांचल से राजपूत चेहरा आने के बाद खासतौर से बीजेपी की सियासत के लिए ब्राह्मण और गैरयादव ओबीसी के बीच संतुलन कायम रखना चुनौती थी. डिप्टी सीएम मौर्या के रूप में एक कद्दावर पिछड़ा चेहरा तो यूपी में था, लेकिन दिनेश शर्मा ब्राह्मणों के बीच उस तरह का चेहरा कभी नहीं रहे. फिर ब्राह्मण बनाम ठाकुर का जातीय विमर्श पूर्वांचल में ही ज्यादा रहा है. इसीलिए, बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय को बनाया. वह भी पूर्वांचल से हैं और केंद्र में मंत्री थे. 2019 में जीत के बाद महेंद्र नाथ पांडेय को केंद्र में फिर वापस लाकर स्वतंद्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पिछड़ों में ताकतवर कुर्मी समुदाय के बीच संदेश दिया गया.


राज की बात: मुख्य सचिव पद पर दुर्गाशंकर मिश्रा की नियुक्ति, क्या BJP का है 'ब्रह्मास्त्र'?

इसके बाद जब यूपी सरकार और संगठन में जातिवाद को लेकर कुछ खबरें और बातें उठीं तो बीजेपी नेतृत्व ने केंद्रीय से लेकर राष्ट्रीय और प्रदेश संगठन में जातियों के हिसाब से चेहरे तैनात कर संतुलन साधा. ओबीसी और एससी मंत्रियों की संख्या बताते हुए पोस्टर तक बीजेपी की तरफ से लगाए गए. मगर इसी बीच ब्राह्मणों के बीच योगी से नाराजगी को लेकर विपक्ष की तरफ से सुनियोजित कैंपेन चलाया गया. ओबीसी को भी विपक्ष ने शामिल किया, लेकिन उनका ज्यादा फोकस ब्राह्मणों पर ही रहा. प्रदेश में कुछ एनकाउंटर और कुछ लोगों पर पुलिस की कृपा से लेकर तमाम मुद्दे योगी सरकार के खिलाफ उठाए गए. इसमें अधिकारियों की तैनाती का मुद्दा भी अहम रहा.

अब राज की अहम बात ये जानिये कि दुर्गाशंकर मिश्रा का किरदार कौन है. आईआईटी से पढ़ाई कर निकले और आईएएस बने मिश्रा की करीबी पिछली सरकार में सबसे ताकतवर रहे नृपेंद्र मिश्र से भी रही है. साथ ही यूपी के पूर्व मुख्य सचिव और अब चुनाव आयोग में आयुक्त अनूपचंद्र पांडेय के अच्छे मित्र हैं. सबसे बड़ी बात उस पूर्वांचल से हैं, जहां ब्राह्मण और ठाकुर का विमर्श ज्यादा चलता है. और दुर्गाशंकर मिश्र की छवि दबंग और काबिल अफसरों में मानी जाती है. एक और राज की बात..यूपी में जब-जब समाजवादी पार्टी की सरकार आई तब-तब दुर्गाशंकर मिश्रा को चाहे मुलायम सिंह यादव रहे हों या फिर अखिलेश, सबने हाशिये पर रखा. इसके उलट बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें अच्छी तैनातियां दी.

बीएसपी और सतीशचंद्र मिश्र के साथ उनकी केमेस्ट्री ऐन चुनाव से पहले काफी दिलचस्प है और इसके मायने भी सियासी गलियारों में पढ़े जा रहे हैं. अब जरा डी.एस. मिश्रा की नियुक्ति का जो आदेश आया, उसकी भाषा देखिए. उसमें लिखा हुआ है कि ...मिश्र को चूंकि यूपी का मुख्य सचिव बनाया जा रहा है, इसलिए शहरी विकास मंत्रालय के सचिव पद से कार्यमुक्त किया जा रहा है... यह आदेश भी उनके रिटायरमेंट से तीन दिन पहले जारी किया गया. राज की बात ये है कि यूपी में मौजूदा नेतृत्व तिवारी को ही मुख्य सचिव चाह रहे थे और उनका कार्यकाल भी अभी लंबा बचा हुआ है. अब इस नियुक्ति के मायने भी सियासी गलियारों में पढ़े जा रहे हैं और ये केंद्रीय नेतृत्व को मालूम भी था कि निहितार्थ निकाले जरूर जाएंगे. मतलब ये सिर्फ एक नियुक्ति नहीं, बल्कि इसके बहाने कई निशाने साधे गए हैं.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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